वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव में सरकारों के वादे साबित हो रहे हवा-हवाई, धरोहरों की उपेक्षा से नाराज जनता

रिपोर्ट: तारकेश्वर प्रसाद

बिहार के वीरता और बलिदान के प्रतीक वीर कुंवर सिंह की स्मृतियों को बचाने के तमाम सरकारी वादे अब केवल मंचीय भाषण बनकर रह गए हैं।
प्रत्येक वर्ष धूमधाम से आयोजित होने वाला वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव कार्यक्रम अब सिर्फ घोषणाओं और भाषणों का अखाड़ा बनकर रह गया है, जहां केंद्र और राज्य सरकारें बड़ी-बड़ी बातें तो करती हैं लेकिन जमीन पर कोई ठोस कार्य नहीं होता।

मंच से किए गए वादे, समारोह के बाद भूल जाते हैं नेता
राजकीय समारोह के रूप में बिहार सरकार द्वारा आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम हो या फिर केंद्र सरकार की ओर से मनाया गया आजादी का अमृत महोत्सव — दोनों में वीर कुंवर सिंह की स्मृतियों को संरक्षित करने और पर्यटन स्थलों के विकास को लेकर दावे किए जाते हैं, लेकिन एक भी योजना शुरू नहीं हो पाती।
ऐसा प्रतीत होता है कि कोई अदृश्य शक्ति वीर कुंवर सिंह की विरासत के विकास में बाधा बनी हुई है।

जर्जर हो चुकी धरोहरें, खतरे में विरासत
सबसे दुखद पहलू यह है कि वीर कुंवर सिंह से जुड़ी अधिकतर ऐतिहासिक धरोहरें या तो विलुप्त हो चुकी हैं या फिर जर्जर अवस्था में हैं।
केवल जगदीशपुर किला ऐसा एकमात्र स्थान बचा है, जो आज भी वीरता की कहानी कहता है — लेकिन उसकी भी हालत इतनी खराब है कि कभी भी गिर सकता है।

अब तक अधूरी घोषणाएं और जनता के सवाल

  1. वीर कुंवर सिंह स्मृति स्थलों को बिहार पर्यटन में शामिल क्यों नहीं किया गया?
    इतिहास से जुड़े स्थलों को पर्यटन नक्शे पर लाने की बात बार-बार होती है, लेकिन बिहार पर्यटन विभाग द्वारा अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
  2. जगदीशपुर किले में अश्वारोही प्रतिमा और संग्रहालय जर्जर अवस्था में हैं।
    इनकी हालत देखकर कोई विश्वास नहीं करेगा कि यह उस महापुरुष की स्मृति है जिसने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों को चुनौती दी थी।
  3. नयका टोला में तोड़ा गया तोरणद्वार अब तक पुनः नहीं बना।
    मार्च 2024 में तत्कालीन सांसद ने उद्घाटन किया था, लेकिन आज तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ।
  4. स्मृति स्थलों के रखरखाव के लिए कोई समिति गठित नहीं की गई।
    इतने वर्षों में सरकार ने एक स्थायी समिति भी नहीं बनाई, जो वीर कुंवर सिंह की धरोहरों का रख-रखाव सुनिश्चित कर सके।
  5. आरा रेलवे स्टेशन परिसर में लगी अश्वारोही प्रतिमा का अनावरण अब तक नहीं किया गया।
    प्रतिमा बन गई, स्थापित भी हो गई, लेकिन उसे अभी तक आधिकारिक रूप से उद्घाटन का इंतजार है।

क्या वीरता का यह इतिहास यूँ ही मिटा दिया जाएगा?
यह सवाल अब हर जागरूक नागरिक के मन में गूंज रहा है कि क्या वीर कुंवर सिंह जैसे महान योद्धा की स्मृतियों को यूँ ही भुला दिया जाएगा?
केंद्र और राज्य सरकारों के लिए यह सिर्फ राजनीतिक मंच हो सकता है, लेकिन जनता के लिए यह सम्मान, विरासत और प्रेरणा का प्रतीक है।

जनता की अपेक्षा: घोषणाएं नहीं, ज़मीनी कार्य चाहिए
वीर कुंवर सिंह की विरासत को बचाना और उसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना सरकार का दायित्व है।
अब समय आ गया है कि घोषणाओं की जगह ठोस कार्य हो, ताकि वीर कुंवर सिंह का गौरवपूर्ण इतिहास केवल किताबों में नहीं बल्कि ज़मीनी सच्चाई के रूप में जीवित रह सके।

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