दलित राजनीति का नया अध्याय या महागठबंधन को सीधी चुनौती

रिपोर्ट: तारकेश्वर प्रसाद, आरा (बिहार)
शाहाबाद क्षेत्र से एनडीए की नई रणनीति का ऐलान – चिराग पासवान के ज़रिए दलित वोटबैंक में सेंधमारी की तैयारी
बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट ले रही है। इस बार केंद्र में हैं चिराग पासवान, जिन्हें एनडीए एक नए रणनीतिक चेहरे के रूप में आगे बढ़ा रहा है विशेषकर शाहाबाद क्षेत्र में, जो उत्तर प्रदेश और झारखंड की सीमाओं से सटा हुआ है और जहां की सियासत हमेशा से दलित, पिछड़े और वामपंथी आंदोलनों के इर्द-गिर्द घूमती रही है।
शाहाबाद क्षेत्र में चार प्रमुख लोकसभा सीटें हैं — आरा, बक्सर, सासाराम और काराकाट। फिलहाल इन चारों सीटों पर महागठबंधन का कब्जा है। 2020 के विधानसभा चुनावों में इस क्षेत्र में एनडीए को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। खासकर सासाराम सीट की हार ने एनडीए खेमे को अंदर तक झकझोर दिया था। आरा को छोड़कर एनडीए कहीं खाता तक नहीं खोल पाई। 22 विधानसभा सीटों में से 19 महागठबंधन के हिस्से में गईं, जबकि बीजेपी को महज दो सीटें मिलीं और एक सीट पर बसपा ने कब्जा जमाया।
इस हार की एक बड़ी वजह यह रही कि उस समय चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा ने अलग राह चुनी थी। इसका सीधा लाभ महागठबंधन को मिला, जिसने वाम दलों के साथ मिलकर क्षेत्र में गहरी जड़ें जमाईं। नक्सल आंदोलन, रणवीर सेना, और जातीय संघर्ष की लंबी पृष्ठभूमि वाला यह क्षेत्र हमेशा से बिहार की राजनीति में निर्णायक रहा है।
शाहाबाद क्षेत्र में दलित मतदाताओं की संख्या बड़ी है और वर्षों से यह वोटबैंक या तो लालू प्रसाद यादव की राजद या बसपा के साथ जुड़ा रहा है। लेकिन अब चिराग पासवान की सक्रियता इस समीकरण को बदल सकती है। सूत्रों के मुताबिक, एनडीए अब चिराग पासवान को शाहाबाद क्षेत्र में प्रमुख भूमिका देने जा रहा है — और यह सिर्फ दलित वोटों को एकजुट करने की योजना नहीं है, बल्कि चिराग को सर्वसमाज का नेता बनाने की एक व्यापक रणनीति है।
चिराग को सामान्य (गैर-आरक्षित) सीट से उतारने की चर्चा इस बात का संकेत है कि एनडीए उन्हें सिर्फ दलित नेता नहीं, बल्कि भावी मुख्यमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार के रूप में भी पेश करना चाहती है। इससे उन दलित मतदाताओं को एक नया नेतृत्व दिखेगा, जो नीतीश कुमार के बाद खुद को हाशिये पर महसूस कर रहे हैं।
चिराग पासवान के करीबी सूत्रों की मानें तो वे भोजपुर जिले के जगदीशपुर विधानसभा क्षेत्र से आगामी चुनाव लड़ने पर विचार कर रहे हैं। यह निर्णय न केवल उन्हें बिहार विधानसभा में सीधी भागीदारी देगा, बल्कि उन्हें राज्य की राजनीति में स्थायी और ठोस उपस्थिति भी दिलाएगा।
सासाराम लोकसभा सीट, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, पर पिछली बार एनडीए को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा। लोजपा ने यहां बड़ी संख्या में वोट काटे और बीजेपी के कई बागी नेता चिराग पासवान के साथ चले गए। अब चिराग उसी जनाधार को फिर से मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं।
अगर वे इस बार शाहाबाद क्षेत्र से चुनाव लड़ते हैं और जीतते हैं, तो यह सिर्फ एक सीट की जीत नहीं होगी, बल्कि यह एक राजनीतिक संकेत होगा — कि एनडीए की दलित राजनीति अब नए चेहरे के साथ मैदान में है और राजद, बसपा और वाम दलों के साझा प्रभाव को चुनौती देने के लिए तैयार है।