बिहार की भलाई के लिए झुकना पड़े तो वो झुकाव नहीं, जनसेवा है नीतीश कुमार की राजनीति में जनहित की अनूठी मिसाल

रिपोर्ट: तारकेश्वर प्रसाद आरा बिहार
बिहार के लोकप्रिय और अनुभवी नेता माननीय नीतीश कुमार को राज्यहित में लिए गए उनके बड़े फैसलों के कारण अक्सर आलोचना का सामना करना पड़ा है। चाहे वह गठबंधन बदलने का निर्णय हो या राजनीतिक समर्थन मांगना — कुछ लोग इसे राजनीतिक अवसरवाद, यू-टर्न या मजाक का विषय बना देते हैं। लेकिन क्या सचमुच एक जननेता का जनता की भलाई के लिए किसी से सहयोग या समर्थन मांगना कमजोरी है? या यह उस नेता की दूरदृष्टि, समर्पण और जनसेवा की सच्ची भावना का परिचायक है?
राजनीति केवल सत्ता का खेल नहीं, बल्कि सेवा, समर्पण और समझ का नाम है। बिहार में पिछले दो दशकों से लगातार जनकल्याण के लिए काम करने वाले नीतीश कुमार ने यह सिद्ध किया है कि जनसेवा के लिए जो कदम उठाए जाते हैं, वे न केवल जरूरी हैं बल्कि सम्माननीय भी।
नीतीश कुमार: विकास के अग्रदूत और जनसेवा के प्रतीक
नीतीश कुमार ने बिहार को लंबे समय तक झेल रहे जंगलराज से बाहर निकाल कर विकास की ओर अग्रसर किया। उनकी सरकार ने सड़क, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, कानून व्यवस्था और आर्थिक सुधारों के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
राज्य में आधारभूत ढांचे का सशक्तिकरण
महिला सुरक्षा और रोजगार के लिए ठोस योजनाएं
भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त नीतियां
केंद्र सरकार से विशेष राज्य का दर्जा और आर्थिक सहायता की मांग
इन सब पहलुओं ने बिहार को देश के अन्य राज्यों के साथ प्रतिस्पर्धा में खड़ा कर दिया है।
राजनीति में “हाथ जोड़ना” कोई अपमान नहीं
नीतीश कुमार ने बार-बार साबित किया है कि जनता के हित में “हाथ जोड़ना” राजनीति का अभिन्न हिस्सा है। राजनीतिक समझदारी तभी आती है जब कोई नेता अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से ऊपर उठकर राज्य और जनता के भविष्य को प्राथमिकता देता है। बिहार में किसी भी गठबंधन या समर्थन को पाने के लिए झुकाव नहीं, बल्कि दूरदर्शिता और जिम्मेदारी की भावना होनी चाहिए।
यह कदम केवल सत्ता के लिए नहीं, बल्कि जनहित की सेवा के लिए होता है। यदि जनता का भला हो, तो सत्ता की राजनीति में संयम और समझदारी से चलना ही बेहतर होता है।
आलोचना और ट्रोलिंग के बीच सच्चाई
आज की राजनीति में नेताओं के फैसलों पर निरंतर आलोचना और ट्रोलिंग आम बात हो गई है। परंतु जो लोग केवल आलोचना करते हैं, वे भूल जाते हैं कि सच्चा नेता वही होता है जो जनता के लिए खुद को झुकाता है, ताकि जनता का सिर ऊंचा हो सके।
नीतीश कुमार ने अपने कार्यकाल में कई ऐसे कठिन फैसले लिए, जो राजनीतिक रूप से मुश्किल थे, लेकिन बिहार की समग्र प्रगति के लिए आवश्यक थे। इसीलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि उनके लिए “झुकना” कोई कमजोरी नहीं, बल्कि जनता के लिए एक “बलिदान” है।
सत्ता की राजनीति से ऊपर जनसेवा की राजनीति
नीतीश कुमार की राजनीति सिर्फ सत्ता की राजनीति नहीं, बल्कि संवेदनशीलता, त्याग और समर्पण की राजनीति है। उन्होंने हर बार साबित किया है कि बिहार को आगे बढ़ाने के लिए जो भी आवश्यक हो, वह करने में पीछे नहीं हटेंगे। और यदि इसके लिए किसी से सहयोग मांगना पड़े, तो वह झुकाव नहीं, बल्कि जननेता की राजनीति की सच्चाई और मजबूती है।
समय के साथ यह बात साफ हो जाएगी कि जो लोग आज उनके कदमों का मजाक उड़ाते हैं, वे इतिहास के पन्नों में कहीं पीछे रह जाएंगे, जबकि नीतीश कुमार जैसे सच्चे जननेता इतिहास में सम्मान के साथ याद किए जाएंगे।