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आखिर इंदिरा गांधी को ‘गूंगी गुड़िया’ क्यों कहा गया?

प्रधानमंत्री बनने के बाद श्रीमती इंदिरा गांधी कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रही थीं।

प्रधानमंत्री बनने के बाद श्रीमती इंदिरा गांधी कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रही थीं। इंदिरा गांधी के चिकित्सक रहे डॉ. केपी माथुर ने अपनी किताब ‘द अनसीन इंदिरा गांधी’ में लिखा है कि प्रधानमंत्री बनने के एक – डेढ़ साल तक वे बहुत परेशान रहती थीं। संसद में बहस में भाग नहीं लेती थीं। यहाँ तक कि वे उन कार्यक्रमों में जाने से भी बचती थीं जहां उन्हें भाषण देना हो। उनकी इस असहजता पर विपक्ष हमेशा हमलावर रहता था। इसीलिए प्रखर वक्ता और सोशलिस्ट पार्टी के नेता राम मनोहर लोहिया ने तो उन्हें ‘गूंगी गुड़िया’ कह दिया था। ऐसे में पार्टी के भीतर उठ रहे बग़ावती सुर उन्हें और भी परेशान कर रहे थे। समय बीतता गया और इंदिरा गांधी ने
मोरारजी और कांग्रेस सिंडिकेट से लड़ना सीख लिया। इस बीच 1967 के चुनाव सिर पर आ गए।

आजादी के बाद यह देश का चौथा आम चुनाव था और ऐसा पहला चुनाव भी जो पंडित नेहरू के बिना हो रहा था। इस चुनाव में कांग्रेस को बहुमत तो मिला लेकिन पिछले चुनाव के मुक़ाबले उसने 78 सीटें गंवा दीं। 523 सीटों पर चुनाव हुए। कांग्रेस को 281 सीटें मिलीं। पं. दीनदयाल उपाध्याय के नेतृत्व वाले अखिल भारतीय जनसंघ को अप्रत्याशित रूप से 35 सीटें मिलीं। तब जनसंघ ने आम आदमी से जुड़े हुए कुछ नए नारे ईजाद किए थे। जैसे- “बीड़ी पीना छोड़ दो, जनसंघ को वोट दो” और “बीड़ी में तंबाकू है, कांग्रेस वाला डाकू है”। इसके अलावा कई विपक्षी दलों ने कई सीटों पर अपना साझा प्रत्याशी उतार दिया था। कांग्रेस को इसका भी नुक़सान हुआ।

कांग्रेस को सबसे तगड़ा झटका मद्रास में लगा। दरअसल चुनाव से एक महीने पहले एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) पर उनके प्रतिद्वंद्वी फिल्म स्टार एमआर राधा ने गोली चलवा दी थी। घायल एमजीआर की पूरे मद्रास में तस्वीरें चिपका दी गईं। अपने नायक को जिताने लोग बड़ी संख्या में बूथ तक पहुंचे। डीएमके की भारी जीत हुई। हालात ये थे कि डीएमके की आंधी में के कामराज जैसे कांग्रेस के कद्दावर नेता तिनके की तरह उड़ गए। उन्हें उनके ही गृह क्षेत्र विरुधुनगर में 28 साल के एक छात्र नेता पी श्रीनिवासन ने हरा दिया। कामराज के हारने का उत्साह देखिए कि जब ये खबर मद्रास पहुंची, डीएमके कार्यकर्ताओं ने श्रीनिवास नाम के एक दूसरे नौजवान को घोड़े पर बैठाया और शहर भर में जुलूस निकाला। कांग्रेस केरल में भी बुरी तरह हारी। वहां नई बनी कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएम की जीत हुई।

केंद्र में सत्ता कांग्रेस की रही। मोरारजी देसाई ने एक बार फिर प्रधानमंत्री पद के लिए अपना दावा ठोका। लेकिन एक समझौते के तहत मोरार जी को वित्त मंत्री और उप प्रधानमंत्री पद पर संतोष करना पड़ा। सरदार वल्लभ भाई पटेल के बाद कोई उप प्रधानमंत्री बनाया गया था। प्रधानमंत्री पद पर इंदिरा गांधी काबिज रहीं।

श्रीमती गांधी अब कांग्रेस सिंडिकेट से लगातार मिल रही चुनौतियों से सख्ती से निपटने का फैसला कर चुकी थीं। उन्होंने परमेश्वर नारायण (पीएन) हक्सर की सलाह पर एक समाजवादी के रूप में खुद की नई पहचान बनाने का फैसला किया। इंदिरा जी ने खुलकर गरीबों और वंचितों की तरफ़दारी शुरू कर दी। सिंडिकेट के नेता दंग रह गए।