सीतापुर में मनरेगा योजना में भ्रष्टाचार का खेल, जिम्मेदार बने संरक्षणकर्ता

Report By: शिवराज सिंह
सीतापुर : उत्तर प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजना “मनरेगा” (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी को कम कर लोगों को साल में 100 दिन का रोजगार देना है, वह अब सीतापुर जनपद में भ्रष्टाचार का शिकार होती दिखाई दे रही है। शासन की इस महत्वाकांक्षी योजना का लाभ जहां ग्रामीण मजदूरों तक पहुंचना चाहिए था, वहीं जिम्मेदार अधिकारियों और पंचायत प्रतिनिधियों की मिलीभगत से यह योजना अब लूट-खसोट का माध्यम बनती जा रही है।
जनपद के कई विकास खंडों में मनरेगा के तहत किए जा रहे कार्यों में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं और फर्जीवाड़ा सामने आ रहा है। ग्राम पंचायतों में कार्यों के नाम पर सचिव, ग्राम प्रधान, रोजगार सेवक और तकनीकी सहायकों द्वारा फर्जी रिपोर्ट तैयार की जा रही हैं। जिन योजनाओं का उद्देश्य ग्रामीणों को रोजगार देना था, उनमें से कई कार्य या तो शुरू ही नहीं हुए या फिर केवल कागजों पर पूरे दिखा दिए गए हैं।

विकास खंड सकरन के ग्राम पंचायत सेमरवा में मनरेगा के तहत गौशाला और इंटरलॉकिंग निर्माण कार्यों में भारी भ्रष्टाचार की शिकायतें सामने आई हैं। वहीं ग्राम पंचायत उमरा खुर्द में तो फर्जीवाड़े की हद पार कर दी गई है — एक ही फोटो को कई अलग-अलग कार्यों के लिए अपलोड किया गया है, जिससे यह साफ स्पष्ट होता है कि रोजगार सेवक, ग्राम प्रधान और सचिव की मिलीभगत से सरकारी धन का दुरुपयोग किया जा रहा है।
इसी प्रकार ग्राम पंचायत लखुआ बेहड़ में भी मनरेगा योजना के तहत फर्जी श्रमिक हाजिरी अपलोड करने का मामला सामने आया है। आश्चर्य की बात यह है कि जिस दिन पूरा देश दीपावली का पर्व मना रहा था, उसी दिन भी ग्राम प्रधान और सचिव द्वारा फर्जी हाजिरी अपलोड की गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि मनरेगा के तहत चल रही योजनाओं में पारदर्शिता का अभाव है और जिम्मेदार लोग खुद भ्रष्टाचार के संरक्षक बने हुए हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि इस फर्जीवाड़े में शामिल अधिकारियों और पंचायत प्रतिनिधियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए ताकि योजना का वास्तविक लाभ आम लोगों तक पहुंच सके। अब देखने वाली बात यह होगी कि जिला प्रशासन इस मामले को कितनी गंभीरता से लेता है और भ्रष्टाचार के इस गोरखधंधे पर कब अंकुश लगाया जाता है।





