राजद में अति पिछड़ा कार्ड: अगर वोट चाहिए तो मंगनी बाबू

रिपोर्ट: तारकेश्वर प्रसाद आरा बिहार

आरा:राजनीति में समीकरणों की बिसात बिछी है, हर चाल सोच-समझकर चली जाती है। इसी कड़ी में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने मंगली लाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर एक बड़ा ‘अति पिछड़ा कार्ड’ खेला है। अब पार्टी के कुछ रणनीतिकार और समर्थक दावे कर रहे हैं कि इस कदम से अति पिछड़ा वर्ग (EBC) का वोटबैंक पार्टी की ओर झुक जाएगा।

अगर हम इस तर्क को सच मान भी लें, तो फिर अगला सवाल अपने-आप खड़ा होता है  फिर मंगनी लाल मंडल को मुख्यमंत्री उम्मीदवार क्यों नहीं बना देते?

सिर्फ चेहरा या सत्ता का हिस्सा?
अति पिछड़ा समाज की राजनीति बिहार में लंबे समय से हाशिए पर रही है। कभी कर्पूरी ठाकुर ने इस वर्ग को आवाज़ दी थी, और उन्हीं की परंपरा से निकले नेता मंगनी बाबू भी हैं। लेकिन आज सवाल यह है कि क्या उन्हें सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उस पूरे समुदाय का समर्थन हासिल किया जा सकता है?

अगर पार्टी यह मानती है कि मंगनी लाल मंडल की नियुक्ति मात्र से पूरा EBC वर्ग साथ आ जाएगा, तो फिर उन्हें सिर्फ संगठनात्मक चेहरा क्यों बनाया गया? क्यों नहीं सत्ता का चेहरा बना दिया गया?

क्या EBC सिर्फ प्रतीकवाद तक सीमित रहेगा?
आज का वोटर सजग है। उसे पता है कि एक कुर्सी देना और सत्ता में भागीदारी देना दो अलग बातें हैं। प्रदेश अध्यक्ष का पद पार्टी के आंतरिक संगठन को चलाने के लिए होता है, जबकि मुख्यमंत्री पद पूरे राज्य की नीतियों और शासन की दिशा तय करता है।

तो अगर राजद को वाकई अति पिछड़ा वर्ग के विश्वास की दरकार है, तो महज़ “प्रतीक” नहीं, “प्रतिनिधित्व” देना होगा।

तेजस्वी बनाम मंगनी: फिर कौन असली चेहरा?
राजद में सबको मालूम है कि पार्टी की असली कमान तेजस्वी यादव के हाथ में है, और मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी वही हैं। ऐसे में मंगनी बाबू का अध्यक्ष बनना एक राजनीतिक संतुलन का प्रयास भर लगता है। लेकिन यह भी सच है कि जब तक चेहरे और नेतृत्व में साम्य नहीं दिखेगा, तब तक सामाजिक विश्वास सिर्फ कागजों और बयानों में सिमट कर रह जाएगा।

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