बिहार में पंचायत सचिव: जनसेवा का पद या भ्रष्टाचार का अड्डा?

Report By : तारकेश्वर प्रसाद
बिहार एक ऐसा राज्य है जहाँ पंचायत राज व्यवस्था को ग्रामीण विकास की रीढ़ माना जाता है। गाँवों तक सरकारी योजनाओं को पहुँचाने और आम लोगों की समस्याओं का समाधान करने के लिए पंचायत सचिव की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। लेकिन आज यही पद सवालों के घेरे में है।
राज्य के कई हिस्सों से यह खबरें आ रही हैं कि पंचायत सचिव अब जनसेवा के बजाय भ्रष्टाचार का जरिया बन चुके हैं। जिन कामों को ईमानदारी से करना चाहिए, उनमें पैसे की लेन-देन आम बात हो गई है।
पंचायत सचिव का मुख्य कार्य होता है कि वह सरकार की योजनाओं को गाँव में ठीक से लागू करे, विकास कार्यों की निगरानी करे और लोगों को जरूरी दस्तावेज जैसे जाति, निवास, आय प्रमाण पत्र उपलब्ध कराए। लेकिन जमीन पर सच कुछ और ही है।
मनरेगा योजना में गड़बड़ी
मनरेगा जैसी योजना, जो गरीबों को रोजगार देने के लिए बनी है, उसमें सबसे ज़्यादा भ्रष्टाचार देखने को मिलता है। पंचायत सचिव फर्जी जॉब कार्ड बनवाते हैं, मजदूरी के पैसे खुद रख लेते हैं या फिर गरीब मजदूरों से कमीशन लेकर ही भुगतान करते हैं।
रिश्वत के बिना नहीं मिलता हक
अगर किसी लाभार्थी को किसी योजना में अपना नाम जुड़वाना है या कोई किस्त का पैसा निकालना है, तो पंचायत सचिव उससे 5,000 से 20,000 रुपये तक की मांग करते हैं। यह रकम कभी नकद ली जाती है तो कभी किसी “बिचौलिए” के माध्यम से।
बिना काम के हो रही है सरकारी पैसे की निकासी
कई मामलों में बिना कोई काम कराए ही फर्जी बिल बना लिए जाते हैं। नाली, सड़क, या सोलर लाइट जैसी छोटी योजनाओं में दिखाया जाता है कि काम पूरा हो गया है, लेकिन ज़मीन पर कुछ भी नहीं होता। पैसा निकाल लिया जाता है और विकास अधूरा रह जाता है।
प्रमाण पत्र पाने के लिए भी देना पड़ता है सुविधा शुल्क
RTPS सेवाओं जैसे जाति, आय और निवास प्रमाण पत्र में पंचायत सचिव जानबूझकर देरी करते हैं। अगर कोई व्यक्ति जल्दी काम कराना चाहता है, तो उससे पैसे मांगे जाते हैं। यह एक तरह की मजबूरी बना दी गई है।
गरीब जनता सबसे ज़्यादा परेशान
इस भ्रष्टाचार से सबसे ज़्यादा असर गरीब और जरूरतमंद लोगों पर पड़ता है। जिन्हें सच में योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए, वे ही सबसे ज़्यादा परेशान होते हैं। कई लोग निराश होकर सरकारी दफ्तरों में चक्कर लगाना छोड़ देते हैं और उनका हक अधूरा रह जाता है।
क्या हो सकते हैं समाधान?
अगर बिहार को पंचायत स्तर पर पारदर्शी बनाना है, तो कई सख्त कदम उठाने होंगे। जैसे:
• हर पंचायत में हर तीन महीने पर सोशल ऑडिट हो, जिसमें जनता के सामने योजनाओं का पूरा हिसाब रखा जाए।
• सभी योजनाओं की डिजिटल निगरानी हो, ताकि ऑनलाइन ट्रैकिंग से गड़बड़ी रोकी जा सके।
• पंचायत सचिव की हर साल संपत्ति की जांच हो और यह देखा जाए कि उनके पास आय से अधिक संपत्ति तो नहीं है।
• जिला प्रशासन पंचायत सचिवों से हर महीने रिपोर्ट ले और नियमित निरीक्षण करे।
• जनता के लिए शिकायत पोर्टल और हेल्पलाइन नंबर सक्रिय हों, जहाँ वे गुप्त रूप से भ्रष्टाचार की शिकायत कर सकें।
• पंचायत में सरपंच और वार्ड सदस्यों की भागीदारी और जवाबदेही भी तय हो, ताकि सिर्फ सचिव ही अकेला निर्णयकर्ता न हो।
बिहार में अगर सच्चे मायनों में विकास चाहिए और जनता का सरकार पर विश्वास फिर से जीतना है, तो पंचायत सचिव जैसे पदों को पारदर्शी और जवाबदेह बनाना जरूरी है। ये पद जनसेवा के लिए बने हैं, न कि व्यक्तिगत कमाई के अड्डे के लिए।
पंचायत राज व्यवस्था को मज़बूत करना है तो उसमें से भ्रष्टाचार को खत्म करना ही होगा।