भिखारी ठाकुर की 54वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा, लोककला के योगदान पर हुई चर्चा

Report By: तारकेश्वर प्रसाद

आरा:लोककला सम्राट, युगप्रवर्तक नाटककार और भोजपुरी समाज के महान सांस्कृतिक योद्धा भिखारी ठाकुर की 54वीं पुण्यतिथि के अवसर पर बुधवार को आरा शहर के पटेल बस पड़ाव स्थित उनकी प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए। इस अवसर पर आयोजित समारोह में बड़ी संख्या में सामाजिक कार्यकर्ता, साहित्यप्रेमी, कलाकार एवं जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे।

कार्यक्रम का आयोजन भिखारी ठाकुर सामाजिक शोध संस्थान के बैनर तले किया गया, जिसकी अध्यक्षता संस्थान के अध्यक्ष एवं श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के भोजपुर जिलाध्यक्ष श्री नरेंद्र सिंह ने की। उन्होंने भिखारी ठाकुर के जीवन और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज के युग में जब सांस्कृतिक विरासत विलुप्त होने की कगार पर है, ऐसे में भिखारी ठाकुर का योगदान नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत है।

कार्यक्रम में उपस्थित वरिष्ठ रंगकर्मी दिलराज प्रीतम ने कहा कि “भिखारी ठाकुर की रचनाएं सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं थीं, बल्कि सामाजिक चेतना जगाने का सशक्त माध्यम थीं। उन्होंने गुलामी के दौर में भी समाज की विकृतियों के विरुद्ध जो सांस्कृतिक आंदोलन शुरू किया, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है।” उन्होंने यह भी कहा कि “लोककला की शक्ति को बाजार तक ले जाना और उसे जनजागरण का जरिया बनाना हमारी सांस्कृतिक जिम्मेदारी है।”

वहीं, कार्यक्रम को संबोधित करते हुए रणधीर राणा ने कहा कि भिखारी ठाकुर ने नारी उत्पीड़न, गरीबी, जातिवाद और सामाजिक भेदभाव जैसे मुद्दों को अपनी नाट्य शैली के माध्यम से बड़े ही सहज ढंग से प्रस्तुत किया। उनके नाटक ‘बिदेसिया’, ‘गबरघिचोर’ और ‘पुतोह बहार’ आज भी समाज में सुधार की प्रेरणा देते हैं। “भोजपुरी भाषा और संस्कृति के लिए उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता,” उन्होंने कहा।

इस अवसर पर वक्ताओं ने यह भी जोर दिया कि आज समय की मांग है कि भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर उसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई जाए। साथ ही भिखारी ठाकुर की रचनाओं को स्कूलों और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने की भी वकालत की गई।

समारोह में विजय सिंह, कृष्णा यादव, रणधीर राणा सहित कई अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही। सभी ने भिखारी ठाकुर की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनके आदर्शों को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।

भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का ‘शेक्सपियर’ कहा जाता है। उन्होंने न केवल भोजपुरी साहित्य को एक नई ऊंचाई दी, बल्कि उसे सामाजिक सुधार और जनजागरण का माध्यम भी बनाया। उनके नाटक और गीत आज भी ग्रामीण जीवन की सच्चाई को उजागर करते हैं और समाज में बदलाव की प्रेरणा देते हैं।

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