डॉक्टर डे पर महर्षि विश्वामित्र स्वशासी मेडिकल कॉलेज की अनूठी पहल

Report By: आसिफ अंसारी

डॉक्टर डे के अवसर पर महर्षि विश्वामित्र स्वशासी मेडिकल कॉलेज ने समाज सेवा की मिसाल कायम करते हुए क्षय (टीबी) रोग से जूझ रहे 58 रोगियों को गोद लिया है। इस सराहनीय पहल के अंतर्गत कॉलेज ने न केवल इन रोगियों की चिकित्सकीय देखभाल का दायित्व उठाया है, बल्कि उनके लिए छह महीने तक पोषण सहायता भी सुनिश्चित की है। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP) के अंतर्गत संचालित “टीबी-मुक्त भारत अभियान” में एक प्रेरणादायक योगदान के रूप में देखा जा रहा है।

इस सामाजिक उत्तरदायित्वपूर्ण कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. डॉ. आनंद मिश्रा ने किया। इस अवसर पर कॉलेज के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. राजेश कुमार सिंह, जिला क्षय अधिकारी (DTO) डॉ. रवि रंजन, NTEP कोर कमेटी के सदस्यगण एवं अनेक संकाय सदस्यगण उपस्थित रहे।

कार्यक्रम के दौरान कॉलेज प्रबंधन ने 58 टीबी रोगियों को औपचारिक रूप से गोद लिया, जिनके स्वास्थ्य और पोषण की जिम्मेदारी अब मेडिकल कॉलेज के संकाय सदस्य निभाएंगे। प्रत्येक रोगी को एक “प्रोटीन-पोषण पोटली” प्रदान की गई, जिसमें विटामिन्स, मिनरल सप्लीमेंट्स, प्रोटीन युक्त आहार सामग्री तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले तत्व शामिल हैं। यह पोटली प्रत्येक माह नि:शुल्क दी जाएगी, जिसका वितरण कॉलेज के संकाय सदस्यों द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया जाएगा।

प्राचार्य प्रो. डॉ. आनंद मिश्रा ने इस पहल पर बोलते हुए कहा,
टीबी केवल एक रोग नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण स्थिति है। इस बीमारी से लड़ाई केवल दवाओं से नहीं, बल्कि सही पोषण, मानसिक सहारे और सामुदायिक सहभागिता से जीती जाती है। डॉक्टर डे के इस अवसर पर हमारे संकाय सदस्यों ने जनसेवा की भावना को और मजबूत करते हुए 58 रोगियों की जिम्मेदारी ली है। यह पहल न केवल इन रोगियों को जल्द स्वस्थ करने में मदद करेगी, बल्कि समाज के प्रति चिकित्सा समुदाय की प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है।”

उन्होंने यह भी बताया कि इस पहल का उद्देश्य अन्य चिकित्सा संस्थानों और समाज के सक्षम वर्ग को भी प्रेरित करना है कि वे क्षय रोगियों को गोद लेकर उनके पुनः स्वस्थ होने की प्रक्रिया को आसान बनाएं।

इस अवसर पर सीएमएस डॉ. राजेश कुमार सिंह ने बताया कि पोषण की कमी टीबी रोगियों के उपचार में एक प्रमुख बाधा बनती है। सही आहार और नियमित निगरानी से न केवल उपचार की अवधि कम होती है, बल्कि रोग के पुनरावृत्ति की संभावना भी घटती है।

डॉ. रवि रंजन (डीटीओ) ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा,
यह प्रयास टीबी-मुक्त भारत अभियान में मील का पत्थर साबित हो सकता है। जब चिकित्सक समाज के वंचित वर्ग के लिए आगे आते हैं, तो वह न केवल रोगी को बल्कि पूरे समाज को स्वस्थ बनाने की दिशा में कार्य करते हैं।”

कार्यक्रम में मौजूद NTEP कोर कमेटी के सदस्यगण ने यह भी संकेत दिया कि भविष्य में इस कार्यक्रम को और अधिक व्यापक रूप देने की योजना है। मेडिकल कॉलेज के अधिक संकाय सदस्य, छात्र और स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाएँ मिलकर एक स्थायी सहायता तंत्र विकसित कर सकते हैं, जिससे टीबी रोगियों को दीर्घकालिक सहायता मिलती रहे।

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