चित्रकूट कोषागार का 43 करोड़ घोटाला: पेंशनधारकों की टूटी कमर, दो माह से पेंशन बनी टेंशन (Mega Crisis of Trust)


Report By : राहुल द्विवेदी

चित्रकूट जिले में सामने आया 43 करोड़ रुपये का कोषागार घोटाला न सिर्फ प्रशासनिक सिस्टम की कमजोरी और भ्रष्टाचार की परतें खोल रहा है, बल्कि पांच हज़ार से अधिक पेंशनधारकों को ऐसे गहरे संकट में धकेल चुका है, जिसमें उनकी दो माह की पेंशन ठप होने से जीवन यापन का संघर्ष चरम पर है। जिन बुजुर्गों की जिंदगी का एकमात्र सहारा पेंशन है, उनके सामने अब खाने-पीने से लेकर इलाज तक के लाले पड़ गए हैं। जिले में पेंशन न आने की इस समस्या ने बुजुर्गों और विकलांग तथा विधवा पेंशन पाने वालों को भारी मानसिक और शारीरिक तनाव में डाल दिया है। जिनके खातों में हर महीने 15,000 से 40,000 तक की राशि आती थी, वे आज पाई-पाई के लिए मोहताज हैं। किसी के घर पर दवा खत्म हो गई है, किसी को अस्पताल का बिल चुकाना है, तो किसी को अपने घर का चूल्हा जलाने के लिए दूसरों से उधार मांगना पड़ रहा है। यह स्थिति किसी प्रशासनिक लापरवाही या साधारण विलंब की नहीं, बल्कि गहरी वित्तीय अव्यवस्था (Financial Mismanagement) और गंभीर भ्रष्टाचार (Corruption Scandal) की देन है, जिसने पेंशनरों को टूटने पर मजबूर कर दिया है।


इस घोटाले का खुलासा होने के बाद प्रशासन में हड़कंप मच गया और जिले की सभी पेंशन फाइलों और खातों का 100% वेरिफिकेशन (Full Account Verification) का आदेश जारी कर दिया गया। कोषागार विभाग और एसआईटी (SIT Team) की निगरानी में यह प्रक्रिया तेज़ी से चल रही है, जिस वजह से जिले के सभी पेंशनरों को दोबारा जीवन प्रमाण पत्र (Life Certificate) और पहचान पत्र जमा करने का आदेश दिया गया। इसी वजह से कोषागार में भारी भीड़ उमड़ रही है। सुबह सात बजे से ही पेंशनधारी और उनके परिजन फार्म लेकर लाइन में लगाए खड़े दिखते हैं। धक्का-मुक्की, अफरातफरी और घंटों इंतज़ार के बीच बुजुर्गों के लिए यह प्रक्रिया उनके लिए किसी परीक्षा से कम नहीं है। जो लोग मुश्किल से चल पाते हैं, वे भी किसी तरह डगमगाते कदमों से कोषागार के चक्कर काट रहे हैं। प्रशासन ने भीड़ को संभालने के लिए छह काउंटर (Six Counters) खोल दिए हैं, लेकिन फिर भी हालात काबू में नहीं हैं। विभाग की प्राथमिकता यह है कि इस बार पूरी पारदर्शिता के साथ वेरिफिकेशन हो, ताकि भविष्य में कोई फर्जी भुगतान (Fake Payment) या मृत पेंशनरों के नाम पर निकलने वाले भुगतान (Ghost Beneficiary Scam) दोबारा न हो सके।


दरअसल, यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि 93 पेंशनरों के खातों में ही करोड़ों रुपये की अनियमितता मिली थी। जांच में सामने आया कि मृतक पेंशनरों के नाम पर कई महीनों से भुगतान जारी थे, जबकि उनके परिवारों को इस बात की जानकारी तक नहीं थी। निधियों को फर्जी खातों में ट्रांसफर (Illegal Fund Transfer) कर बड़ी राशि को ठिकाने लगाया गया। इसी वजह से प्रशासन ने जिले के प्रत्येक पेंशन खाते की गहन जांच (Deep Scrutiny) शुरू की है। अब तक पेंशन राशि के दुरुपयोग में भूमिका निभाने वाले 30 पेंशनरों को जेल भेजा जा चुका है और लगभग साढ़े तीन करोड़ रुपये की रिकवरी भी की जा चुकी है। वहीं, एसआईटी और वित्त विभाग की संयुक्त टीम रात-दिन पूरे होशो-हवास में फाइलें छान रही है, ताकि इस बार पूरा प्रकरण एक बार में हमेशा के लिए क्लियर किया जा सके।

घोटाले की तह में जाने पर पता चलता है कि मामले में चार सरकारी कर्मचारियों की भूमिका सबसे अधिक संदिग्ध है। इनमें से सबसे पहले संदीप श्रीवास्तव का नाम सामने आया, जिसकी एफआईआर दर्ज होने के मात्र तीन दिन बाद संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। इससे पूरे जिले में सवाल और भी गहरे हो गए। जांच में नाम आने पर मौजूदा सहायक कोषाधिकारी विकास सचान और एकाउंटेंट का पटल संभाल रहे अशोक वर्मा को पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया है। इनके पास कई ऐसे दस्तावेज़, सिस्टम लॉग्स (System Logs) और डिजिटल सिग्नेचर (Digital Signatures) मिले हैं, जिनके आधार पर बड़े स्तर पर पेंशन राशि की हेराफेरी की गई थी। लेकिन इन सबमें सबसे बड़ा सवाल है—रिटायर्ड सहायक कोषाधिकारी अवधेश सिंह कहां हैं? सूत्रों का दावा है कि अवधेश सिंह फिलहाल पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं और राजधानी में किसी वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी के संरक्षण (Protection Under Senior IPS Officer) में छिपे हुए हैं। पुलिस लगातार उनकी तलाश में है, जबकि दूसरी ओर वे गिरफ्तारी से पहले हाईकोर्ट से स्टे (Stay Order) हासिल करने की कोशिश में जुटे हैं। माना जा रहा है कि यदि अवधेश सिंह गिरफ्तार होते हैं, तो यह मामला कई बड़े नामों और गहरी परतों को खोल सकता है।

पेंशनरों की हालत सबसे दयनीय स्थिति में पहुंच चुकी है। दो महीने से पेंशन न मिलने के कारण वे कठिनाई से जीवन यापन कर रहे हैं। कोई बुजुर्ग हार्ट की बीमारी से जूझ रहा है, किसी को घर का किराया देना है, तो किसी को रोज़मर्रा का खर्च। गांवों में ऐसे कई बुजुर्ग हैं जो अब दूसरों के घर जाकर मदद मांगने को मजबूर हैं। कई लोग कहते हैं कि “कर्म कुछ लोगों ने किया, लेकिन भुगतना हम जैसे ईमानदारों को पड़ रहा है।” दर्द और हताशा से भरी यह पंक्ति प्रशासनिक अनियमितताओं की पूरी पोल खोल देती है। पेंशन जो उनके लिए सहारा थी, अब तनाव का कारण बन गई है। इस संकट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी सरकारी सिस्टम में एक छोटी सी चूक (Administrative Error) लाखों लोगों की जिंदगी पर पहाड़ जैसी मार बन सकती है।

प्रशासन का दावा है कि वेरिफिकेशन प्रक्रिया पूरी होते ही जिन खातों में कोई गड़बड़ी नहीं मिलेगी, उनमें पेंशन तुरंत जारी कर दी जाएगी। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि प्रक्रिया धीमी है, भीड़ भारी है और परेशानियां लगातार बढ़ती जा रही हैं। पेंशनरों को यह समझ नहीं आ रहा कि आखिर कितने दिन और इंतज़ार करना पड़ेगा। इस घोटाले ने जिले के पूरे वित्तीय सिस्टम पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है और यह याद दिला दिया है कि सरकारी तंत्र में पारदर्शिता (Transparency) और निगरानी तंत्र (Monitoring Mechanism) का अभाव किस हद तक नुकसान पहुंचा सकता है। चित्रकूट का यह मामला सिर्फ एक आर्थिक घोटाला ही नहीं, बल्कि सामाजिक संवेदनाओं की अनदेखी का सबसे बड़ा उदाहरण बनकर उभर रहा है, जिसे जल्द सुलझाया जाना सबसे जरूरी है।

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