भोजपुर जिले के महुली गंगा नदी पर बने पीपा पुल को चार महीनों यानी बाढ़ के दिनों में खोल दिया गया है

Report By: तारकेश्वर प्रसाद

आरा:जिसकी वजह से गंगा नदी के दूसरे तरफ खवासपुर के लोगों को आरा आने के लिए कई मशक्कत करनी पड़ती है। गंगा में अत्यधिक तेज धार होने की वजह से ग्रामीण नाव का सहारा लेना उचित नहीं समझते। कई लोग नाव से यात्रा करते भी है। कई ऐसे लोग है जो आरा मुख्यालय से खवासपुर जॉब करने जाते है। पुल रहने से उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती थी, लेकिन पुल खुलने के बाद नाव पर आश्रित होगा, अपना दूसरा विकल्प चुनना, लेकिन गंगा का जलस्तर बढ़ने से समस्या भी बढ़ने लगी है।

इस बार बिहार में विधानसभा चुनाव भी होने वाला है। लेकिन बिहार में चुनाव से पहले बाढ़ ने ढाबा बोल दिया है। बड़हरा के लोगों को बाढ़ का डर प्रतिवर्ष रहता है। लेकिन उससे पहले आप जरा इस ओवरलोड नाव को देखिए (तस्वीर पिछले महीने की)। एक, दो, तीन, चार नहीं बल्कि पूरे के पूरे 10 बाइक इस नाव पर लादी हुई है। नाव के दोनों ओर बाइक रखी गई है। बाइक के साथ साथ 15 से 20 लोग भी बैठे हुए है। अब सवाल यह उठता है कि क्या इन्हें जान का खतरा नहीं है। नाव पर बैठे लोगों के लिए कोई लाइफ जैकेट नहीं है। गंगा के बहाव में नाव को काफी नुकसान पहुंचता है अगर कोई अनहोनी होती है तो बड़ा खतरा हो सकता है।

महुली-खवासपुर घाट पर नावों की संख्या सीमित है। लेकिन प्रतिदिन हजारों लोग पीपा पुल खुलने के बाद नाव से सफर तय कर रहे थे। लेकिन अब लोगों की संख्या कम हो गई होगी। गंगा में पानी का जलस्तर काफी बढ़ गया है। ऐसे में अगर कोई बुनियादी सुविधा नहीं मिलती है तो कितना जोखिम उठाना पड़ता होगा। लेकिन हैरत की बात तो यह है कि यहां लोग 50 सालों से ज्यादा समय से इसी प्रकार से आते जाते रहे है। कारण रहा है कि किसी को यह समस्या लगी ही नहीं। गांव वालों के लिए मजबूरी बन गई है। किसी की तबियत खराब होती है तो उसे छपरा या तो फिर उत्तर प्रदेश ले जाया जाता है। समय पर इलाज मिला गया तो जान बच जाती है। नहीं तो मरीजों को जान गवाना पड़ता है।

कई महिला टीचर आरा मुख्यालय से खवासपुर पढ़ाने जाती है। पुल खुलने की वजह से समस्या बढ़ जाती है। नाव जब तक पूरी भर नहीं जाती तब तक खुलती नहीं है। कभी कभी समय पर नहीं पहुंच पाते थे। लोगों को (नौकरी पेशा वाले) पहले आ कर कई घंटे नाव भरने और खुलने का इंतजार करना पड़ता है। सरकार की तरफ से मदद नहीं मिल रही है। ऐसे में शिक्षक अपनी जान जोखिम में डालकर प्रतिदिन नाव से स्कूल पढ़ाने जाते थे। महिलाओं को सबसे ज्यादा समस्या का सामना करना पड़ता है। एक महिला शिक्षक भोजपुर जिले के तरारी से आती है। स्कूल पहुंचने के लिए लगभग 90 किलोमीटर का सफर तय करती है।

महिला टीचर प्रतिभा सिंह का कहना है बहुत समस्याएं हैं। पीपा पुल खुलने की वजह से बहुत इंतजार करना पड़ता है। हम लोग वहां रह भी नहीं सकते है। क्योंकि वहां रहने की सुविधा नहीं है। इसके लिए हमें यहीं करना होगा हमें उत्तर प्रदेश में बसना होगा। 

महिला टीचर ज्योति सागर का कहना है कि पीपा पुल चालू रहता है तो कोई दिक्कत नहीं होती है। हमलोग को 9:30 बजे पहुंच कर अटेंडेंस बनाना होता है। हम लोग गंगा के किनारे 9 बजे पहुंच जाते हैं। लेकिन जब तक नाव ओवरलोड नहीं होगा। तब तक नाव नहीं खुलता है। नाव पर बाइक, कभी भैंस तो कभी बकरी लदी रहती है। इतना वजन होता है नाव पर और जैसे ही गंगा का वेब बढ़ता है, हम लोग को बहुत मुश्किल होने लगता है। 

शिक्षिका ज्योति सागर बताती है कि विभाग द्वारा बहुत लोगों को बोला जाता है इस पार खवासपुर में ही रह जाओ। लेकिन वहां पर कैसे रहें। वहां ना लाइट की सुविधा है ना ही स्वास्थ्य की सुविधा है। हमारे स्कूल से महज 3 किलोमीटर पर उत्तर प्रदेश है। बहुत शिक्षक चाहते हैं उनका तबादला खवासपुर में हो जाए। जो उत्तर प्रदेश के रहने वाले है।

खवासपुर गांव के रहने वाले हरे राम सिंह का कहना है कि पीपा पुल खुलने से बहुत परेशानी होती है। कोई सुविधा भी नहीं मिलता है। वहीं अगर रात में किसी का तबीयत खराब होता है, तो हमें छपरा होकर जाना पड़ता है या तो फिर उसे उत्तर प्रदेश ले जाना पड़ता है। जिससे हमें अगर छपरा होकर के लाते हैं मरीज को तो 100 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है।

ग्रामीण रामजी शाह का कहना है कि नाव से सफर करने में डर बहुत लगता है। लेकिन मजबूरी है 20 से 25 सालों से आते जाते हैं। यही समस्या रही है। अगर गंगा नदी पर पक्का पुल बन जाए तो बहुत सुविधा होगी। क्योंकि आरा, छपरा और बलिया का यह रास्ता है। लोगों को सुविधा मिलेगा। लेकिन सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है।

हरे राम यादव बताते है कि गंगा तट के नजदीक उनका घर है। आने-जाने का आदत हो गया है। लेकिन मजबूरी भी है, कोई रास्ता नहीं है।

नाविक जितेंद्र मांझी का कहना है कि बाबा, दादा, पिता के बाद अब हम लोग नाव चला रहे हैं। बहुत समय से हम लोग नाव चलाते आ रहे हैं और सेवा कर रहे है। लेकिन हम लोग के प्रति किसी का ध्यान नहीं है। हम लोग मात्र 4 महीने नाव चलाते है। चार महीने में ही जो खर्च निकालना होता है निकलता है। लेकिन इन चार महीने में नाव का रिपेयर करने का भी पैसा हम लोग नहीं जुटा पाते। सरकार के तरफ से 30 रेट फाइनल किया गया है। लेकिन खवासपुर के तरफ से जो लोग आते हैं वह कभी 20 तो कभी 10 ही देते हैं। हम लोग रख भी लेते हैं।

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