Published by : Sanjay Sahu, Chitrakoot
चित्रकूट : अमेरिका प्रवासी एक चिकित्सक ने अब अपने देश में भी गरीबों को सेवा देने की ठानी है। तीर्थक्षेत्र में आने के बाद डा. मिलिंद देवगांवकर एमडी का मन ऐसा रमा कि उन्होंने यहीं पर अस्पताल खोलने का मन बना लिया।
नागपुर (महाराष्ट्र) के निवासी डा. मिलिंद ने अमेरिका की भी नागरिकता ले रखी है। वह वहां मोरगनटाउन में न्यूरोलाजी स्पेशलिस्ट हैं। इसके अलावा ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी से भी संबद्ध हैं। वह लगभग दो साल पहले चित्रकूट आए। यहां तीर्थक्षेत्र में घूमते हुए उनका मन रम गया। चिकित्सा को लेकर तमाम कमियां नजर आईं तो तय कर लिया कि वह यहीं गरीबों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराएंगे। दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव अभय महाजन से बात की तो उनको डीआरआई में एक भवन उनको आवंटित कर दिया गया। डा. मिलिंद बताते हैं कि लगभग दो साल पहले उन्होंने यहां मातृ सदन नामक अस्पताल खोला। फिलहाल यह अपनी शुरुआती अवस्था में है। डा. मिलिंद के साथ मुंबई निवासी डा. नंद किशोर सेंदानी भी गरीबों की निस्वार्थ सेवा में जुटे हैं। सर्जन डा. नंद किशोर का मुंबई में अपना अस्पताल है। चित्रकूट आने पर उन्होंने उसे बंद कर दिया। इसके अलावा उन्होंने दादा दरबार बड़वाहा, ओमकारेश्वर, मिशन हास्पिटल सेंधवा आदि में अपनी सेवाएं दी हैं और अब वह डा. मिलिंद के मिशन में उनके साथ हैं। डा. मिलिंद की पत्नी का स्वर्गवास हो चुका है जबकि डा. नंद किशोर अपनी पत्नी के साथ अब यहीं बस गए हैं। डा. मिलिंद बताते हैं कि वह चाहते हैं कि उनके अस्पताल में अल्ट्रासाउंड, एक्सरे, सीटी स्कैन आदि सभी वे सुविधाएं बहुत कम पैसे में गरीब लोगों को उपलब्ध हो जाएं। इसके लिए वह लगातार प्रयासरत हैं। आशा है कि अन्य समाजसेवियों की मदद से इस अस्पताल को वह जिले में गरीबों की चिकित्सा का विकल्प बना देंगे। यहां हर तरह की जांच, हर रोग का इलाज हो सकेगा। उन्होंने लोगों से इस भागीरथी कार्य में सहयोग की भी अपेक्षा की।
फिलहाल निश्चेतक की कमी
यहां गर्भवती महिलाओं का इलाज तो होता है पर अभी आपरेशन की व्यवस्था नहीं है। डा. नंदकिशोर ने बताया कि निश्चेतक न होने की वजह से सर्जरी के किसी तरह के केस को यहां नहीं लिया जाता। जल्द ही निश्चेतक के आने की आशा है।
पत्नी के स्वर्गवास से हुआ वैराग्य
लगभग 54 वर्षीय डा. मिलिंद अमेरिका में नियमित सेवाएं दे रहे हैं। वह हर हफ्ते या पंद्रह दिन में चार-पांच दिन के लिए वहां जाते हैं और वहां से जो भी कमाते हैं, अस्पताल में लगा देते हैं। उन्होंने बताया कि उनका सपना है कि यहां गरीबों को बहुत कम रकम में उम्दा इलाज मुहैया हो। इसके लिए वह कई संस्थाओं से भी संपर्क में हैं, जिनसे कुछ फंड मिल सके। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि वह गरीबों की सेवा करते रहेंगे, जब तक उनके पास एक भी रुपया होगा। बताया कि उनकी पत्नी का ब्रेस्ट कैंसर से स्वर्गवास हुआ तो उनको समझ में आया कि रुपये पैसे भी उस दैवीय शक्ति की इच्छा के सामने तुच्छ हैं।
डा. मिलिंद ने यह भी कहा कि जो लोग उनके साथ जुड़कर गरीबों की सेवा करना चाहते हैं, वे उनके साथ आ सकते हैं, जिससे मदद का कारवां और लंबा हो।
तीमारदारों ने भी की प्रशंसा
अस्पताल में डेढ़ दो सौ मरीजों का आनाजाना शुरू हो गया है। इनमें ज्यादातर मरीज न्यूरो से संबंधित हैं। यहां भर्ती डिंगवाही की राजकुमारी के पति रामजी ने बताया कि उसकी पत्नी को चलने फिरने में दिक्कत होती थी, कई जगह दिखाया पर आराम नहीं मिला। यहां काफी हद तक राहत है।बताया कि पैसा भी बहुत कम लग रहा है। पहाड़ी निवासी रामरूप ने बताया कि उसके बेटे गुलाब के एक दुर्घटना के बाद से हाथ-पैर सुन्न पड़ गए थे। इलाहाबाद में इलाज में लगभग एक लाख खर्च हो गया पर कोई फायदा नहीं हुआ। यहां लगभग चार दिन के इलाज में उसके हाथ-पैरों में हरकत शुरू हो गई है।