बिहार महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर राजद-कांग्रेस में तनाव, ओवैसी फैक्टर से बदली रणनीति

Report By : तारकेश्वर प्रसाद
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच महागठबंधन के भीतर सब कुछ सामान्य नहीं दिख रहा है। खासकर कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के बीच सीट बंटवारे को लेकर गहराती खींचतान अब खुलकर सामने आ रही है। राजद सूत्रों की मानें तो पार्टी कांग्रेस को अधिकतम 50 सीटें देने पर विचार कर रही है, जबकि कांग्रेस इससे ज्यादा की दावेदार है।
इस राजनीतिक असहमति के बीच दो घटनाक्रम ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह के साथ राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव से मुलाकात की है। यह बैठक ऐसे समय हुई है जब उससे ठीक एक दिन पहले अखिलेश सिंह अकेले ही लालू से मिल चुके थे। इन बैठकों को सीधे तौर पर सीट बंटवारे की बातचीत से जोड़ा जा रहा है।
कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस ने अब बिहार कांग्रेस प्रभारी की बजाय लालू यादव के करीबी और भरोसेमंद नेताओं के ज़रिए सीधी बातचीत शुरू की है। दरअसल, सूत्र बताते हैं कि लालू यादव की मौजूदा कांग्रेस प्रभारी से सहजता नहीं बन पा रही है, जिस वजह से कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह जैसे अनुभवी नेताओं को आगे कर दबाव की रणनीति अपनाई है।
इधर, कांग्रेस के प्रभावशाली नेता कन्हैया कुमार ने साफ कर दिया है कि महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा तेजस्वी यादव ही होंगे। उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि राजद सबसे अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगी और उनके विधायक संख्या में सबसे ज्यादा होंगे, ऐसे में नेतृत्व का सवाल नहीं उठना चाहिए।
इस बीच, असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली AIMIM की गतिविधियों ने महागठबंधन की रणनीति में बड़ा बदलाव ला दिया है। सूत्र बताते हैं कि जब से ओवैसी ने महागठबंधन में शामिल होने की इच्छा जताई है, तब से राजद ने कांग्रेस पर सीटों में कटौती का दबाव और बढ़ा दिया है। राजद का यह भी मानना है कि कांग्रेस का “बेस वोट” महागठबंधन को ट्रांसफर नहीं हो रहा, जिससे उसकी उपयोगिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
महागठबंधन की आगामी रणनीति में वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी की भूमिका भी अहम मानी जा रही है। पिछली बार उन्होंने चुनाव से ठीक पहले एनडीए का दामन थाम लिया था। इस बार वे किस तरफ जाएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा, लेकिन इतना तय है कि उनकी स्थिति को ध्यान में रखते हुए ही सीटों का अंतिम बंटवारा होगा।
कुल मिलाकर, बिहार में महागठबंधन के भीतर सीट शेयरिंग को लेकर चल रही यह अंदरूनी रस्साकशी आगामी चुनावों की तस्वीर को प्रभावित कर सकती है। ओवैसी का बढ़ता प्रभाव, कांग्रेस की कमजोर स्थिति और तेजस्वी यादव की नेतृत्वकारी भूमिका – ये तीनों ही कारक आने वाले दिनों में गठबंधन की दिशा तय करेंगे।