जिला उद्योग केंद्र सुधार की आवश्यकता और भ्रष्टाचार की वास्तविकता

Report By: तारकेश्वर प्रसाद

भारत में उद्योगों के विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्तर पर औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए District Industries Centre (DIC) की स्थापना की गई थी। इस योजना की परिकल्पना उस समय के केंद्रीय उद्योग मंत्री जार्ज फर्नांडिस के कार्यकाल में की गई थी। उद्देश्य यह था कि जिले स्तर पर उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन मिले और युवाओं को रोजगार के अवसर प्राप्त हों।

लेकिन दुर्भाग्यवश, आज ज़िला उद्योग केंद्र अपने मूल मक़सद से भटक चुका है। स्थानीय स्तर पर उद्योग लगाने और प्रोत्साहन देने की बजाय यह केंद्र कई बार उद्योगपति बनने की आकांक्षा रखने वाले युवाओं और उद्यमियों के लिए रुकावट और उत्पीड़न का केंद्र बन गया है।

भ्रष्टाचार का जाल और उद्यमियों की निराशा: दुर्गेश कुमार बताते हैं मेरे निजी अनुभव से ही इस स्थिति की गंभीरता स्पष्ट होती है। साल 2007 या 2009 में PMEGP प्रोजेक्ट के लिए जब मैंने प्रयास किया, तो एक फील्ड इंस्पेक्टर ने खुले तौर पर रिश्वत की मांग की। नतीजतन, मैंने उस समय यूनिट लगाने का विचार ही त्याग दिया। भले ही उस समय उद्योग लगाने की मेरी व्यक्तिगत आवश्यकता बहुत प्रबल नहीं थी, लेकिन इस अनुभव ने यह साफ़ कर दिया कि युवा उद्यमी इसी तरह के भ्रष्ट तंत्र की वजह से निराश होकर पीछे हट जाते हैं।

यही कारण है कि मुख्यमंत्री उद्यमी योजना जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं भी जमीनी स्तर पर सफल नहीं हो पा रही हैं। युवा लाभार्थियों को अनावश्यक कागजी झंझटों, भ्रष्टाचार और आर्थिक दोहन का सामना करना पड़ता है।

प्रोजेक्ट चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता की आवश्यकता: आज ज़िला उद्योग केंद्रों की प्रोजेक्ट चयन समिति में जिन लोगों की भूमिका है, वे अक्सर पेशेवर दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वार्थ और रिश्वतखोरी की मानसिकता से काम करते हैं।
मेरी राय में इन समितियों में मैनेजमेंट कॉलेजों के प्रोफेसर्स, उद्योग जगत के प्रोफेशनल्स और ईमानदार विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिए। इससे न केवल चयन प्रक्रिया पारदर्शी होगी, बल्कि राज्य के विकास के प्रति गंभीर लोगों का योगदान भी सुनिश्चित होगा।

राजनीतिक नेतृत्व बनाम प्रशासनिक विफलता: यह बात भी उल्लेखनीय है कि बिहार में हाल के वर्षों में शाहनवाज हुसैन और संदीप पौंड्रिक ने उद्योग विभाग में काफी सकारात्मक प्रयास किए। उन्होंने बिहार में उद्योगों को नई दिशा देने का काम किया। वर्तमान में नीतीश मिश्रा भी एक कर्मठ और ईमानदार मंत्री के रूप में जाने जाते हैं।

लेकिन समस्या यह है कि जब शीर्ष स्तर का नेतृत्व अच्छा होता है, तब भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी इसे अपने लिए सुरक्षित कवच (Amrit) समझने लगते हैं। यानी, वे यह मान लेते हैं कि अच्छे नेतृत्व की वजह से उन पर कोई कठोर कार्रवाई नहीं होगी।

1. जांच और निगरानी तंत्र मजबूत किया जाए – जिला उद्योग केंद्रों की गतिविधियों की नियमित और स्वतंत्र मॉनिटरिंग होनी चाहिए।

2. भ्रष्टाचार पर कठोर कार्रवाई – रिश्वतखोर अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ त्वरित निलंबन और कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।

3. तकनीकी और प्रोफेशनल विशेषज्ञों की भागीदारी – प्रोजेक्ट चयन और निगरानी प्रक्रिया में प्रोफेशनल्स, प्रोफेसर्स और उद्योग विशेषज्ञों को जोड़ा जाए।

4. डिजिटल पारदर्शिता – योजनाओं का पूरा प्रोसेस ऑनलाइन किया जाए ताकि कागजी जाल और व्यक्तिगत हस्तक्षेप की गुंजाइश न रहे।

5. युवा उद्यमियों की शिकायत निवारण प्रणाली – सीधे उद्योग मंत्री या उच्च स्तर पर शिकायत दर्ज करने और उसका समाधान पाने का तंत्र बने।

निष्कर्ष: ज़िला उद्योग केंद्र (DIC) का उद्देश्य रोजगार सृजन और स्थानीय स्तर पर उद्योगों को प्रोत्साहन देना था। लेकिन भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और अधिकारियों की उदासीनता ने इसे उद्यमियों के लिए बाधा बना दिया है।

आज ज़रूरत है कि इस सिस्टम को बदला जाए। अगर बदलाव नहीं हुआ तो आम आदमी का गुस्सा और युवाओं की निराशा राज्य के औद्योगिक विकास को गंभीर नुकसान पहुंचाएगी।

माननीय मंत्री श्री नीतीश मिश्रा और राज्य सरकार से अपेक्षा है कि वे इस पर गहन विचार करें और ऐसी ठोस व्यवस्था बनाएं जिससे ज़मीनी स्तर पर उद्योग लगाने वाले युवाओं की वास्तविक समस्याओं का समाधान हो सके।

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