जर्जर भवन में जान हथेली पर रखकर पढ़ रहे हैं बच्चे

रिपोर्ट: तारकेश्वर प्रसाद

बिहार सरकार एक ओर जहां राज्य में शिक्षा व्यवस्था सुधारने, स्कूलों में शिक्षकों की बहाली और बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के दावे करती है, वहीं ज़मीनी हकीकत इन दावों को सीधा खारिज करती नजर आती है। इसका ताजा उदाहरण है बिहिया प्रखंड मुख्यालय से सटे गांव फिनगी का प्राथमिक विद्यालय, जहां बच्चे हर दिन जान हथेली पर रखकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं।

फिनगी गांव स्थित यह प्राथमिक विद्यालय पहली से पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई के लिए बना है, लेकिन विद्यालय का भवन इस कदर जर्जर हो चुका है कि किसी भी वक्त बड़ा हादसा हो सकता है। विद्यालय में केवल दो हालनुमा कमरे हैं, जिनमें से एक तो पूरी तरह जर्जर हो चुका है।
छत से प्लास्टर गिरना, दीवारों में बड़ी-बड़ी दरारें और दीमक लगे फर्श इस बात की गवाही दे रहे हैं कि यहां पढ़ना किसी जोखिम से कम नहीं।

जर्जर हो चुके पहले कमरे का उपयोग करना अब असंभव हो गया है। ऐसे में दूसरे कमरे में ही बच्चों को बैठाकर पढ़ाया जाता है। यही कमरा अब क्लासरूम, अध्यापक कार्यालय, और मिड-डे मील किचन के रूप में भी इस्तेमाल किया जा रहा है।
न तो पर्याप्त जगह है, न ही पर्याप्त संसाधन, लेकिन शिक्षा का दीपक जलाने की मजबूरी में शिक्षक और बच्चे दोनों ही इस खतरनाक व्यवस्था में खुद को समायोजित कर रहे हैं।

शनिवार को जब टीम ने स्कूल का दौरा किया, तो यह दृश्य और भी चिंताजनक था। कुल 42 नामांकित बच्चों में से केवल 10 से 12 बच्चे ही उपस्थित थे। ग्रामीणों का कहना है कि वे अपने बच्चों को जानबूझकर स्कूल नहीं भेजते, क्योंकि उन्हें डर है कि कभी भी छत गिर सकती है या दीवार टूट सकती है।

सरकारी मानकों के अनुसार 40 छात्रों पर 1 शिक्षक की जरूरत होती है, जबकि यहां 42 छात्रों के लिए कुल चार शिक्षक तैनात हैं – जिनमें तीन महिला और एक पुरुष शिक्षक शामिल हैं।
इससे यह साफ होता है कि शिक्षकों की संख्या पर्याप्त है, लेकिन बुनियादी ढांचे की बदहाली के कारण वे भी प्रभावी ढंग से पढ़ा नहीं पा रहे हैं।



इस संबंध में जब प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी मनोज कुमार से पूछा गया, तो उन्होंने बताया
“विद्यालय भवन निर्माण का प्रस्ताव पहले ही भेजा जा चुका है। सरकार की तरफ से स्पष्ट निर्देश है कि जो भी भवन निर्माण से वंचित हैं, उन्हें प्राथमिकता दी जाए। जहां शिक्षकों की संख्या अधिक है, वहां से उन्हें दूसरे स्थानों पर स्थानांतरित भी किया जाएगा।”

फिनगी गांव का यह विद्यालय बिहार के सैकड़ों सरकारी स्कूलों की स्थिति का प्रतिनिधि उदाहरण है। यहां सवाल सिर्फ भवन की जर्जरता का नहीं है, बल्कि सरकारी सिस्टम की लापरवाही, संसाधनों की कमी, और शिक्षा के प्रति उदासीनता का भी है।

जब सरकारें लाखों-करोड़ों के बजट की घोषणा करती हैं, तो फिर ऐसे स्कूल आज भी खंडहर क्यों बने हुए हैं? क्या बच्चों की जान तब तक दांव पर लगती रहेगी, जब तक कोई हादसा न हो जाए?

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