छेर नदी पर बना मुख्यमंत्री आरसीसी उच्च स्तरीय पुल 14 साल से लावारिस

रिपोर्ट: तारकेश्वर प्रसाद, आरा, बिहार
आरा: एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ‘न्याय के साथ विकास’ का दावा करती नहीं थकती, वहीं दूसरी ओर उन्हीं की सरकार की नीतियों की पोल खोल रही है भोजपुर जिले के जगदीशपुर अंचल स्थित उत्तदाहां हेतमपुर में छेर नदी पर बना बहुचर्चित मुख्यमंत्री आरसीसी उच्च स्तरीय पुल। यह पुल पिछले 14 वर्षों से सिर्फ एक ‘शोभा की वस्तु’ बनकर रह गया है। 3 करोड़ रुपये की लागत से बना यह पुल आज तक सड़क से नहीं जुड़ पाया है, जिससे इस क्षेत्र के हजारों लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है।
बताया जाता है कि इस पुल का शिलान्यास 14 अगस्त 2010 को बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड द्वारा मुख्यमंत्री सेतु योजना के अंतर्गत किया गया था। इस पर कार्य भी तेजी से हुआ और मात्र एक वर्ष के भीतर यानी 10 जून 2011 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसका उद्घाटन कर दिया। लेकिन विडंबना यह है कि यह उद्घाटन मात्र एक ‘फोटो सेशन’ बनकर रह गया क्योंकि पुल को अब तक संपर्क पथ से नहीं जोड़ा गया है।
सामाजिक कार्यकर्ता विनोद वर्मा का हमला – “पुल बना पर राह नहीं बनी”
सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता विनोद वर्मा ने सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि यह पुल सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की अनदेखी और राजनीतिक सौतेलेपन का शिकार है। उन्होंने कहा कि यह पुल आज भी वैसे ही खड़ा है जैसे एक अधूरा सपना। बिना संपर्क पथ के पुल किसी काम का नहीं है।
वर्मा ने बताया कि वर्ष 2013 में पटना के कारगिल चौक, गांधी मैदान में इस मुद्दे पर धरना भी दिया गया था, लेकिन नतीजा आज तक शून्य है। न कोई पहल, न कोई कार्य योजना, और न ही कोई जवाबदेही। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर एक ऐसा पुल, जिस पर करोड़ों की लागत आई हो, बिना संपर्क पथ के कैसे उद्घाटित किया गया? क्या यह प्रशासनिक विफलता नहीं है?
उत्तदाहां गांव प्रमुख सब्जी उत्पादक क्षेत्र है। यहां की हरी सब्जियां भोजपुर, पटना सहित बिहार के अन्य जिलों और दूसरे प्रदेशों तक जाती हैं। अगर यह पुल सड़क से जुड़ जाए तो यहां के किसानों को न सिर्फ बाजार तक पहुंच आसान होगी, बल्कि माल ढुलाई की लागत भी कम होगी। इससे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा।
किसानों और आम लोगों की परेशानी सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। बरसात के मौसम में तो स्थिति और भी भयावह हो जाती है। लोग जान हथेली पर रखकर नदी पार करने को मजबूर हो जाते हैं। ऐसी हालत में यह पुल उनकी मदद करने के बजाय सिर्फ देखने लायक ढांचा बनकर रह गया है।
बक्सर और भोजपुर को जोड़ने वाला सेतु बन सकता है यह पुल
विनोद वर्मा ने बताया कि अगर यह पुल संपर्क पथ से जुड़ जाए, तो यह बक्सर और भोजपुर जिले को सीधे जोड़ने का काम करेगा। इससे दोनों जिलों के दर्जनों गांवों के लाखों लोग लाभांवित होंगे। यह क्षेत्रीय विकास की रीढ़ साबित हो सकता है, बशर्ते सरकार इसे प्राथमिकता में ले।
सरकार और तथाकथित बड़े नेताओं की चुप्पी
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इतने वर्षों से यह मुद्दा उठाए जाने के बावजूद सरकार और क्षेत्रीय नेताओं ने इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। जनता बार-बार गुहार लगाती रही, धरना देती रही, लेकिन सरकार और नेताओं के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।
श्री वर्मा ने आरोप लगाया कि यह पुल राजनीतिक साजिश का शिकार है। सरकार जानबूझकर इसे नजरअंदाज कर रही है ताकि इसका लाभ किसी और को न मिले। क्या यह ‘जनता के साथ अन्याय’ नहीं है?
सवालों के घेरे में मुख्यमंत्री सेतु योजना
श्री वर्मा ने सरकार से सीधा सवाल किया है – बिना संपर्क पथ के यह पुल स्वीकृत कैसे हुआ? क्या यह मुख्यमंत्री सेतु योजना की विफलता नहीं है? क्या यह योजना सिर्फ कागजों पर चल रही है?
अब यह सवाल क्षेत्र के हर नागरिक की जुबान पर है कब होगा इस पुल के साथ न्याय? क्या सरकार इसे यूं ही लावारिस छोड़ देगी या फिर जनता के दबाव में आकर कोई ठोस निर्णय लेगी?