रामपुर के खोदकला में हजरत बैरंग शाह (Hazrat Bairang Shah) के उर्स का भव्य समापन, कुल शरीफ के बाद लंगर वितरण के साथ धार्मिक एकता का संदेश

Report By : राहुल मौर्य
रामपुर (Rampur) जिले के मसवासी (Maswasi) क्षेत्र अंतर्गत ग्राम खोदकला (Khodkala) स्थित प्रसिद्ध सूफी संत हजरत बैरंग शाह (Hazrat Bairang Shah) के उर्स का चौथे दिन कुल शरीफ (Qul Sharif) के आयोजन के साथ विधिवत समापन हो गया। उर्स के अंतिम दिन दरगाह परिसर और आसपास के क्षेत्रों में जायरीनों (Zaireen) की भारी भीड़ देखने को मिली। दूर-दराज के गांवों और जनपदों से बड़ी संख्या में अकीदतमंद दरगाह पर पहुंचे और हजरत बैरंग शाह के मजार शरीफ पर हाजिरी देकर अमन, चैन और खुशहाली की दुआएं मांगीं। पूरे आयोजन के दौरान धार्मिक सौहार्द (Religious Harmony) और भाईचारे का संदेश स्पष्ट रूप से नजर आया।
उर्स के चौथे और अंतिम दिन की शुरुआत फज्र (Fajr) की नमाज के बाद दरगाह शरीफ में कुरान ख्वानी (Quran Khwani) से हुई। सुबह से ही चादरपोशी (Chadarposhi) और मन्नत मांगने का सिलसिला लगातार चलता रहा। जायरीनों ने पूरे अदब और अकीदत के साथ मजार पर फूल, चादर और इत्र पेश किए तथा कुरान की तिलावत (Tilawat) कर अपने-अपने दिली अरमानों के लिए दुआएं मांगीं। कई लोगों ने उर्स के इस पावन मौके को अपने जीवन के लिए खास बताते हुए कहा कि यहां आने से उन्हें सुकून और मानसिक शांति मिलती है।
रविवार को पूर्वाह्न लगभग 11:00 बजे कुल शरीफ का आगाज हुआ, जिसमें क्षेत्र के प्रतिष्ठित उलेमा (Ulema) और धार्मिक विद्वानों ने शिरकत की। कुल शरीफ के दौरान मुल्क और कौम में अमन, तरक्की और भाईचारे के लिए विशेष दुआएं की गईं। इस मौके पर मुफ्ती फिराग़ अहमद नईमी (Mufti Firaag Ahmed Naeemi), सज्जादा नशीन हबीब शाह मियां (Sajjada Nashin Habib Shah Miya), हाफिज फरहान मियां (Hafiz Farhan Miya), मौलाना खुर्शीद आलम (Maulana Khurshid Alam), अहमद जान सेठ नक्शे अली, तहसीन आलम खान सहित कई गणमान्य शख्सियतें मौजूद रहीं। कुल शरीफ में शामिल लोगों ने सूफी संत हजरत बैरंग शाह की शिक्षाओं को याद करते हुए आपसी प्रेम, सेवा और इंसानियत के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।
कुल शरीफ के बाद उर्स का औपचारिक समापन किया गया, जिसके उपरांत दरगाह परिसर में लंगर (Langar) का वितरण हुआ। लंगर में सैकड़ों की संख्या में लोगों ने सहभागिता की, जिसमें सभी समुदायों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ बैठकर भोजन करते नजर आए। लंगर वितरण के दौरान स्वयंसेवकों और स्थानीय युवाओं ने व्यवस्थाओं को संभालते हुए अनुशासन बनाए रखा। आयोजन समिति के सदस्यों ने बताया कि उर्स के दौरान आने वाले हर जायरीन को सम्मान और सुविधा देना उनकी प्राथमिकता रही।
उर्स के अवसर पर दरगाह को दुल्हन की तरह सजाया गया था। रंग-बिरंगी लाइटों (Decorative Lights), फूलों और सजावटी कपड़ों से सजी दरगाह रात में विशेष रूप से आकर्षक लग रही थी। उर्स के साथ लगे मेले (Urs Fair) में भी लोगों की खासी भीड़ देखने को मिली। महिलाओं ने मीना बाजार (Meena Bazaar) में घरेलू सामान, चूड़ियां और अन्य जरूरत की चीजों की खरीदारी की, जबकि बच्चे झूलों (Swings), सर्कस (Circus) और मनोरंजन के अन्य साधनों का भरपूर आनंद लेते नजर आए। मेले ने उर्स के धार्मिक माहौल के साथ-साथ सांस्कृतिक उत्सव का रूप भी प्रदान किया।
स्थानीय लोगों और जायरीनों का कहना था कि हजरत बैरंग शाह का उर्स केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आपसी मेलजोल और सामाजिक एकता (Social Unity) का प्रतीक है। यहां हर साल विभिन्न वर्गों और समुदायों के लोग एक साथ आते हैं, जिससे आपसी समझ और भाईचारा मजबूत होता है। उर्स के सफल आयोजन के लिए दरगाह प्रबंधन समिति, स्थानीय प्रशासन और स्वयंसेवकों की भी सराहना की जा रही है, जिन्होंने सुरक्षा और व्यवस्था के दृष्टिगत बेहतर इंतजाम किए।
कुल मिलाकर, खोदकला में आयोजित हजरत बैरंग शाह के उर्स का यह चार दिवसीय आयोजन आस्था, श्रद्धा और सांस्कृतिक समरसता का जीवंत उदाहरण बनकर सामने आया। कुल शरीफ और लंगर वितरण के साथ उर्स का समापन जरूर हो गया, लेकिन जायरीनों के दिलों में सूफी परंपरा की गूंज और इंसानियत का संदेश लंबे समय तक बना रहेगा।





