जमीनी विवाद में पत्रकार परिवार पर बर्बर हमला, 72 घंटे बाद भी FIR Pending — पुलिस पर निष्पक्ष कार्रवाई न करने के आरोप तेज

Report By : आसिफ अंसारी

जंगीपुर थाना क्षेत्र के नसीरपुर गांव में जमीनी विवाद (Land Dispute) को लेकर एक पत्रकार (Journalist) और उसके परिवार पर हुए बर्बर हमले ने स्थानीय पुलिस प्रशासन की कार्यशैली (Police Functioning) पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। गुरुवार 4 दिसंबर 2025 की शाम लगभग 6 बजे यह घटना तब हुई जब पत्रकार जयप्रकाश चंद्रा अपने खेत में धान की ओसाई कर रहे थे। आरोप है कि विवादित जमीन को लेकर पूर्व से ही चली आ रही रंजिश के बीच पट्टीदारों ने सुनियोजित तरीके से अचानक हमला (Planned Assault) कर दिया। परिजनों के अनुसार हमलावर लाठी-डंडों और धारदार हथियारों (Sharp Weapons) से लैस थे और उन्होंने पूरे परिवार को निशाना बनाते हुए बेरहमी से पीटा। इस हमले में पत्रकार जयप्रकाश चंद्रा और उनके कई परिजन गंभीर रूप से घायल हो गए, जिनमें दो की हालत बेहद चिंताजनक बताई जा रही है।

हमले के तुरंत बाद पीड़ित परिवार ने 112 इमरजेंसी सेवा (Emergency Helpline) पर कॉल कर पुलिस को सूचना दी। ग्रामीणों का कहना है कि घटना की गंभीरता को देखते हुए मौके पर तुरंत कार्रवाई (Immediate Action) की अपेक्षा थी, लेकिन पुलिस की प्रतिक्रिया न सिर्फ धीमी रही बल्कि बाद की कार्यवाही भी सवालों के घेरे में रही। परिजनों ने बताया कि जब घायल पत्रकार और परिवारजन थाने पहुँचे तो FIR दर्ज करने (FIR Registration) के बजाय उन्हें मेडिकल कराने के निर्देश देकर वापस लौटा दिया गया। जिला अस्पताल में प्राथमिक इलाज के बाद पत्रकार और उनके भाई को गंभीर चोटों की वजह से वाराणसी ट्रॉमा सेंटर रेफर किया गया, जहाँ वर्तमान में वाराणसी के एक निजी अस्पताल (Private Hospital) में उनका इलाज जारी है।

पीड़ितों का आरोप है कि अगले दिन 5 दिसंबर को जब वे थाने में तहरीर देने पहुँचे, तो पुलिस ने उनकी शिकायत को प्राथमिकता देने के बजाय पहले विपक्षी पक्ष की FIR दर्ज कर ली। इस कदम को ग्रामीण “एकतरफा कार्रवाई” (One-Sided Action) और “पुलिस निष्पक्षता पर सवाल” (Question on Police Fairness) के रूप में देख रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस पर राजनीतिक दबाव (Political Pressure) होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता, इसलिए पत्रकार की तहरीर को अनदेखा किया गया और गंभीर आरोपों पर कोई ठोस कानूनी कदम नहीं उठाया गया। इस पूरे प्रकरण पर जनाक्रोश (Public Anger) बढ़ता जा रहा है और लोग पुलिस की लापरवाही (Police Negligence) के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।

गांव के लोगों का कहना है कि पत्रकार जयप्रकाश चंद्रा लंबे समय से समाजिक मुद्दों को उठाते रहे हैं, जिससे कई लोग उनसे रंजिश रखते थे। ग्रामीणों के अनुसार इस हमले को मात्र जमीनी विवाद कहना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि यह पत्रकारिता से जुड़े दबावों और पूर्व वैमनस्य (Previous Enmity) का सम्मिलित परिणाम भी हो सकता है। घटना क्षेत्र में आम चर्चा है कि यदि पुलिस समय पर हस्तक्षेप करती और निष्पक्ष व पारदर्शी जांच (Transparent Investigation) सुनिश्चित करती, तो हालात इतने नहीं बिगड़ते।

पीड़ित परिवार का कहना है कि उन्होंने उच्चाधिकारियों से न्याय की मांग (Demand for Justice) करते हुए आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी (Immediate Arrest) की अपील की है। परिवार के सदस्यों का आरोप है कि हमलावर खुलेआम घूम रहे हैं और पुलिस द्वारा उनके खिलाफ अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। इस देरी से न सिर्फ अपराधियों के हौसले बुलंद हुए हैं, बल्कि पत्रकार परिवार लगातार भय और असुरक्षा (Fear & Insecurity) में जीने को मजबूर है। परिजन उच्च स्तर की जांच और आरोपियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि पुलिस द्वारा 72 घंटे से अधिक समय बीतने के बावजूद FIR दर्ज न करना (FIR Pending) पुलिसिया निष्क्रियता का स्पष्ट संकेत है। विशेषज्ञों का मानना है कि किसी भी हमले, विशेषकर पत्रकार जैसे संवेदनशील पेशे (Sensitive Profession) से जुड़े व्यक्ति के मामले में त्वरित न्याय प्रक्रिया (Swift Justice Process) अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेकिन इस मामले में न सिर्फ देरी हुई, बल्कि पीड़ित पक्ष को बार-बार परेशान किया गया, जिससे प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर संदेह पैदा हो गया है।

घटना के बाद गाँव में तनावपूर्ण माहौल (Tensed Atmosphere) है और लोग लगातार पुलिस की ओर देख रहे हैं कि कब निष्पक्ष और सख्त कार्रवाई होगी। सोशल मीडिया (Social Media) पर भी यह मामला तेजी से वायरल हो रहा है और लोग पत्रकार पर हुए हमले की कड़ी निंदा कर रहे हैं। पत्रकार संगठनों (Journalist Associations) ने इसे लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला बताते हुए जल्द से जल्द निष्पक्ष जांच की मांग की है। उनका कहना है कि पत्रकारिता पर हमला सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं बल्कि पूरे लोकतांत्रिक ढांचे (Democratic Structure) पर हमला माना जाना चाहिए।

इस मामले ने एक बार फिर प्रदेश में कानून-व्यवस्था (Law & Order) और पुलिस कार्यशैली को कठघरे में खड़ा कर दिया है। सवाल यह है कि क्या पीड़ित परिवार को समय पर न्याय मिलेगा? क्या पुलिस राजनीतिक या स्थानीय दबाव से मुक्त होकर निष्पक्ष कार्रवाई करेगी? और क्या अपराधियों को जल्द पकड़कर न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) को आगे बढ़ाया जाएगा? इन सभी सवालों का जवाब आने वाले दिनों में सामने आएगा, लेकिन फिलहाल पत्रकार परिवार न्याय की प्रतीक्षा में है और ग्रामीण प्रशासन से सख्त कदम उठाने की अपेक्षा कर रहे हैं।

Mukesh Kumar

मुकेश कुमार पिछले 3 वर्ष से पत्रकारिता कर रहे है, इन्होंने सर्वप्रथम हिन्दी दैनिक समाचार पत्र सशक्त प्रदेश, साधना एमपी/सीजी टीवी मीडिया में संवाददाता के पद पर कार्य किया है, वर्तमान में कर्मक्षेत्र टीवी वेबसाईट में न्यूज इनपुट डेस्क पर कार्य कर रहे है !

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