शिक्षक या राजनीतिक कार्यकर्ता?बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर एक गंभीर सवाल

रिपोर्ट: तारकेश्वर प्रसाद आरा बिहार

बिहार में शिक्षा एक संवेदनशील और मूलभूत विषय है, जिस पर राज्य और समाज दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि वह इसे मजबूत करें। लेकिन जब शिक्षा व्यवस्था के कंधे पर खड़ा करने वाले शिक्षक ही अपने मूल कर्तव्यों से भटक जाते हैं, तब सवाल उठाना जरूरी हो जाता है।

राजनीतिक रंग में रंगे शिक्षक: पिछले कुछ वर्षों में देखने को मिला है कि कुछ शिक्षक स्कूल की बजाय राजनीतिक गतिविधियों में ज्यादा सक्रिय हो गए हैं। कई शिक्षक स्थानीय राजनीतिक दलों के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में दिन भर पार्टी कार्यालयों में, चाय दुकानों पर या चौक-चौराहों पर समय बिताते पाए जाते हैं। स्कूल का समय होने के बावजूद वे कक्षा में मौजूद नहीं होते। ऐसे मामलों में यह कहना गलत नहीं होगा कि वे “वेतनभोगी राजनीतिक कार्यकर्ता” बन चुके हैं, न कि समाज निर्माता शिक्षक।

गरीब बच्चों के साथ अन्याय: सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों में से अधिकतर गरीब, मजदूर, किसान, दलित या पिछड़े समाज से आते हैं। उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं होता। वे अपने बच्चों को निजी विद्यालय में नहीं भेज सकते। ऐसे में उन्हें भरोसा होता है कि सरकारी स्कूल में शिक्षक उन्हें अच्छी शिक्षा देंगे।

लेकिन जब वही शिक्षक पढ़ाने की जगह राजनीतिक पार्टियों की बैठक में लगे होते हैं, तो इन बच्चों के भविष्य का क्या होगा? क्या शिक्षा अब सिर्फ सुविधा संपन्न लोगों का अधिकार बनकर रह जाएगी?

विडंबना देखिए – ये ही शिक्षक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में दाखिल कराते हैं, जहाँ हर महीने मोटी फीस देते हैं और हर सप्ताह प्रगति रिपोर्ट भी लेते हैं। खुद सरकारी स्कूल में पढ़ाते हैं लेकिन भरोसा नहीं करते उसी सिस्टम पर। सवाल उठता है: अगर उन्हें खुद अपने स्कूलों पर भरोसा नहीं, तो वे दूसरों के बच्चों की किस नीयत से पढ़ाई कर रहे हैं?

प्रशासनिक उदासीनता और राजनीतिक संरक्षण: ऐसे मामलों में कभी-कभार स्थानीय प्रशासन या शिक्षा विभाग जांच करता है, लेकिन अधिकतर मामलों में राजनीतिक संरक्षण के कारण कार्रवाई नहीं हो पाती। कुछ शिक्षक स्थानीय नेताओं के खास होते हैं, जिनके सहारे वे स्कूल से ज्यादा राजनीति में व्यस्त रहते हैं।

स्कूलों में CCTV और उपस्थिति मॉनिटरिंग सिस्टम लगाया जाए।

हर शिक्षक की मासिक मूल्यांकन रिपोर्ट बनाई जाए और सार्वजनिक पोर्टल पर डाली जाए।

राजनीतिक गतिविधियों में शामिल शिक्षकों पर तत्काल निलंबन और जांच की प्रक्रिया सुनिश्चित हो।

जिला शिक्षा अधिकारी को यह अधिकार मिले कि वे सीधे निरीक्षण करें और तत्काल कार्रवाई करें।

हर शिक्षक को अनिवार्य रूप से अपने बच्चों को उसी सरकारी स्कूल में पढ़ाने का सुझाव दिया जाए जहाँ वह कार्यरत है  इससे सिस्टम पर भरोसा खुद-ब-खुद आएगा।

समाज को भी जागरूक होना होगा: हमारे समाज को यह समझना होगा कि शिक्षक सिर्फ वेतन लेने वाला कर्मचारी नहीं, बल्कि समाज का आदर्श निर्माता होता है। यदि शिक्षक अपनी भूमिका भूल जाए, तो पूरे समाज का पतन तय है। अभिभावकों को, पंचायत प्रतिनिधियों को और शिक्षा प्रेमियों को ऐसे मामलों पर आवाज़ उठानी चाहिए और संबंधित अधिकारियों को लिखित शिकायत देनी चाहिए।

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