अपनत्व का अहसास – भाषा से नहीं, रिश्तों से बनता है दिलों का पुल

अपनत्व का अहसास
“तुम ने सब अच्छे से सीख लिया है न देखो कई सालों के बाद आपके मामा फ्रांस से आ रहे हैं ” रूचि ने अपने आठ साल के बेटे से ये बात की
” जी ममा ! जो आपने बताया वैसे ही बिहेव करूंगा ” तपन ने कहा
“यस एंड रिमेम्बर ट्राई टू स्पीक इन प्रॉपर वे ”
“यस ममा”
अगले दिन !!!!!
“नाम क्या है आपका ? “
तपन ने कोई उत्तर नहीं दिया
कहां पढ़ते हो बेटा ?
तपन फिर भी खामोश
बड़ा शर्मीला बच्चा है !!!!अभिसार ने कहा
“अभि ब्रो इस नॉट लाइक दैट ! तपन वाई यू आर न आंसरिंग ” रूचि ने सकुचाते हुए और तपन को घूरते हुए कहा |
“ममा आपने कहा था मामा से हिंदी में बात करके मिसबिहेव मत करना पर अंकल तो खुद मिसबिहेव कर रहे हैं , उन्हें इंग्लिश में बोलने को कहो “
तपन के उत्तर से गहरा संन्नाटा छा गया , रूचि ने अपने भाई की देखा और नजरें झुका ली !
” मुझे माफ करना अभि दादा मैंने आपको थोड़ी देर पहले ब्रो कहा था ” रूचि की आखें ये वाक्य कहते समय गीली थीं और अपनत्व का अहसास भी था |