सीवान के डॉ. आदित्य सिंह का कमाल: पहले प्रयास में यूपीएससी में 545वीं रैंक हासिल कर जिले का नाम किया रोशन

Report By : स्पेशल डेस्क
सीवान जिले के रघुनाथपुर प्रखंड के डमनपुरा गांव के रहने वाले डॉ. आदित्य सिंह ने अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी 2024 की परीक्षा में 545वीं रैंक हासिल कर ली है। यह केवल एक रैंक नहीं, बल्कि एक छोटे से गांव से निकल कर देश की सबसे कठिन परीक्षा में सफलता की बड़ी उपलब्धि है। उनके चयन के बाद गांव में जश्न का माहौल है और परिवार गर्व से भरा हुआ है। उनके पिता कमल देव सिंह एक सेवानिवृत्त शिक्षक हैं। उनके बेटे की इस बड़ी सफलता ने पूरे गांव और जिले का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है।
डॉ. आदित्य की शिक्षा का सफर भी प्रेरणादायक रहा है। उन्होंने 2010 में गोरखपुर से दसवीं की पढ़ाई की थी, जिसमें उन्हें 98% अंक प्राप्त हुए। इसके बाद 2012 में बनारस से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की, जहाँ उन्होंने 95% अंक हासिल किए। उनकी मेहनत और लगन उन्हें मेडिकल क्षेत्र की ओर ले गई। उन्होंने एमबीबीएस की कठिन परीक्षा पास की और उनका ऑल इंडिया रैंक 2000 रहा। इसके बाद 2019 में उन्होंने नई दिल्ली से नीट पीजी क्लियर करके ऑर्थोपेडिक स्पेशलिस्ट बने। डॉक्टर बनने के बाद वे लगभग ढाई लाख रुपए महीने की सैलरी पर एक अच्छी नौकरी कर रहे थे।
डॉ. आदित्य सिंह की जिंदगी में बदलाव लाने वाला पल कोरोना महामारी के दौरान आया। जब उन्होंने अस्पतालों में मरीजों की हालत और सरकारी व्यवस्थाओं की बदहाली देखी, तो उनका मन विचलित हो गया। उन्होंने महसूस किया कि सिर्फ डॉक्टर बनकर वे जितना बदलाव लाना चाहते हैं, उतना नहीं कर पाएंगे। इस अनुभव ने उन्हें यूपीएससी की ओर मोड़ दिया। उन्होंने ठान लिया कि वे सिविल सेवा में जाकर व्यवस्था सुधार का हिस्सा बनेंगे।
इस कठिन निर्णय के बाद उन्होंने पूरे समर्पण और अनुशासन के साथ यूपीएससी की तैयारी शुरू की। पढ़ाई के लिए उन्होंने अपनी आरामदायक नौकरी छोड़ दी और एक सामान्य छात्र की तरह फिर से पढ़ाई में जुट गए। उन्होंने बताया कि एक डॉक्टर होने के बावजूद अस्पताल में आने वाले मरीजों की दशा देखकर वे कई बार अंदर से टूट जाते थे। यही सोच उन्हें आगे बढ़ाती रही।
डॉ. आदित्य अपनी सफलता का श्रेय अपने दादा को देते हैं। वे बताते हैं कि उनके दादा की इच्छा थी कि वे सिविल सेवा में जाएं। हालांकि उन्होंने शुरुआत में मेडिकल क्षेत्र चुना था, लेकिन अंत में दादा की इच्छा भी पूरी हुई। दुख की बात यह रही कि जिस दिन उनका यूपीएससी मेंस का एग्जाम था, उसी दिन उनके दादा जी का निधन हो गया। यह उनके लिए बहुत बड़ा झटका था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और परीक्षा देने निकल पड़े। वे बताते हैं कि मेंस परीक्षा से पहले एक महीने तक उन्होंने दादा जी की सेवा की थी, और उनका जाना उन्हें अंदर से तोड़ गया था, लेकिन उन्होंने खुद को संभाला।
डॉ. आदित्य का मानना है कि यूपीएससी की परीक्षा में सफलता के लिए त्याग, अनुशासन और समय प्रबंधन बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि इस परीक्षा की तैयारी में कई बार अपनी निजी जिंदगी और आराम को छोड़ना पड़ता है। पाठ्यक्रम बहुत बड़ा होता है और लगातार मेहनत ही सफलता दिला सकती है। आत्म-नियंत्रण और फोकस बहुत जरूरी होता है।
डॉ. आदित्य सिंह की यह सफलता उन सभी युवाओं के लिए एक प्रेरणा है, जो सिविल सेवा की तैयारी कर रहे हैं या जीवन में कोई बड़ा सपना देख रहे हैं। एक गांव के साधारण परिवार से निकलकर देश की सबसे कठिन परीक्षा में सफलता पाना यह साबित करता है कि अगर इरादा पक्का हो तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रहता।
उनकी यह यात्रा हमें यह भी सिखाती है कि मुश्किल समय में भी हिम्मत और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ा जाए तो मंजिल जरूर मिलती है। आज डॉ. आदित्य सिंह सिर्फ अपने परिवार के ही नहीं, बल्कि पूरे जिले के आदर्श बन चुके हैं।