स्वच्छता के नारों से सजी दीवारें, पर परिसर में कूड़े का अंबार — ग्राम पंचायत माती का RRC केंद्र बना बदहाली की मिसाल

Report By : स्पेशल डेस्क
लखनऊ : एक तरफ सरकार स्वच्छ भारत मिशन के तहत देश को गंदगी से मुक्त करने का सपना देख रही है, दूसरी तरफ ज़मीनी स्तर पर हालात उसके ठीक उलट हैं। जनपद लखनऊ के सरोजनीनगर ब्लॉक के अंतर्गत ग्राम पंचायत माती में स्थित ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन केंद्र (RRC केंद्र) इसकी एक जीवंत और चिंताजनक तस्वीर प्रस्तुत करता है।
बाहरी दीवारों पर पेंटिंग और नारों से सजा यह केंद्र जब दूर से देखा जाता है, तो लगता है जैसे गांव में स्वच्छता को लेकर जागरूकता का स्तर उच्चतम स्तर पर है। लेकिन जैसे ही कोई अंदर प्रवेश करता है, वहाँ का नजारा किसी कचरा डंपिंग ग्राउंड से कम नहीं दिखता।

इन नारों से ऐसा आभास होता है कि पंचायत स्तर पर ठोस कचरा प्रबंधन को लेकर गंभीर प्रयास हो रहे हैं। लेकिन विडंबना यह है कि इन नारों के पीछे की ज़मीन पर प्लास्टिक, जैविक कचरा, घरेलू कूड़ा-कर्कट और सड़ांध फैली हुई है।
गेट के ठीक सामने और अंदर के खुले हिस्से में कूड़े का ढेर लगा हुआ है, जहाँ आवारा पशु और कुत्ते भोजन की तलाश में घूमते नजर आते हैं।
स्थानीय निवासियों ने नाराजगी जताते हुए कहा, “सरकार ने तो केंद्र बनवा दिया, पर कोई देखने वाला नहीं है। ना तो रोजाना सफाई होती है और ना ही कचरे का कोई उचित निस्तारण। ये केंद्र अब गांव के लिए समस्या बन गया है।”
एक अन्य ग्रामीण ने कहा, “बाहर से सब दिखाने के लिए है। असली काम तो कुछ नहीं होता। यहां बदबू से खड़ा रहना भी मुश्किल है, ऊपर से मच्छर और बीमारियों का खतरा अलग।”
RRC केंद्र का मुख्य उद्देश्य था कि गांवों में घर-घर से कूड़ा एकत्र कर उसे सूखा व गीला कचरे में विभाजित किया जाए और फिर उसके अनुसार उसका निस्तारण हो। लेकिन इस केंद्र में कोई ऐसी प्रणाली नहीं दिख रही जिससे यह लगे कि कचरा सही तरीके से अलग करके निपटाया जा रहा है। न तो यहाँ वर्मी कम्पोस्टिंग यूनिट है, न ही कोई कचरा छंटाई की व्यवस्था।
केंद्र केवल नाम के लिए रह गया है — जबकि कागजों पर यह “सक्रिय रूप से कार्यरत” दिखाया जा रहा होगा।

इस केंद्र की स्थिति यह बताती है कि ब्लॉक और जिला स्तर पर जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा नियमित निरीक्षण नहीं किया जा रहा। यदि किया गया होता, तो शायद यह दुर्दशा सामने न आती। सवाल यह उठता है कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत खर्च हुए लाखों रुपये का आखिर लाभ किसे मिला — ग्रामीणों को या केवल दीवारों को रंगने वाले ठेकेदारों को?
इस मामले को उदाहरण मानते हुए यह स्पष्ट किया जा सकता है कि सिर्फ नारे लिखने से स्वच्छता नहीं आती। इसके लिए कार्यबल, निगरानी, जागरूकता और नियमित साफ-सफाई की ज़रूरत है। जब तक ग्राम पंचायतों, सफाई कर्मियों और ब्लॉक अधिकारियों की जवाबदेही तय नहीं की जाएगी, तब तक RRC केंद्र केवल फोटो खिंचवाने और आंकड़े पूरे करने का माध्यम बने रहेंगे।
ग्राम पंचायत माती का RRC केंद्र, स्वच्छ भारत मिशन की असफलता का प्रतीक बनता जा रहा है। जहाँ एक ओर सरकार स्वच्छता पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, वहीं दूसरी ओर जिम्मेदार तंत्र की लापरवाही से ये योजनाएं अपनी मूल भावना को खोती जा रही हैं। ज़रूरत है कि जिला प्रशासन इस मामले में त्वरित कार्रवाई करे, ताकि यह केंद्र दिखावा नहीं, वास्तविक परिवर्तन का केंद्र बन सके।