बिहार,ट्रेनें तो मिलेंगी, उद्योग नहीं

ReportBy: तारकेश्वर प्रसाद
बिहार के लोगों के बारे में अक्सर कहा जाता है कि यहां से सबसे बड़ी “निर्यात” होने वाली चीज़ मज़दूर हैं। यह बात किसी हद तक कड़वी सच्चाई भी है। आज भी लाखों लोग अपने परिवार का पेट पालने के लिए दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों का रुख करते हैं। खेतों में मेहनत से लेकर फैक्ट्रियों और निर्माण कार्य तक, बिहार के मजदूर देश के हर कोने में पसीना बहाते हैं।
सरकार की ओर से हाल ही में कहा गया है कि बिहार के मज़दूरों के आवागमन को सुगम और सुरक्षित बनाने के लिए 12 हज़ार ट्रेनें उपलब्ध कराई जाएंगी। पहली नज़र में यह घोषणा बड़ी राहत देने वाली लगती है, क्योंकि बाहर काम करने जाने वालों को अब सफ़र करने में आसानी होगी। लेकिन असल सवाल यह है कि आखिर कब तक बिहार के लोग सिर्फ मज़दूरी करने के लिए ही बाहर जाते रहेंगे? क्या सरकार की जिम्मेदारी सिर्फ यह है कि मज़दूरों को दूसरे राज्यों तक पहुँचाने के लिए पर्याप्त ट्रेनें चलाए, या फिर यह भी है कि राज्य में ही रोजगार के अवसर पैदा करे?
बड़ा सवाल यह भी है कि क्यों बिहार को हमेशा अनदेखा किया जाता है? जब दूसरे राज्यों को PM मित्र पार्क (कपड़ा उद्योग से जुड़ी मेगा परियोजना) जैसी योजनाओं का लाभ दिया जाता है, तब बिहार को नज़रअंदाज़ क्यों कर दिया जाता है? क्यों उद्योग लगाने के मामले में बिहार की बारी कभी नहीं आती?
यह स्थिति साफ़ तौर पर यह दर्शाती है कि बिहार के लिए सिर्फ पलायन की व्यवस्था है, विकास की नहीं। ट्रेनें मिलने से सफर तो आसान हो जाएगा, लेकिन बिहार की ज़िंदगी अभी भी कठिन बनी रहेगी। जो लोग अपने घर-परिवार और गांव छोड़कर बाहर जाते हैं, वे सिर्फ मज़दूरी करने नहीं जाते, बल्कि अपने बच्चों के बेहतर भविष्य, अच्छे इलाज और शिक्षा की तलाश में जाते हैं।
अगर बिहार में उद्योग लगाए जाएं, फैक्ट्रियां खोली जाएं और रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएं, तो यही मजदूर अपने घर के पास काम करेंगे। इससे न केवल राज्य के लोगों का जीवन आसान होगा, बल्कि बिहार की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी। हर साल लाखों लोग बाहर जाते हैं और अपनी मेहनत का पसीना दूसरे राज्यों की तरक्की में बहा देते हैं, जबकि उनका अपना राज्य पिछड़ा रह जाता है।
बिहार को ट्रेनों की नहीं, बल्कि कारखानों और रोजगार की ज़रूरत है। यहां उद्योग स्थापित होंगे तो मजदूरों का पलायन रुकेगा, परिवार बिखरेंगे नहीं और राज्य तरक्की करेगा। वरना, जब तक यहां रोज़गार की व्यवस्था नहीं होगी, तब तक हर ट्रेन मजदूरों से भरी रहेगी—जो अपनी मिट्टी छोड़कर रोज़ी-रोटी के लिए बाहर जाने को मजबूर हैं।