रामपुर पासपोर्ट केस में अब्दुल्ला आज़म को सात साल की सज़ा, 50 हजार जुर्माना — एमपी-एमएलए कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

Report By : राहुल मौर्य
रामपुर में बहुचर्चित दो पासपोर्ट (Two Passports Case) प्रकरण में समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता मोहम्मद आज़म खान के बेटे और पूर्व विधायक अब्दुल्ला आज़म खान (Abdullah Azam Khan) को गुरुवार को एमपी-एमएलए विशेष न्यायालय ने सात साल की सज़ा (Seven Years Imprisonment) और 50 हजार रुपये का जुर्माना (Fine) सुनाया। यह फैसला लंबे समय से चर्चाओं में रहे इस प्रकरण पर आया, जिसमें अब्दुल्ला आज़म पर अलग-अलग जन्मतिथि (Different Date of Birth) का उपयोग करके दो पासपोर्ट बनवाने का आरोप था।
इस मामले में भाजपा विधायक आकाश सक्सेना (BJP MLA Akash Saxena) ने सिविल लाइंस थाने में वर्ष 2019 में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। रिपोर्ट के अनुसार, अब्दुल्ला आज़म ने एक पासपोर्ट बनवाने के लिए अलग जन्मतिथि और दूसरे पासपोर्ट के लिए भिन्न जन्मतिथि का प्रयोग किया। पुलिस ने इस मामले की जांच (Investigation) पूरी करते हुए आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया था, जिसके बाद सुनवाई एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट (Special Court) में चल रही थी।
न्यायालय ने मामले की पिछली सभी तारीखों में लंबे समय तक चले तर्क-वितर्क (Arguments) और साक्ष्यों की जांच के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। आज अदालत ने स्पष्ट रूप से माना कि अभियोजन पक्ष (Prosecution) ने यह सिद्ध किया कि दो अलग-अलग जन्मतिथियों के आधार पर पासपोर्ट बनवाए गए, जो भारतीय कानून के तहत गंभीर अपराध है। अदालत ने इसे धोखाधड़ी (Fraud) और गलत दस्तावेज़ का उपयोग (Use of Wrong Documents) मानते हुए कठोर दंड दिया।
अदालत में सुनवाई के दौरान सरकारी पक्ष ने कहा कि एक सार्वजनिक प्रतिनिधि (Public Representative) द्वारा ऐसा कृत्य समाज में गलत संदेश देता है। अभियोजन ने दलील दी कि पासपोर्ट जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ में गलत जन्मतिथि लिखकर बनवाना पासपोर्ट एक्ट (Passport Act) का गंभीर उल्लंघन है और इसके लिए कठोर दंड का प्रावधान है।
सुनवाई के बाद मीडिया से बात करते हुए अधिवक्ता संदीप सक्सेना (Advocate Sandeep Saxena) ने बताया कि अदालत ने सभी तथ्यों और सबूतों पर विचार करते हुए अब्दुल्ला आज़म खान को सात साल की सजा और 50 हजार रुपये का जुर्माना देने का आदेश सुनाया है। उन्होंने कहा कि यह फैसला कानून के सिद्धांतों और संविधान की भावना के अनुकूल है।
अब्दुल्ला आज़म खान इस मामले में शुरुआत से ही खुद को निर्दोष बताते रहे हैं और इसे राजनीतिक द्वेष (Political Vendetta) का परिणाम बताते हुए चुनौती देने की बात भी करते रहे हैं। सपा के कई नेताओं ने भी पूर्व में कहा था कि यह मामला राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित है, क्योंकि आज़म खान और उनके परिवार को वर्षों से विभिन्न मामलों में घेरा जा रहा है। हालांकि, अदालत ने अभियोजन के दिए गए साक्ष्य और दस्तावेज़ों को पर्याप्त मानते हुए निर्णय को पारित किया।
रामपुर (Rampur) और आसपास के राजनीतिक गलियारों में इस फैसले से हलचल मच गई है। समाजवादी पार्टी के समर्थकों में निराशा और भाजपा खेमे में फैसले को लेकर संतोष का माहौल है। सियासी विश्लेषक मानते हैं कि यह फैसला न केवल अब्दुल्ला आज़म बल्कि रामपुर की राजनीति पर व्यापक प्रभाव डालेगा। अब्दुल्ला आज़म पहले भी कई मामलों का सामना कर चुके हैं, और यह फैसला उनके राजनीतिक भविष्य पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।
इस पूरे विवाद में सबसे प्रमुख सवाल यह था कि अलग-अलग जन्मतिथियां क्यों और कैसे दर्ज की गईं? अभियोजन ने अदालत को बताया कि एक दस्तावेज़ में जन्मतिथि 1 जनवरी 1993 (1 January 1993) और दूसरे में 30 सितंबर 1990 (30 September 1990) दर्ज थी। यह अंतर अपने आप में संदेह पैदा करता है और इसी आधार पर अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह गलती नहीं बल्कि जानबूझकर किया गया कृत्य प्रतीत होता है।
अदालत के इस फैसले से स्पष्ट संदेश जाता है कि राजनीतिक प्रभाव या बड़े पद पर बैठे लोगों के लिए भी कानून समान रूप से लागू होता है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला भविष्य के लिए महत्वपूर्ण नज़ीर (Judicial Precedent) साबित हो सकता है, खासकर उन मामलों में जहां जनप्रतिनिधियों पर फर्जी दस्तावेज़ बनाने का आरोप लगता है।
फैसले के बाद कानूनी प्रक्रिया अभी समाप्त नहीं हुई है। कानूनी जानकारों का मानना है कि अब्दुल्ला आज़म खान इस फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत (Higher Court) में अपील कर सकते हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आगे इस मामले में क्या कानूनी मोड़ आता है और क्या उच्च न्यायालय इस सज़ा को बरकरार रखता है या राहत देता है।
कुल मिलाकर, यह मामला पिछले कई वर्षों से सुर्खियों में रहा और आज आए इस बड़े फैसले ने उत्तर प्रदेश की राजनीति, न्यायपालिका और प्रशासनिक व्यवस्था में एक बड़ा संदेश दिया है कि कानून से ऊपर कोई नहीं।





