अमित शाह ने रिटायरमेंट के बाद का प्लान किया साफ


देश के गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अमित शाह ने हाल ही में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान अपने रिटायरमेंट प्लान का खुलासा किया है। शाह, जो दशकों से भारतीय राजनीति के एक मजबूत स्तंभ रहे हैं, ने बताया कि राजनीति से संन्यास लेने के बाद वे अपने जीवन को आध्यात्मिक अध्ययन और प्राकृतिक खेती को समर्पित करेंगे। उनका यह ऐलान न केवल उनके समर्थकों के लिए चौंकाने वाला था, बल्कि यह भी दर्शाता है कि एक राजनेता के जीवन में अध्यात्म और पर्यावरण के लिए भी कितनी गहरी संवेदना हो सकती है।

अमित शाह ने साफ शब्दों में कहा कि वे राजनीति से रिटायरमेंट लेने के बाद वेद और उपनिषद जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों का अध्ययन करना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि यह अध्ययन केवल धार्मिक या पारंपरिक कारणों से नहीं, बल्कि भारतीय दर्शन को गहराई से समझने के उद्देश्य से होगा। उनका मानना है कि भारत की संस्कृति और सोच की जड़ें इन ग्रंथों में समाई हुई हैं, और जीवन के उत्तरार्ध में इनका अध्ययन उन्हें मानसिक संतुलन और आत्मिक शांति प्रदान करेगा।

अपने रिटायरमेंट प्लान में अमित शाह ने दूसरा बड़ा विषय प्राकृतिक खेती को बनाया। उन्होंने कहा कि वे पहले से ही अपनी निजी जमीन पर प्राकृतिक खेती कर चुके हैं और इसके सकारात्मक परिणामों को एक वैज्ञानिक प्रयोग के रूप में देखा है। शाह ने यह भी कहा कि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों से दूर, प्राकृतिक विधियों से खेती करने से मिट्टी की उर्वरता, पानी की गुणवत्ता और उत्पाद की पौष्टिकता में सुधार होता है। यह खेती न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर है, बल्कि किसानों के आर्थिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी साबित हो सकती है।

कार्यक्रम में जब उनसे यह पूछा गया कि क्या वे पूरी तरह से राजनीति छोड़ देंगे, तो उन्होंने यह संकेत दिया कि रिटायरमेंट के बाद उनका ध्यान सार्वजनिक जीवन से हटकर निजी और बौद्धिक कार्यों पर रहेगा। यह संभव है कि शाह भविष्य में सक्रिय राजनीति से अलग होकर एक मार्गदर्शक भूमिका निभाएं या फिर शिक्षा और कृषि जैसे क्षेत्रों में अपनी रुचियों के माध्यम से समाजसेवा करें।

शाह की यह सोच दिलचस्प है कि वेदों और उपनिषदों जैसे अध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन और प्राकृतिक खेती जैसी आधुनिक जीवन शैली को एक साथ जोड़ना चाहते हैं। यह दृष्टिकोण एक ऐसे भविष्य की ओर संकेत करता है जहाँ भारतीय परंपरा और आधुनिक विज्ञान एक साथ चल सकते हैं। शाह का कहना है कि यदि यह प्रयोग सफल होता है, तो वे इसे बड़े स्तर पर किसानों और छात्रों के बीच फैलाना चाहेंगे।

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