आरा सदर डीसीएलआर कोर्ट में भ्रष्टाचार की गूंज

रिपोर्ट: तारकेश्वर प्रसाद, आरा (बिहार)
भोजपुर जिले के आरा सदर डीसीएलआर कोर्ट को आम जनता के लिए न्याय का मंदिर माना जाता है, जहां ज़मीन-जायदाद से जुड़ी समस्याओं के समाधान की उम्मीद लेकर लोग पहुँचते हैं। लेकिन पिछले कुछ समय में इस न्यायिक संस्था को लेकर जो खुलासे सामने आए हैं, वे न केवल चौंकाने वाले हैं, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं।
खुलेआम हो रहा है दलाली का खेल
स्थानीय लोगों के अनुसार, डीसीएलआर कोर्ट में बिना रिश्वत दिए कोई भी फाइल आगे नहीं बढ़ती। दाखिल-खारिज, सीमांकन, बंटवारा जैसे ज़मीन से जुड़े मामलों में दलालों की पैठ इतनी गहरी हो चुकी है कि वे अब इस कोर्ट की ‘अनौपचारिक व्यवस्था’ का हिस्सा बन चुके हैं। ये दलाल कोर्ट कर्मचारियों और पीड़ित पक्ष के बीच बिचौलिए की भूमिका निभाते हैं, और इसके एवज में मोटी रकम वसूलते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों से आए कई लोगों ने बताया कि बिना पैसे दिए महीनों तक फाइल पड़ी रह जाती है, और जब कोई ‘नियमानुसार’ प्रक्रिया की बात करता है तो उसे टालमटोल और भ्रमित करने वाली जानकारी देकर थका दिया जाता है।
भ्रष्टाचार की जड़ें कहां तक फैली हैं?
आरा सदर डीसीएलआर कोर्ट में कार्यरत कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों पर सीधे-सीधे आरोप लग रहे हैं कि वे जानबूझकर फाइलों को लंबित रखते हैं ताकि पीड़ित पक्ष अंततः रिश्वत देने को मजबूर हो जाए। इसके पीछे एक सुव्यवस्थित ‘सिंडिकेट’ काम कर रहा है जो दलालों के माध्यम से पैसे वसूलता है और फाइलों को गति देने का ‘वादा’ करता है।
यह स्थिति प्रशासनिक लापरवाही या मिलीभगत की ओर इशारा करती है। अगर समय रहते इस पर लगाम नहीं लगाई गई तो यह न्याय व्यवस्था पर आम जनता का भरोसा खत्म कर देगी।
सुशासन पर सवाल: सरकार की चुप्पी क्यों
बिहार सरकार बार-बार ‘सुशासन’ और पारदर्शी प्रशासन का दावा करती रही है, लेकिन जब प्रशासनिक इकाई की जड़ें ही भ्रष्टाचार में सड़ चुकी हों, तो उस पर चुप्पी साधना सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करता है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री, और जिले के उच्चाधिकारी अब तक इस गंभीर मामले पर मौन हैं। जनता का सवाल है कि क्या भ्रष्टाचार के इस अंधेरे को यूं ही नजरअंदाज किया जाएगा?
भोजपुर की जनता अब चुप बैठने के मूड में नहीं है। आरा सदर डीसीएलआर कोर्ट में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ें तेज हो रही हैं। स्थानीय समाजसेवियों, अधिवक्ताओं, किसान संगठनों और आम नागरिकों ने कुछ अहम मांगें सामने रखी हैं:
1. कोर्ट की प्रक्रिया को पूर्णतः डिजिटल और पारदर्शी बनाया जाए।
2. भ्रष्ट कर्मचारियों और दलालों की पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
3. जनता के लिए हेल्पलाइन नंबर और ऑनलाईन शिकायत समाधान पोर्टल स्थापित किया जाए।
4. RTPS और भूमि पोर्टल की कार्यक्षमता को बेहतर बनाकर फिजिकल इंटरफेस को न्यूनतम किया जाए।
आम जनता जो अपने अधिकारों के लिए कोर्ट का रुख करती है, वह अब वहीं सबसे अधिक ठगी का शिकार हो रही है। यह स्थिति केवल दुखद नहीं, बल्कि संविधान और लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ है।