बाराबंकी जिला अस्पताल में डायलिसिस मरीज बेहाल

Report By:श्रवण कुमार यादव, बाराबंकी
बाराबंकी: जिला अस्पताल में इलाज की उम्मीद लेकर पहुंचने वाले किडनी मरीजों के लिए हालात बेहद चिंताजनक हो गए हैं। अस्पताल में स्थापित डायलिसिस यूनिट का संचालन वर्षों से अनियमित और लापरवाह ढंग से किया जा रहा है, जिसके चलते हर दिन दर्जनों मरीजों की जान सांसत में पड़ रही है।
बाराबंकी जिला अस्पताल में कुल 8 डायलिसिस मशीनें हैं, जो कि ‘संजीवनी हेल्थ केयर’ नामक निजी कंपनी द्वारा संचालित की जा रही हैं। लेकिन इनमें से अधिकांश मशीनें लगातार खराब पाई जाती हैं। परिणामस्वरूप मरीजों को घंटों लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ती है, और कई बार तो उन्हें मजबूरी में इलाज अधूरा छोड़कर लौटना पड़ता है या महंगे निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ता है।
सूत्रों के अनुसार अस्पताल प्रशासन और मशीन संचालित करने वाली कंपनी संजीवनी के बीच समन्वय की भारी कमी है। स्टाफ कई बार खराब मशीनों की सूचना ऊपर अधिकारियों को देता है, लेकिन महीनों तक कोई रिपेयरिंग नहीं होती। मरीजों की जान के साथ इस तरह का खिलवाड़ स्वास्थ्य सेवा की गंभीर विफलता को दर्शाता है।
हम सुबह 6 बजे से नंबर लगाकर बैठे हैं, लेकिन मशीन खराब है। डॉक्टर कहते हैं बाहर ले जाओ। प्राइवेट में एक बार की डायलिसिस के 4 हजार रुपये लगते हैं, हम कैसे करवाएं?”
डायलिसिस के दौरान मरीजों को आराम और विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है, लेकिन अस्पताल में न तो पंखे चलते हैं, न कूलर हैं, और न ही कोई वेंटिलेशन की समुचित व्यवस्था है। गर्मी से बेहाल मरीजों को कई बार अधूरी डायलिसिस के साथ ही छोड़ दिया जाता है।
एक बुजुर्ग मरीज की बेटी ने रोते हुए बताया
पापा की तबीयत खराब हो गई है, दो बार डायलिसिस बीच में रोक दी गई क्योंकि मशीन बंद हो गई। अंदर गर्मी से हालत और बिगड़ गई।”
आख़िर जवाबदेह कौन?
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब सरकारी अस्पतालों में गरीब मरीजों को मुफ्त डायलिसिस की सुविधा देने की बात सरकार बार-बार करती है, तो ज़मीनी हकीकत इतनी बदहाल क्यों है?
क्या स्वास्थ्य विभाग इस स्थिति से अनजान है?
मशीनें ठीक क्यों नहीं करवाई जातीं?
जब निजी कंपनी के भरोसे मरीजों की जान खतरे में हो रही है, तो प्रशासन हस्तक्षेप क्यों नहीं कर रहा?
मरीजों की मांग हमें सिर्फ इलाज चाहिए”
स्थानीय लोगों और मरीजों ने सरकार और जिला प्रशासन से मांग की है कि डायलिसिस यूनिट की व्यवस्था को तुरंत दुरुस्त किया जाए।
मशीनों की मरम्मत या प्रतिस्थापन तुरंत हो।
वार्ड में बिजली, पंखा, कूलर और साफ-सफाई की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
लापरवाही करने वाली एजेंसी पर कार्रवाई हो और जिम्मेदारी तय की जाए।
प्रशासन की चुप्पी, सिस्टम की नाकामी
इस पूरे मामले पर जिला अस्पताल प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी बेहद चिंताजनक है। यह न केवल सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की विफलता है, बल्कि उन हजारों गरीब मरीजों के साथ अन्याय है जो हर हफ्ते अपनी जान बचाने की उम्मीद में अस्पताल आते हैं।