विहंग की उड़ान

अकेला ही विहंग उड़ चला, किंकर्तव्यविमूढ़ लक्ष्य की तलाश में; हृदय की उमड़ती सनेहित लहरें भी, आध्यात्मिक ज्ञान की आश में।

मन उसका होने लगा द्रवित, जीवन के उतार चढ़ाव में; हल्के पंखों से उड़ते अनवस्त, अलौकिक ज्ञान की तलाश में।

अधूरा सा रहा गतिमान, था थककर धरा पर उतरने; नयनों के द्वारा लगे अश्रु गिरने, लक्ष्य था अवसान पर फिसलने।

लगा उसका हृदय सहसा धिक्कारने, थकना क्षणिक है पथिक प्यारे; रे! विहंग, तू पंखों में उड़ान दे, रोके नहीं पर, न रूके तेरे इरादे।

घाव गहरे थे, नभ से लड़ते-लड़ते, अनुरन्जित धारा प्रस्फुटित हुई मन में; उर की ध्वनि का अनुवाद हुआ नभ में, क्या कभी आत्म साक्षात्कार किया तूने ?

रे मतवाले : माया में तू रहा मस्त सदा, माया ठगनी तेरे हंसती सदा मन में: बाँधा स्वयं ही प्रकाश पुंज को तुमने, आकर्षण व विकर्षण से न रहा परे।

तेरे अन्दर अविस्ल गंगा की धारा तथा, तत्व की खोज ही है सच्ची यात्रा प्यारे; तत् त्वम् असि है भीतर ही समाया, शान्ति, सुख, प्रकाश भीतर ही पाया।

खोल रे विहंग, हृदय का द्वार अपना, पायेगा खुद को सच्चिदानन्द के रंग में; उज्जवलित होंगी सदा तेरी प्रेमपूर्ण आँखे, ईश्वर की मुस्ली गूँजगी अन्तः करण में।

लेखक : आत्रेय मिश्र (पी०सी०एस०) सहायक निदेशक सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग उत्तर प्रदेश, लखनऊ

Mukesh Kumar

मुकेश कुमार पिछले 3 वर्ष से पत्रकारिता कर रहे है, इन्होंने सर्वप्रथम हिन्दी दैनिक समाचार पत्र सशक्त प्रदेश, साधना एमपी/सीजी टीवी मीडिया में संवाददाता के पद पर कार्य किया है, वर्तमान में कर्मक्षेत्र टीवी वेबसाईट में न्यूज इनपुट डेस्क पर कार्य कर रहे है !

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