वर्षों पुरानी मजलिस की परंपरा बनी सौहार्द की मिसाल, चमन शाह किठूरी में मोहर्रम पर हुआ भव्य आयोजन

रिपोर्ट: श्रवण कुमार यादव, बाराबंकी
बाराबंकी: जिले के थाना सफदरगंज क्षेत्र अंतर्गत ग्राम चमन शाह किठूरी में मोहर्रम के मौके पर हर वर्ष की तरह इस बार भी 7वीं और 8वीं तारीख को पारंपरिक मजलिस का आयोजन धूमधाम से किया गया। ग्राम प्रधान गयासुद्दीन अहमद के आवास पर आयोजित इस मजलिस में गांव सहित आस-पास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की। खास बात यह रही कि मजलिस में सिर्फ एक समुदाय ही नहीं, बल्कि हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग एकजुट होकर शामिल हुए और आपसी सौहार्द एवं भाईचारे की मिसाल पेश की।
ग्राम प्रधान गयासुद्दीन अहमद ने जानकारी देते हुए बताया कि यह मजलिस गांव में दशकों से चली आ रही एक परंपरा है, जो न सिर्फ धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक समरसता का भी प्रतीक बन चुकी है। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वजों के जमाने से ही यह परंपरा चली आ रही है और आज भी उसी श्रद्धा और उत्साह के साथ इसे निभाया जा रहा है।
मजलिस के दौरान प्रख्यात नातख़्वानों ने रस भरी नातें पेश कीं, जिससे वहां उपस्थित श्रोताओं का दिल गदगद हो गया। इसके बाद आलिमों ने तकरीर के जरिए हज़रत इमाम हुसैन की कुर्बानी और कर्बला की घटना पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस दौरान श्रद्धालुओं ने ग़म-ए-हुसैन में अश्क बहाते हुए सब्र और इंसानियत का पैग़ाम ग्रहण किया।
इस आयोजन की सबसे बड़ी खूबी रही यहां पर दिखी सांप्रदायिक सौहार्द की झलक। मजलिस में हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग कंधे से कंधा मिलाकर बैठे और कर्बला की याद में शिरकत की। गांव के रामसागर, शिवदयाल, राजेश, हरिशंकर सहित कई हिन्दू भाइयों ने आयोजन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और इसे आपसी भाईचारे का प्रतीक बताया।
मजलिस के समापन के बाद बताशे और पारंपरिक दाल-रोटी का लंगर वितरित किया गया, जिसमें सभी समुदायों के लोगों ने एक साथ पंगत में बैठकर भोजन किया। ग्राम प्रधान गयासुद्दीन अहमद ने स्वयं उपस्थित रहकर लंगर की व्यवस्था देखी और सुनिश्चित किया कि किसी को कोई असुविधा न हो।
इस आयोजन को लेकर गांव में उत्साह का माहौल देखने को मिला। गांव के बुजुर्गों से लेकर युवाओं तक ने इस कार्यक्रम की तारीफ की। ग्रामीणों का कहना था कि ऐसे आयोजन न केवल धार्मिक भावनाओं को बल देते हैं, बल्कि सामाजिक एकता और सांप्रदायिक सौहार्द को भी मजबूत करते हैं।
कार्यक्रम के अंत में सभी ने क्षेत्र में अमन-चैन, भाईचारा और आपसी समझ बनाए रखने का संकल्प लिया। ग्राम प्रधान ने बताया कि आने वाले वर्षों में भी यह परंपरा उसी श्रद्धा और भव्यता के साथ जारी रहेगी, ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी इसका महत्व समझ में आ सके।