भारत की अभेद्य हवाई सुरक्षा ढाल: कैसे IACCS और आकाश मिसाइलों ने पाकिस्तानी हमलों को किया नाकाम

Report By : स्पेशल रिपोर्ट
नई दिल्ली : भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य तनाव ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि आधुनिक युद्धों में सूचना, समन्वय और तकनीक सबसे निर्णायक कारक हैं। 7 से 10 मई 2025 के बीच जब पाकिस्तान ने भारत के कई सैन्य और नागरिक ठिकानों को निशाना बनाने का प्रयास किया, तब भारतीय वायु सेना की एकीकृत वायु कमांड और कंट्रोल प्रणाली (IACCS) ने एक बार फिर अपनी शक्ति, गति और कुशल रणनीतिक सोच का प्रदर्शन किया। इस अभेद्य हवाई सुरक्षा ढाल के कारण पाकिस्तान के सभी ड्रोन और मिसाइल हमले विफल हो गए।
IACCS: भारतीय हवाई रक्षा की रीढ़
IACCS एक अत्याधुनिक स्वदेशी कमांड एंड कंट्रोल नेटवर्क है, जिसे भारतीय वायु सेना ने युद्ध के बदलते परिदृश्य को ध्यान में रखकर विकसित किया है। यह सिस्टम रडार, AWACS, S-400, आकाश और MRSAM जैसी मिसाइल प्रणालियों तथा निगरानी उपकरणों से जुड़े डेटा को AFNET (Air Force Network) के माध्यम से एकत्र करता है और उसे एकीकृत करता है। यह डेटा “Recognized Air Situation Picture (RASP)” के रूप में प्रसारित होता है, जिससे वायुसेना और अन्य रक्षा इकाइयों को तुरंत निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
पाकिस्तानी हमलों की असफलता की वजह क्या रही?
पाकिस्तान ने PL-15 मिसाइलों और यीहा-III व सोंगर जैसे सशस्त्र ड्रोन के साथ भारतीय हवाई सीमाओं का उल्लंघन करने की कोशिश की। लेकिन IACCS की निगरानी और समन्वय क्षमताओं के चलते भारतीय वायु रक्षा प्रणाली तुरंत सक्रिय हो गई। आकाश मिसाइल और Counter-UAS Systems ने पहले ही स्तर पर खतरे को निष्क्रिय कर दिया, जबकि S-400 और MRSAM जैसे हथियारों ने बैकअप सुरक्षा प्रदान की। नतीजा – शून्य क्षति।
मल्टीलेयर डिफेंस: एक असंभेद्य कवच
भारत की वायु रक्षा प्रणाली चार स्तरों में विभाजित है:
1. पहली परत – रडार और सेंसर नेटवर्क
2. दूसरी परत – इलेक्ट्रॉनिक व सशस्त्र ड्रोन विरोधी सिस्टम
3. तीसरी परत – मध्यम दूरी की मिसाइलें (Akash, MRSAM)
4. चौथी परत – लंबी दूरी की प्रणाली (S-400)
यह व्यवस्था दुश्मन के किसी भी हवाई खतरे को समय रहते पहचानने और खत्म करने में सक्षम है।
ऑपरेशन सिंदूर: सटीक प्रतिघात की मिसाल
6-7 मई की रात, भारतीय वायु सेना ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के प्रमुख सैन्य एयरबेस – नूर खान, रफीकी, मुरीद – पर लक्षित हमले किए। IACCS द्वारा प्रदान की गई रीयल-टाइम इंटेलिजेंस और मिशन कोऑर्डिनेशन के कारण ये हमले बेहद सटीक और प्रभावशाली साबित हुए।
इस सुरक्षा कवच को तैयार होने में कितना समय लगा?
IACCS की नींव 2003 में रखी गई थी। इसके बाद 2010 में AFNET की स्थापना हुई, जिसने पूरे सिस्टम को डिजिटल रीढ़ प्रदान की। DRDO द्वारा विकसित आकाश मिसाइल, BEL की Akashtheer प्रणाली और हाल में शामिल S-400 को धीरे-धीरे इस सिस्टम में एकीकृत किया गया।
भविष्य की दिशा: AI और स्वचालित निर्णय प्रणाली
IACCS को अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग जैसी अत्याधुनिक तकनीकों से लैस किया जा रहा है, ताकि यह आने वाले वर्षों में हाइपरसोनिक और लो-ऑब्जर्वेबल हवाई खतरों से भी निपट सके।
विशेषज्ञों की राय: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना
ऑस्ट्रियन मिलिट्री एनालिस्ट टॉम कूपर ने भारत की वायु सुरक्षा प्रणाली की प्रशंसा करते हुए कहा, “IACCS और Akash मिसाइलों की कार्यप्रणाली ने यह साबित कर दिया कि भारत अब केवल एक रक्षात्मक ताकत नहीं, बल्कि एक सक्रिय सामरिक शक्ति बन चुका है।”
भारतीय वायु रक्षा प्रणाली अब केवल सीमा सुरक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि यह दुश्मन को उसके क्षेत्र में भी जवाब देने की पूरी सामर्थ्य रखती है। IACCS, Akash और AFNET जैसी स्वदेशी प्रणालियों ने भारत को आत्मनिर्भर और अजेय बना दिया है – यह न केवल एक तकनीकी उपलब्धि है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की एक सुदृढ़ गारंटी भी।