श्राद्ध पक्ष में पितृ तर्पण का महत्व और सही विधि

श्राद्ध पक्ष और पितृ तर्पण का महत्व
सनातन धर्म में श्राद्ध पक्ष, जिसे पितृ पक्ष भी कहा जाता है, अत्यंत पावन समय माना जाता है। यह वह अवधि है जब मनुष्य अपने दिवंगत पूर्वजों का स्मरण करता है और उन्हें जल, तिल एवं पिंड अर्पित करता है। शास्त्रों में वर्णन है कि पितृ तर्पण करने से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
श्राद्ध पक्ष में तर्पण करने की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का माध्यम भी है।

पितृ तर्पण करने की विधि
1. सबसे पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
2. एक पवित्र स्थान पर कुशा, तिल और जल रखें।
3. पितरों का नाम, गोत्र और संबंध लेकर तीन-तीन बार जल अर्पित करें।
4. अर्पण करते समय “तत्स्वाहा” मंत्र का उच्चारण करें।
5. तर्पण में सबसे पहले देवताओं का, फिर ऋषियों का और अंत में पितरों का स्मरण किया जाता है।
6. पिता, दादा, परदादा, माता, दादी, परदादी सहित सभी निकट संबंधियों का नाम लेकर श्रद्धा से अर्पण करना चाहिए।
7. तर्पण के दौरान दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए।
तर्पण में स्मरण किए जाने वाले पितृ और देव
शास्त्रों के अनुसार तर्पण के दौरान देव, ऋषि और दिव्य पुरुषों का भी आह्वान किया जाता है।
देवों में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इंद्र, अग्नि आदि को तर्पण दिया जाता है।
ऋषियों में मरीचि, अत्रि, वशिष्ठ, नारद आदि का स्मरण किया जाता है।
इसके बाद पिता, दादा, परदादा और मातृपक्ष के नाना-नानी, दादी-परदादी तक का स्मरण कर अर्पण करना चाहिए।

पितृ तर्पण के लाभ
पितरों की आत्मा को शांति और तृप्ति प्राप्त होती है।
परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
संतान को पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
परिवार में सद्भाव और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
जीवन में बाधाएँ दूर होती हैं और कार्य सिद्धि प्राप्त होती है।
तर्पण से जुड़े धार्मिक नियम
तर्पण के समय पूर्ण श्रद्धा और आस्था रखना सबसे आवश्यक है।
जल अर्पित करते समय बाएं हाथ का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
दक्षिण मुख होकर ही तर्पण करना चाहिए।
तर्पण के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना भी पुण्यकारी माना गया है।

श्राद्ध पक्ष में किया गया पितृ तर्पण केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि परिवार की परंपरा और पूर्वजों के प्रति आभार का प्रतीक है। मान्यता है कि इस अवधि में पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण एवं अर्पण की प्रतीक्षा करते हैं। इसलिए श्राद्ध पक्ष में तर्पण अवश्य करना चाहिए, ताकि पितरों की आत्मा को शांति मिले और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहे।