यमुनोत्री धाम: सूर्यकुंड में चावल उबालकर यात्री प्रसाद के रूप में ले जाते हैं घर, जानें क्या है मान्यता

Report By:धर्मक्षेत्र डेस्क
यमुनोत्री धाम, जो भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित है, हिन्दू धर्म के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। यहाँ प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु भगवान यमुनाजी के दर्शन करने और उनके पवित्र जल का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं। यमुनोत्री के मुख्य आकर्षणों में से एक है सूर्यकुंड, जो इस पवित्र धाम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
सूर्यकुंड का महत्व:
सूर्यकुंड, यमुनोत्री मंदिर से कुछ दूर स्थित एक गर्म जल स्रोत है। यहाँ का पानी गर्म और सल्फर से भरपूर होता है, जो औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है। श्रद्धालु इस गर्म पानी का उपयोग न केवल स्नान के लिए करते हैं, बल्कि यहाँ की विशेष मान्यता के अनुसार चावल उबालने की परंपरा भी है। श्रद्धालु सूर्यकुंड के गर्म पानी में चावल उबालकर उसे प्रसाद के रूप में घर ले जाते हैं।
क्या है मान्यता: यमुनोत्री धाम में सूर्यकुंड के जल का बहुत बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। मान्यता है कि भगवान यमुनाजी के आशीर्वाद से यहाँ का पानी एक विशेष प्रकार की शक्ति से परिपूर्ण है। श्रद्धालु इस जल में चावल उबालते हैं और इसे प्रसाद के रूप में अपने घरों में लेकर जाते हैं। यह प्रसाद पवित्र माना जाता है और इसे खाने से मनुष्य को पुण्य की प्राप्ति होती है।
मान्यता के अनुसार, जो श्रद्धालु यहाँ सूर्यकुंड में चावल उबालते हैं और उसे घर लेकर जाते हैं, उनके घर में सुख-शांति बनी रहती है और भगवान यमुनाजी की कृपा बनी रहती है। यही कारण है कि हर साल लाखों यात्री यहाँ आते हैं और इस धार्मिक क्रिया को करते हैं।
कैसे उबालते हैं चावल: श्रद्धालु सबसे पहले सूर्यकुंड के पास स्थित गर्म जल में चावल डालते हैं। पानी का तापमान बहुत अधिक होता है, जिससे चावल तेजी से उबलने लगते हैं। इस उबले हुए चावल को फिर श्रद्धालु प्रसाद के रूप में एकत्रित करते हैं और इसे अपने साथ घर ले जाते हैं। माना जाता है कि ये चावल यमुनाजी के आशीर्वाद से शुद्ध और पवित्र हो जाते हैं।
प्रसाद का महत्व: यह प्रसाद केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि इसे लेकर एक गहरी आस्था और विश्वास जुड़ा हुआ है। यमुनोत्री के पवित्र जल में उबले चावल को श्रद्धालु अपने परिवार के सदस्यों के बीच बाँटते हैं, जिससे उनके जीवन में सुख और समृद्धि आती है। इसके अतिरिक्त, यह प्रसाद एक सांस्कृतिक प्रतीक बन चुका है, जो यमुनोत्री की यात्रा को और भी विशेष बना देता है।