आरा के कायमनगर संस्कृत उच्च विद्यालय में भव्य अभिनंदन एवं प्रतिमा अनावरण समारोह का आयोजन

Report By: तारकेश्वर प्रसाद
आरा (बिहार): कायमनगर स्थित रामस्वरूप रामलहर त्रिपाठी संस्कृत उच्च विद्यालय में आज एक भव्य अभिनंदन एवं प्रतिमा अनावरण समारोह का आयोजन किया गया, जिसने क्षेत्र के शैक्षिक और सांस्कृतिक वातावरण में एक नया आयाम जोड़ा। इस गरिमामयी आयोजन में संस्कृत शिक्षा बोर्ड, पटना के अध्यक्ष श्री मृत्युंजय कुमार झा का विद्यालय में भव्य स्वागत एवं अभिनंदन किया गया।
समारोह का शुभारंभ वैदिक मंत्रोच्चारण और दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। इस अवसर पर विद्यालय परिसर में एक प्रतिमा का अनावरण भी किया गया, जिसे विद्यालय परिवार ने संस्कृत भाषा और संस्कृति को समर्पित किया।
मंच पर डॉ. राज किशोर मिश्रा, डॉ. संजय कुमार चौबे, और जिला शिक्षा पदाधिकारी सहित अनेक गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति रही। कार्यक्रम की अध्यक्षता वेद निधि शर्मा ने की, जबकि संचालन विद्यालय के प्रधानाचार्य राजेश त्रिपाठी द्वारा किया गया।
मुख्य अतिथि मृत्युंजय कुमार झा ने अपने सारगर्भित संबोधन में कहा – “आज के दौर में बच्चों में नैतिक शिक्षा की कमी के कारण समाज में अपराध की प्रवृत्ति बढ़ रही है। संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, मूल्यों और आदर्शों की जननी है। संस्कृत और संस्कृति एक-दूसरे के पूरक हैं।”
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए संस्कृत शिक्षा को प्रारंभिक स्तर से लागू किया जाना चाहिए।
उन्होंने आश्वस्त किया कि विद्यालय की आधारभूत संरचना को सुदृढ़ करने के लिए संस्कृत शिक्षा बोर्ड लगातार प्रयासरत है।
इस अवसर पर विधान पार्षद निवेदिता सिंह ने भी शिरकत की और संस्कृत भाषा के महत्व एवं उपयोगिता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा – “संस्कृत केवल देववाणी नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने वाली शिक्षावाणी है।”
समारोह में अन्य विशिष्ट जनों की उपस्थिति ने इसे विशेष बना दिया। कार्यक्रम में उदय कुमार तिवारी, रवि शंकर राय, सुनील कुमार पांडे, प्रेमचंद त्रिपाठी, नवल किशोर तिवारी, आशुतोष पाठक समेत कई शिक्षक, पदाधिकारी और समाजसेवी उपस्थित रहे।
विद्यालय परिसर में मौजूद छात्र-छात्राओं, अभिभावकों एवं स्थानीय नागरिकों में संस्कृत भाषा के प्रति गहरी श्रद्धा और उत्साह देखने को मिला। समारोह की भव्यता और संस्कृत के गौरवशाली महत्व को लेकर लोगों में विशेष रुचि दिखी।
यह आयोजन न केवल एक संस्कृत शिक्षक का सम्मान था, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, मूल्यों और शिक्षण परंपरा के पुनर्जागरण का प्रतीक भी बन गया।