मायावती के करीबी पूर्व मंत्री दद्दू प्रसाद समाजवादी पार्टी में हुए शामिल, यूपी की राजनीति में मची हलचल

Report By : स्पेशल डेस्क

उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। बसपा की सरकार में मंत्री रहे और तीन बार विधायक रह चुके दद्दू प्रसाद अब समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं। दद्दू प्रसाद कभी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती के बेहद करीबी माने जाते थे। अब उन्होंने समाजवादी पार्टी का हाथ थामकर सियासी हलचल तेज कर दी है।

लखनऊ स्थित समाजवादी पार्टी कार्यालय में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने खुद उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई। इस मौके पर दद्दू प्रसाद के साथ उनके कई सौ समर्थक भी मौजूद थे, जिन्होंने भी समाजवादी पार्टी की सदस्यता ली। दद्दू प्रसाद के समाजवादी पार्टी में शामिल होने के बाद खासकर बुंदेलखंड और बांदा क्षेत्र में राजनीतिक चर्चाएं तेज हो गई हैं।

दद्दू प्रसाद का राजनीतिक सफर भी काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। वह बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे और पार्टी के संस्थापक कांशीराम से राजनीतिक सीख ली। लेकिन साल 2015 में मायावती ने उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया। उस समय दद्दू प्रसाद ने मायावती पर टिकट के बदले पैसे लेने जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। पार्टी से बाहर होने के बाद उन्होंने बहुजन मुक्ति पार्टी बनाई, लेकिन कुछ समय बाद फिर से बसपा में लौट आए।

अब एक बार फिर उन्होंने अपनी राह बदलते हुए समाजवादी पार्टी जॉइन कर ली है। माना जा रहा है कि यह फैसला आने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए लिया गया है। यूपी में 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं और बसपा का जनाधार लगातार कमजोर हो रहा है। कई पुराने नेता और कार्यकर्ता बसपा छोड़कर अन्य दलों की ओर रुख कर रहे हैं।

अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी की रणनीति में बड़ा बदलाव किया है। वह अब PDA यानी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों के गठजोड़ पर चुनावी तैयारी कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी अब कोशिश कर रही है कि वह दलित समाज में अपनी पकड़ मजबूत करे। इसी रणनीति के तहत दद्दू प्रसाद जैसे नेताओं को पार्टी में शामिल किया जा रहा है।

फैज़ाबाद से सांसद अवधेश प्रसाद और दलित सांसद रामजी लाल सुमन जैसे नेताओं को आगे लाकर समाजवादी पार्टी यह संकेत दे रही है कि अब वह दलित समाज के मुद्दों को गंभीरता से ले रही है। मायावती के पुराने साथी और बसपा से निकाले गए कई नेता अब समाजवादी पार्टी में शामिल हो रहे हैं।

एक समय समाजवादी पार्टी को दलित विरोधी छवि का सामना करना पड़ता था। 1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद से दलित समाज और सपा के रिश्ते खराब हो गए थे। लेकिन साल 2019 में अखिलेश यादव ने बीएसपी से गठबंधन कर एक नई शुरुआत की थी। हालांकि, उस चुनाव में मायावती का वोट समाजवादी पार्टी में पूरी तरह ट्रांसफर नहीं हो पाया और सपा को अपेक्षित लाभ नहीं मिला।

उस अनुभव से सीख लेकर अब अखिलेश यादव ने फैसला किया है कि वह उधार के वोट पर निर्भर नहीं रहेंगे, बल्कि खुद दलित समाज में संगठन खड़ा करेंगे। यही कारण है कि अब समाजवादी पार्टी लगातार बसपा के नेताओं को अपने साथ जोड़ रही है। अखिलेश यादव चाहते हैं कि यह संदेश जाए कि बसपा अब कमजोर हो चुकी है और भाजपा को टक्कर देने के लिए समाजवादी पार्टी ही एकमात्र विकल्प है।

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं। पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी ने इनमें से 7 सीटें जीतकर यह दिखा दिया कि अब दलित समाज का भरोसा भी सपा पर बढ़ रहा है।

समाजवादी पार्टी की यह रणनीति अगर कामयाब होती है, तो आने वाले चुनावों में वह भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकती है। वहीं, बसपा के लिए यह एक बड़ा झटका है, क्योंकि उसके पुराने और मजबूत नेता अब पार्टी छोड़कर दूसरी ओर जा रहे हैं।

दद्दू प्रसाद की सपा में एंट्री सिर्फ एक नेता का पार्टी बदलना नहीं, बल्कि यूपी की राजनीति में दलित समीकरण के बड़े बदलाव की ओर इशारा करती है। आने वाले समय में और भी कई बसपा नेता सपा में शामिल हो सकते हैं। इससे साफ है कि समाजवादी पार्टी अब पूरे दमखम के साथ 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट चुकी है।

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Mukesh Kumar

मुकेश कुमार पिछले 3 वर्ष से पत्रकारिता कर रहे है, इन्होंने सर्वप्रथम हिन्दी दैनिक समाचार पत्र सशक्त प्रदेश, साधना एमपी/सीजी टीवी मीडिया में संवाददाता के पद पर कार्य किया है, वर्तमान में कर्मक्षेत्र टीवी वेबसाईट में न्यूज इनपुट डेस्क पर कार्य कर रहे है !

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