शहीद भगत सिंह का वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आज का समाज !

आज शहीद भगत सिंह का जन्मदिवस है। फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया उनके चित्रों और कुछ सूक्त वाक्यों से भरे दिखाई देंगे। किंतु इस औपचारिक श्रद्धांजलि के अभियान में जो बात सबसे पीछे रह जाएगी, वह है भगत सिंह का उच्च कोटि का वैज्ञानिक दृष्टिकोण। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम आजादी के नायकों का सम्मान केवल उनकी मूर्तियों पर पुष्पांजलि अर्पित करके करते हैं, जबकि वास्तविक सम्मान उनके विचारों के प्रसार और गहन अध्ययन से होना चाहिए। भगत सिंह और उनके विचार भी इसी औपचारिकता के शिकार हुए हैं। वे लोगों के लिए मात्र एक हिंसक क्रांति के नायक बनकर रह गए हैं, जबकि वस्तुतः वे भारतीय समाज में प्रगतिशील वैज्ञानिक चेतना के योद्धा थे। भगत सिंह के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को उनके उस बयान से समझा जा सकता है, जो उन्होंने न्यायालय में दिया था: “क्रांति मानव जाति का अनन्य अधिकार है, स्वतंत्रता सभी का जन्मसिद्ध अधिकार है… इस समाज के वास्तविक अभिरक्षक उसके कामगार हैं।” वे जानते थे कि सांस्कृतिक मिथकों और रूढ़िवादिता में जकड़े समाज में वैज्ञानिक चेतना लाना आसान नहीं है। इसलिए उन्होंने एक तार्किक और वैज्ञानिक समाज के निर्माण पर जोर दिया। महान लेखक ‘मुदा राक्षस’ ने ठीक ही कहा था कि भगत सिंह एक तार्किक आधुनिकतावादी थे। ऐसा नहीं था कि मार्क्सवाद और समाजवाद से प्रभावित भगत सिंह सांस्कृतिक मूल्यों के महत्व को नहीं समझते थे। उन्होंने कहा था, “हमारी पुरानी विरासत के दो पक्ष होते हैं – एक सांस्कृतिक, दूसरा मिथकीय। मैं सांस्कृतिक गुणों को आगे बढ़ाने का पक्षधर हूं, लेकिन मिथकीय विचारों को विज्ञान की कसौटी पर कसने की जरूरत है।”
भगत सिंह आर्थिक असमानता, वर्ग संघर्ष और शोषण के विरुद्ध थे। वे गांधीवादी दृष्टिकोण, जो नैतिकता के नाम पर गरीबी को स्वीकार करने की बात करता था, से सहमत नहीं थे। उनका मानना था कि यह दृष्टिकोण गरीब की अस्मिता को खरीदता है और मानव सभ्यता के प्रति एक अपराध है। उनके लिए क्रांति का लक्ष्य था एक ऐसी समतामूलक समाजवादी व्यवस्था की स्थापना, जहां शासन की बागडोर मजदूरों-किसानों के हाथों में हो। आज के दौर में, जब छद्म धार्मिक मूल्यों और संकीर्ण राष्ट्रवाद के नाम पर समाज की बौद्धिक चेतना को कुंद किया जा रहा है, भगत सिंह का विचार और भी प्रासंगिक हो जाता है। उन्होंने लगभग एक सदी पहले ही चेतावनी दी थी कि “रूढ़िवादी शक्तियां मानव समाज को कुमार्ग की ओर ले जाती हैं।” आज धर्म और जाति के नाम पर बढ़ता वैमनस्य इसी कुमार्ग का प्रतीक है। भगत सिंह का मानना था धनी वर्ग द्वारा नैतिकता और आध्यात्मिकता के छद्म के जरिए गरीब आदमी की अस्मिता की खरीदारी आर्थिक दृष्टि से कमजोर आदमी को पराधीन बनाती है | वे कठोर शब्दों में कहते हैं कि ” लोग नैतिक स्वतंत्रता के लिए प्राकृतिक स्वतंत्रता का समर्पण करते हैं |
सवाल यह है कि समाज अब किसके साथ खड़ा होना चाहिए – भगत सिंह की मूर्तियों के साथ, या उनके वैज्ञानिक और प्रगतिशील विचारों के साथ? खतरा इससे भी बड़ा तब है जब रूढ़िवादी ताकतें उनके विचारों को दबाने के लिए उनकी छवि का ही दुरुपयोग करती हैं। भगत सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी, जब हम एक वैज्ञानिक, तार्किक और समतामूलक समाज के निर्माण के लिए उनके विचारों को आगे बढ़ाएंगे।
