खाट पर सिस्टम: सड़क विहीन धमवल गांव की दास्तान, जहां विकास पहुंचने से पहले ही थक जाता है

रिपोर्ट: तारकेश्वर प्रसाद, आरा (बिहार)
बिहार के भोजपुर जिले में स्थित शाहपुर विधानसभा क्षेत्र के बहोरनपुर पंचायत अंतर्गत धमवल गांव आज भी उस दौर में जी रहा है जहां सड़क महज एक सपना है और अस्पताल पहुंचना खाट पर लादकर ले जाने की मजबूरी। यह वही देश है जो “डिजिटल इंडिया” और “चंद्रयान” की बात करता है, लेकिन जमीनी हकीकत में कुछ गांव आज भी अंग्रेजों के जमाने की पगडंडियों पर अपनी किस्मत के भरोसे जिंदगी काट रहे हैं।
जब सिस्टम खाट पर हो, तब क्या उम्मीद करें?
धमवल गांव की एक हालिया घटना ने पूरे जिले को झकझोर कर रख दिया। एक बीमार मरीज को अस्पताल ले जाने के लिए गांववालों को खाट का सहारा लेना पड़ा, क्योंकि गांव तक पहुंचने वाला कोई भी पक्का या कच्चा सड़क मार्ग मौजूद नहीं है। सड़क से गांव की दूरी महज आधा किलोमीटर है, लेकिन यह दूरी उस समय एक पहाड़ जैसी लगती है जब किसी महिला को प्रसव पीड़ा हो या किसी बुजुर्ग को आकस्मिक इलाज की आवश्यकता हो।
तीन पीढ़ियां और सड़क का इंतजार
गांव के रहने वाले एक युवा ने बताया कि उनके दादा की उम्र 90 वर्ष है, लेकिन आज तक उन्होंने अपने गांव में सड़क नहीं देखी। “हमारी उम्र 25-26 साल हो गई, लेकिन हम भी आज तक पक्की सड़क नहीं देख पाए,” – यह वाक्य सिर्फ निराशा नहीं, बल्कि सिस्टम पर गहरा तंज है। धमवल गांव की तीन पीढ़ियां अब तक पगडंडियों के भरोसे हैं।
सरकार और प्रशासन की गहरी नींद
ग्रामीणों ने बताया कि सरकार और जिला प्रशासन से कई बार सड़क निर्माण की मांग की गई, लेकिन हर बार उन्हें सिर्फ आश्वासन मिला। ना तो कोई ठोस कार्रवाई हुई, ना ही कोई योजना धरातल पर उतर सकी। मीडिया ने भी इस मुद्दे को बार-बार उठाया, लेकिन प्रशासन की नींद अब तक नहीं खुली।
ग्रामीणों के अनुसार, नेताओं का चुनावी मौसम में आना-जाना तो बना रहता है, पर जीतने के बाद वे इस गांव को भूल जाते हैं। “हर चुनाव में सड़क का वादा होता है, फिर वही ढाक के तीन पात,” – ग्रामीणों की बातों में साफ झलकता है उनका आक्रोश और टूटा हुआ भरोसा।
‘सड़क नहीं तो वोट नहीं’ का बिगुल
कुछ समय पहले गांव के निवासियों ने “सड़क नहीं तो वोट नहीं” का नारा देते हुए विरोध प्रदर्शन भी किया था। हालांकि, इन आंदोलनों का भी कोई स्थायी असर नहीं पड़ा। स्थानीय प्रशासन ने एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) की तकनीकी बाधाओं की बात कहकर ग्रामीणों को फिर से आश्वासन दिया, लेकिन इन खोखले वादों में अब कोई विश्वास नहीं बचा।
रोजमर्रा की जिंदगी पर असर
धमवल गांव तक वाहन नहीं पहुंच सकता। ऐसे में दैनिक जरूरतों – जैसे राशन लाना, स्कूल जाना, बीमार व्यक्ति को अस्पताल ले जाना – सब कुछ एक संघर्ष बन जाता है। गर्भवती महिलाओं को खाट पर लादकर अस्पताल ले जाना आम बात है, जो विकास की तमाम योजनाओं पर प्रश्नचिह्न लगा देता है।
उग्र आंदोलन की चेतावनी
गांव के प्रमुख लोगों – अक्षय पासवान, देव लोक राम, नौलाक पासवान, रतन पासवान, संजय पासवान, लाल जी राम, छोटक राम, वीरदा पासवान, दरोगा पासवान, धनजी राम, लालू तिवारी, राजू तिवारी, रजनीकांत तिवारी, जयप्रकाश तिवारी, निर्मल तिवारी, अशोक दुबे, उमाशंकर तिवारी, सुरेंद्र सिंह, जगलाल सिंह, मंटू यादव, मटुर तिवारी, विजय शंकर तिवारी, अक्षय यादव, सुनील यादव आदि ने मिलकर बैठक की और निर्णय लिया कि अब लड़ाई उग्र रूप लेगी।
ग्रामीणों ने भोजपुर डीएम तन्या सुल्तानिया और संबंधित अधिकारियों से जल्द मिलने की योजना भी बनाई है, ताकि यह संदेश जाए कि अब वे चुप नहीं बैठेंगे।
क्या धमवल कभी विकास की मुख्यधारा में आएगा?
जब देश विकास के दावे करता है, तब यह सवाल उठता है कि क्या इन दावों में गांव जैसे धमवल के लिए कोई जगह है? क्या खाट पर ले जाए जाने वाली मरीज की तस्वीरें हमारे सिस्टम के लिए शर्म की बात नहीं हैं?
धमवल आज भी इंतजार में है – एक सड़क के, एक आश्वासन के पूरे होने के, और उस दिन के जब कोई नेता सिर्फ वादा नहीं, काम करके दिखाएगा