आरएसएस का सख्त मैसेज: योगी पर सवाल उठाया तो ‘बागी’ माने जाएंगे, हिंदू (Hindu) यूनिटी (Unity) बिगाड़ने वाली हर अनबन (Rift) पर कंट्रोल, लखनऊ (Lucknow) मीटिंग से निकला इनसाइड (Inside)

Report By : कर्मक्षेत्र टीवी डेस्क टीम (Karmkshetra TV Desk Team)
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजनीति में इन दिनों जो सबसे अहम मैसेज घूम रहा है, वह सिर्फ चुनावी रणनीति (Electoral Strategy) तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे संघ परिवार (Sangh Parivar) के भीतर अनुशासन (Discipline), एकजुटता (Unity) और पब्लिक मैसेजिंग (Public Messaging) को लेकर है।�� लखनऊ और अन्य शहरों में हाल ही में हुई आरएसएस (RSS) और बीजेपी (BJP) की क्लोज़‑डोर (Closed-Door) बैठकों से साफ संकेत निकला है कि आने वाले समय में अगर कोई भी नेता, गुट या बयान हिंदू एकता (Hindu Unity) को नुकसान पहुंचाने वाला या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) की लीडरशिप पर प्रश्नचिह्न लगाने वाला दिखा, तो उसे संगठन के भीतर सीधी चुनौती और संभावित ‘बगावत’ (Rebellion) की तरह देखा जाएगा।��इन बैठकों में शामिल सूत्रों के हवाले से जो तस्वीर बन रही है, उसके मुताबिक आरएसएस नेतृत्व ने साफ कर दिया है कि उत्तर प्रदेश में 2027 विधानसभा चुनाव (Assembly Elections 2027) का चेहरा योगी आदित्यनाथ ही रहेंगे और बीजेपी के भीतर इस मैसेज पर खुलकर या परोक्ष रूप से सवाल उठाने वालों को अनुशासन के दायरे में लाया जाएगा।�� संघ की ओर से यह भी दोहराया गया कि हिंदू समाज में फूट, जातीय खांचे (Caste Divisions) या आंतरिक बयानबाज़ी को हवा देने वाली हर सूचना और ‘अनबन की खबर’ (Reports of Rift) को तुरंत कंट्रोल (Control) और करेक्टिव लाइन (Corrective Line) से हैंडल किया जाए।��आरएसएस के शीर्ष पदाधिकारियों ने हाल के महीनों में यूपी के मंत्रियों, बीजेपी पदाधिकारियों और ज़मीनी कार्यकर्ताओं से अलग‑अलग राउंड में फीडबैक (Feedback) लिया, जिसमें सरकार के कामकाज (Governance), संगठन की पकड़ (Organisation Strength) और समाज में संदेश (Perception) जैसे पहलू प्रमुख रहे।� इन बैठकों के बाद जो सबसे मजबूत सिग्नल सामने आया, वह यह था कि भाजपा की लोकसभा सीटें (Lok Sabha Seats) कम होने के बाद भी यूपी को राष्ट्रीय राजनीति (National Politics) के लिए ‘कोर स्टेट’ (Core State) माना जा रहा है और यहां किसी तरह का संगठनात्मक ड्रिफ्ट (Organisational Drift) या लीडरशिप को लेकर कन्फ्यूज़न (Confusion) स्वीकार्य नहीं होगा।��आरएसएस और बीजेपी की कोऑर्डिनेशन (Coordination) मीटिंगों में एक साझा लाइन यह रखी गई कि हिंदुत्व (Hindutva) का एजेंडा अब सिर्फ इमोशनल अपील (Emotional Appeal) तक सीमित नहीं रह सकता, बल्कि इसे सुशासन (Good Governance), लॉ‑एंड‑ऑर्डर (Law and Order), कल्याणकारी योजनाओं (Welfare Schemes) और सोशल हार्मनी (Social Harmony) से जोड़कर पेश करना होगा।�� इस संदर्भ में योगी आदित्यनाथ के ‘बटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे तो नेक रहेंगे’ (Divided We Fall, United We Stand) वाले स्लोगन को संघ नेतृत्व ने सार्वजनिक मंचों पर समर्थन देकर यह मैसेज दिया कि हिंदू एकता पर कोई दो राय नहीं हो सकती और यह लाइन ही यूपी में राजनीतिक और वैचारिक धुरी (Axis) रहेगी।��हाल के समय में बीजेपी की अंदरूनी राजनीति में मुख्यमंत्री और कुछ अन्य नेताओं के बीच ‘सूक्ष्म तनाव’ (Subtle Tensions) और पावर सेंटर (Power Centres) की चर्चाएं भी उभरती रही हैं, जिन्हें विपक्ष (Opposition) ने बार‑बार हवा देने की कोशिश की।�� संघ ने इन खबरों पर नाराज़गी जताते हुए साफ किया कि किसी भी तरह की मीडिया लीक (Media Leak), ऑफ‑द‑रिकॉर्ड ब्रीफिंग (Off-the-Record Briefing) या सोशल मीडिया (Social Media) पर ऐसे नैरेटिव (Narrative) फैलाना, जो हिंदू वोट बैंक (Hindu Vote Bank) को भ्रमित करे या योगी की इमेज (Image) को कमज़ोर दिखाए, उसे संगठनात्मक अनुशासनहीनता (Indiscipline) की श्रेणी में रखा जाएगा।��यूपी के संदर्भ में संघ‑भाजपा संबंधों का हालिया इतिहास देखें तो 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) में उम्मीद से कम प्रदर्शन के बाद यह चर्चा तेज हुई थी कि क्या आरएसएस और बीजेपी के बीच ‘डिस्कनेक्ट’ (Disconnect) पैदा हो गया है।�� लेकिन इसके तुरंत बाद प्रधानमंत्री स्तर से लेकर संगठन के शीर्ष तक, संघ की भूमिका की सार्वजनिक तारीफ और ग्रासरूट स्तर पर स्वयंसेवकों (Volunteers) को दोबारा एक्टिव करने की कवायद ने संकेत दिया कि दोनों के बीच मतभेदों (Differences) को अब ‘क्लोज्ड चैप्टर’ (Closed Chapter) माना जाए।��लखनऊ, गाज़ियाबाद और अन्य शहरों में हुई समन्वय बैठकें (Coordination Meetings) इसी ‘रिसेट’ (Reset) की अगली कड़ी मानी जा रही हैं, जिनमें साफ किया गया कि यूपी में चुनावी तैयारी (Election Preparation) अभी से शुरू होगी और हर स्तर पर एक ‘यूनिफाइड मैसेज’ (Unified Message) सार्वजनिक होगा।�� इस यूनिफाइड मैसेज के तीन मुख्य स्तंभ बताए गए – हिंदू समाज की सुरक्षा और एकता (Security and Unity), विकास और सुशासन (Development and Governance), तथा सामाजिक समरसता (Social Harmony) के जरिए ओबीसी (OBC), दलित (Dalit) और अन्य समुदायों का भरोसा मजबूत करना।��इसी स्ट्रैटजी के तहत आरएसएस ने 2026 में लखनऊ में होने वाले बड़े हिंदू कन्वेंशन (Hindu Convention Lucknow) को अपने शताब्दी वर्ष (Centenary Year) के प्रमुख शो‑पीस (Showpiece) इवेंट के रूप में प्लान किया है, जहां योगी आदित्यनाथ को एक मजबूत हिंदुत्व फेस (Hindutva Face) के तौर पर प्रोजेक्ट करने की तैयारी चल रही है।�� इस कन्वेंशन के पांच प्रमुख थीम – सामाजिक सौहार्द (Social Harmony), सशक्त परिवार (Strong Families), प्रकृति संरक्षण (Nature Protection), भारतीय आचरण (Indian Conduct) और नागरिक जिम्मेदारी (Civic Responsibility) – तय किए गए हैं, जिनके ज़रिए हिंदू समाज को ‘संस्कृति प्लस गवर्नेंस’ (Culture plus Governance) मॉडल से जोड़ा जाएगा।��संघ की आंतरिक मीटिंगों में यह प्रश्न भी उठा कि क्या लगातार बढ़ती राजनीतिक प्रतिस्पर्धा (Political Competition) और सोशल मीडिया की पोलराइज़्ड (Polarised) बहसें हिंदू समाज के भीतर ही अनावश्यक विभाजन (Unnecessary Divisions) पैदा कर रही हैं।�� इस पर नेतृत्व की राय रही कि वैचारिक बहस (Ideological Debate) अलग चीज़ है, लेकिन हिंदू बनाम हिंदू (Hindu vs Hindu) या अपने ही समाज के भीतर अविश्वास (Distrust) पैदा करना संगठन के मूल उद्देश्य (Core Objective) के खिलाफ है, इसलिए ऐसे प्रयोगों को कतई प्रोत्साहन नहीं दिया जाएगा।��यही कारण है कि यूपी में संघ‑भाजपा की मीटिंगों में मीडिया हैंडलिंग (Media Handling) और नैरेटिव मैनेजमेंट (Narrative Management) पर भी अलग से चर्चा की गई।�� नेताओं को समझाया गया कि टीवी डिबेट (TV Debate), सोशल मीडिया पोस्ट (Social Media Posts) या लोकल मीटिंगों (Local Meetings) में कोई भी स्टेटमेंट (Statement) ऐसा न आए, जिससे यह संदेश जाए कि योगी मॉडल (Yogi Model) पर पार्टी या संघ के भीतर दो राय हैं, क्योंकि विरोधी खेमे (Opposition Camp) का पूरा जोर इसी बिंदु को भुनाने पर है।��इस पूरी कवायद में एक और महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि संघ अब ओबीसी और दलित समुदायों के बीच अपनी पकड़ और व्यापक करना चाहता है, जिन्हें उसने पिछले एक दशक में हिंदुत्व आधारित ‘सोशल कोएलिशन’ (Social Coalition) में जोड़ा है।�� इसके लिए स्वयंसेवकों को निर्देश दिए गए कि बस्तियों (Settlements), गांवों (Villages) और शहरी झुग्गियों (Urban Slums) में नियमित संपर्क (Regular Contact) बढ़ाया जाए, स्थानीय मुद्दों (Local Issues) पर सुनवाई हो और सरकारी योजनाओं की जानकारी (Scheme Awareness) पहुंचाई जाए, ताकि यह संदेश मजबूत हो कि हिंदू एकता का मतलब सिर्फ किसी एक जाति (Single Caste) या वर्ग का वर्चस्व (Dominance) नहीं, बल्कि सबका प्रतिनिधित्व (Representation) है।��योगी आदित्यनाथ की भूमिका पर अगर खास तौर पर नज़र डालें, तो संघ ने उन्हें कानून‑व्यवस्था (Law and Order), धार्मिक स्थलों (Religious Sites) और हिंदू हितों (Hindu Interests) के सख्त संरक्षक (Strict Enforcer) के रूप में पब्लिक इमेज (Public Image) में आगे बढ़ाने का प्रयास किया है।�� मथुरा (Mathura) की बैठक में आरएसएस जनरल सेक्रेटरी दत्तात्रेय होसबाले (Dattatreya Hosabale) द्वारा योगी के स्लोगन को दोहराना और यह कहना कि हिंदू समाज की एकता जीवनपर्यंत प्रतिबद्धता (Lifetime Pledge) है, इस बात की पुष्टि करता है कि संगठन योगी की ‘फ्रंटलाइन पोज़िशनिंग’ (Frontline Positioning) से सहज है।��फिर भी, सत्ता और संगठन के बीच स्वाभाविक टकराव (Natural Tensions) को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता, खासकर तब जब टिकट वितरण (Ticket Distribution), नौकरशाही पर पकड़ (Bureaucratic Control) और क्षेत्रीय संतुलन (Regional Balance) जैसे प्रश्न सामने आएंगे।� इसी पृष्ठभूमि में आरएसएस ने यह मॉडल सुझाया है जिसे वे ‘त्रिवेणी समन्वय’ (Triveni Coordination) कह रहे हैं – सरकार (Government), पार्टी (Party) और संघ (Organisation) के बीच त्रिस्तरीय संवाद (Three-level Dialogue), ताकि किसी भी मतभेद (Disagreement) को मीडिया की सुर्खी बनने से पहले ही इन‑हाउस (In-house) सुलझा लिया जाए।�इस मॉडल के तहत मंत्रियों को सलाह दी गई है कि वे अपने-अपने प्रभार वाले जिलों (Districts) में संघ प्रतिनिधियों (RSS Representatives) और स्थानीय संगठन पदाधिकारियों से नियमित मुलाकात (Regular Meetings) करें, ज़मीनी शिकायतों (Ground Complaints) को सुनें और पॉलिसी इम्प्लीमेंटेशन (Policy Implementation) पर समय‑समय पर रिपोर्ट (Report) दें।� स्रोतों के मुताबिक उन विधायकों (MLAs) और नेताओं पर भी निगरानी बढ़ाई जाएगी, जिन पर आरोप है कि वे जनता से कटे (Disconnected) हैं या समय रहते फीडबैक ऊपर नहीं पहुंचाते, क्योंकि ऐसे मामलों ने 2024 में कई सीटों पर नुकसान (Electoral Damage) कराया।��हिंदू एकता के सवाल पर संघ ने बंगाल (West Bengal), कर्नाटक (Karnataka) और अन्य राज्यों के हालिया अनुभवों को भी यूपी के संदर्भ में उदाहरण (Case Studies) के रूप में पेश किया है।�� इन उदाहरणों से यह मैसेज दिया गया कि जब भी हिंदू समाज जातीय, क्षेत्रीय या व्यक्तिगत आकांक्षाओं (Personal Ambitions) के आधार पर बिखरा, तब वैचारिक परियोजना (Ideological Project) और राजनीतिक परिणाम, दोनों को नुकसान हुआ, जबकि एकजुटता (Consolidation) की स्थिति में नीतिगत फैसले (Policy Decisions) और चुनावी नतीजे (Poll Results) दोनों मजबूत रहे।��उधर, विपक्ष ने इन बैठकों और संदेशों को ‘कंट्रोल पॉलिटिक्स’ (Control Politics) का नाम देते हुए आरोप लगाया है कि बीजेपी और आरएसएस सत्ता बचाने के लिए लोकतांत्रिक असहमति (Democratic Dissent) को ‘बगावत’ (Rebellion) की तरह पेश कर रहे हैं।� विपक्षी दलों का तर्क है कि हिंदू वोट बैंक की एकता के नाम पर असली मुद्दों – बेरोजगारी (Unemployment), महंगाई (Inflation), किसानों की दिक्कतें (Farmers’ Issues), और सामाजिक न्याय (Social Justice) – को साइडलाइन (Sideline) किया जा रहा है, हालांकि सत्तापक्ष इसे ‘नैरेटिव वॉर’ (Narrative War) से ज़्यादा कुछ नहीं मानता।��बीजेपी और संघ की लाइन यह रही है कि हिंदू एकता का मतलब किसी और समुदाय के खिलाफ खड़ा होना नहीं, बल्कि अपने समाज के भीतर आत्मविश्वास (Self-confidence) और सुरक्षा‑बोध (Sense of Security) पैदा करना है, ताकि विकास (Development) और स्थिर शासन (Stable Governance) के लिए अनुकूल माहौल (Conducive Environment) बन सके।�� पार्टी का तर्क है कि अगर हिंदू समाज लगातार आंतरिक खींचतान (Internal Conflicts) में उलझा रहेगा तो बाहरी चुनौतियों (External Challenges) पर फोकस (Focus) कमजोर पड़ेगा, इसलिए अनुशासन और यूनिटी को लेकर सख्त संदेश अनिवार्य (Necessary) हैं।��राजनीतिक विश्लेषकों (Political Analysts) की राय में, योगी आदित्यनाथ को 2027 के लिए चेहरा घोषित करने जैसे संकेत, एक तरफ़ उन्हें मजबूत बनाते हैं, तो दूसरी तरफ़ संभावित दावेदारों (Potential Contenders) के बीच असंतोष (Resentment) भी जगा सकते हैं, जिसे मैनेज करना संगठन के लिए सबसे बड़ी कसौटी (Biggest Test) होगा।�� यही कारण है कि हर मीटिंग में ‘कलेक्टिव फेस’ (Collective Face) और ‘कलेक्टिव रिस्पॉन्सिबिलिटी’ (Collective Responsibility) जैसे शब्दों पर ज़ोर दिया गया, ताकि यह धारणा न बने कि पूरी राजनीति सिर्फ एक व्यक्ति‑केंद्रित (Personality-centric) हो गई है, भले ही चुनावी ब्रांडिंग (Electoral Branding) में वही चेहरा प्रमुख दिखे।��आने वाले महीनों में जब 2026 का बड़ा हिंदू कन्वेंशन, आरएसएस की शताब्दी कार्यक्रम श्रृंखला (Centenary Programmes) और बीजेपी के बूथ स्तर (Booth Level) पर चलने वाले अभियान (Campaigns) तेज़ होंगे, तब यह और साफ होगा कि संघ का यह मैसेज – “योगी पर सवाल उठाओगे तो बागी माने जाओगे” – सिर्फ आंतरिक चेतावनी (Internal Warning) है या इसे पब्लिक नैरेटिव (Public Narrative) के रूप में भी आकार दिया जाता है।�� फिलहाल संकेत यही हैं कि संगठन किसी भी कीमत पर हिंदू समाज में एकता की इमेज (Image of Unity) और योगी मॉडल की कॉन्टिन्यूइटी (Continuity) के साथ अगले चुनाव में उतरना चाहता है, ताकि यूपी की राजनीतिक प्रयोगशाला (Political Laboratory) से निकला मैसेज राष्ट्रीय राजनीति में भी प्रभावी बना रहे।





