50 करोड़ से अधिक खर्च के बावजूद आम आदमी को बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं

Report By: तारकेश्वर प्रसाद
राजद नेता एवं जगदीशपुर के पूर्व विधायक भाई दिनेश ने भोजपुर जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि जिले के उप स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र, राजकीय स्वास्थ्य केंद्र, अनुमंडल अस्पताल एवं सदर अस्पताल पर प्रतिमाह 50 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जनता के टैक्स के पैसे से खर्च की जा रही है, लेकिन इसके बावजूद आम लोगों को संतोषजनक और गुणवत्तापूर्ण इलाज उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। यह स्थिति न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करती है।
भाई दिनेश ने आरोप लगाया कि सरकारी अस्पतालों में पदस्थापित कुछ चिकित्सक मरीजों को इलाज के लिए निजी अस्पतालों और निजी क्लिनिकों में बुला रहे हैं। उन्होंने इसे जनता के साथ घोर अन्याय बताते हुए कहा कि जब डॉक्टर सरकारी वेतन ले रहे हैं, तो वे निजी प्रैक्टिस कैसे कर सकते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि इतने बड़े पैमाने पर खर्च के बावजूद जिला प्रशासन और राज्य सरकार इस गंभीर मुद्दे पर मौन क्यों साधे हुए हैं।
पूर्व विधायक ने विशेष रूप से आरा सदर अस्पताल का जिक्र करते हुए कहा कि वहां से मरीजों को चिकित्सकों द्वारा निजी क्लिनिकों में भेजे जाने की लगातार शिकायतें मिल रही हैं। उन्होंने कहा कि यह मामला जिला पदाधिकारी भोजपुर और सिविल सर्जन के संज्ञान में अवश्य होना चाहिए, क्योंकि जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था की निगरानी और सुधार की जिम्मेदारी इन्हीं अधिकारियों पर है। उन्होंने इस पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच कर दोषी चिकित्सकों पर त्वरित कार्रवाई की मांग की।
उन्होंने आगे कहा कि जिले के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी, अव्यवस्था और कमजोर प्रबंधन के कारण मरीजों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। कई बार मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता, जिससे उनकी स्थिति और गंभीर हो जाती है। ऐसे हालात में स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन को केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित न रहते हुए जमीनी स्तर पर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
भाई दिनेश ने सवाल उठाया कि सरकारी अस्पताल में नियुक्त डॉक्टरों द्वारा निजी क्लिनिक चलाना सरकार के नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। उन्होंने पूछा कि क्या सरकार ऐसे डॉक्टरों पर सख्त कार्रवाई करेगी, जो सरकारी वेतन लेने के बावजूद निजी क्लिनिक के नाम पर मनमानी फीस वसूल रहे हैं और जांच व दवाइयों के नाम पर मरीजों का शोषण कर रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या काफी अधिक है। ऐसे गरीब परिवार समय पर बेहतर इलाज नहीं करा पाते और कई बार इलाज के अभाव में अपनी जान गंवा देते हैं। इसके बावजूद गांव-गांव में बिना मान्यता के क्लिनिक खुले हुए हैं, जहां बिना उचित जांच के दवाइयां और इंजेक्शन देकर लोगों की जान से खिलवाड़ किया जा रहा है, जबकि सरकार और प्रशासन इस पर आंख मूंदे बैठे हैं।
अंत में भाई दिनेश ने कहा कि यदि ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था को ही सुशासन कहा जा रहा है, तो यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग से पुनः मांग की कि तत्काल हस्तक्षेप कर सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए, दोषी डॉक्टरों पर कार्रवाई हो और आम जनता को उसका हक — बेहतर और सुलभ स्वास्थ्य सेवा — सुनिश्चित किया जाए।





