चीन से दोगुनी होगी भारत की रफ्तार! रेंगते नजर आएंगे अमेरिका और यूरोप, पर सामने आ रही सबसे बड़ी चुनौती

नई दिल्ली:
भारत की अर्थव्यवस्था एक बार फिर दुनिया की नजरों में छा गई है। वैश्विक आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अगले कुछ वर्षों में न केवल चीन को विकास दर के मामले में पीछे छोड़ देगा, बल्कि अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित देश भी भारत की तुलना में “रेंगते” नजर आएंगे। जहां विकसित देश मंदी और महंगाई से जूझ रहे हैं, वहीं भारत स्थिरता और तेज़ी से आगे बढ़ता दिख रहा है। हालांकि, इस प्रगति के बीच एक बड़ी चुनौती भी सामने आ रही है, जो भारत की संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है।


भारत की आर्थिक उड़ान: आंकड़ों की जुबानी

आईएमएफ (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) और वर्ल्ड बैंक की हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत की जीडीपी वृद्धि दर 2025-26 में 7.0% के पार जा सकती है, जबकि चीन की अनुमानित वृद्धि दर 3.5% से 4% के बीच रहने की उम्मीद है। वहीं अमेरिका और यूरोप की विकास दर 1.5% से भी कम रहने की संभावना है। इसका सीधा मतलब है कि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बनी रहेगी।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “मेक इन इंडिया”, “डिजिटल इंडिया” और “स्टार्टअप इंडिया” जैसी योजनाओं ने निवेशकों को आकर्षित किया है और घरेलू उद्योगों को नई जान दी है। इसके साथ ही भारत की युवा आबादी, मजबूत उपभोक्ता बाजार और तकनीकी नवाचार इसकी सबसे बड़ी ताकत बनते जा रहे हैं।


भारत बनाम चीन: विकास की प्रतिस्पर्धा

जहां चीन की अर्थव्यवस्था महामारी के बाद सुस्ती का शिकार बनी हुई है और वहां की रियल एस्टेट व टेक कंपनियां संकट से जूझ रही हैं, वहीं भारत में विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग), सेवा और कृषि क्षेत्र तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। भारत अब न केवल वैश्विक निवेशकों के लिए आकर्षण का केंद्र है, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (Global Supply Chain) में भी उसकी भागीदारी बढ़ रही है।

विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की ‘नियंत्रित अर्थव्यवस्था’ बनाम भारत की ‘लोकतांत्रिक खुली अर्थव्यवस्था’ अब वैश्विक निवेशकों की प्राथमिकता तय कर रही है।


अमेरिका-यूरोप की मंदी: भारत के लिए अवसर

अमेरिका और यूरोप इस समय आर्थिक मंदी और ऊंची महंगाई दर का सामना कर रहे हैं। वैश्विक बैंकिंग संकट, ऊर्जा की कीमतें, और जियोपॉलिटिकल तनाव (विशेषकर यूक्रेन युद्ध और मध्य पूर्व संकट) ने पश्चिमी देशों की आर्थिक रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया है।

भारत के लिए यह एक सुनहरा मौका है कि वह वैश्विक उत्पादन का केंद्र बन जाए। Apple, Tesla, और Google जैसी कंपनियां पहले ही भारत में अपने मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स बढ़ाने की दिशा में काम कर रही हैं।


सबसे बड़ी चुनौती: असमानता और बेरोजगारी

हालांकि भारत की विकास दर तेज है, लेकिन इसमें एक बड़ी खामी भी छुपी हुई है— आर्थिक असमानता और बेरोजगारी। रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत की सबसे अमीर 10% आबादी के पास देश की 77% संपत्ति है, जबकि गरीब और मध्यम वर्ग अपनी मूलभूत ज़रूरतों के लिए संघर्ष कर रहा है।

इसके साथ ही युवाओं में बेरोजगारी की दर भी चिंताजनक बनी हुई है। NSO (राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय) के आंकड़ों के अनुसार, शहरी इलाकों में 20-29 वर्ष की उम्र के युवाओं में बेरोजगारी दर 17% से ऊपर बनी हुई है। अगर भारत इस समस्या का समाधान नहीं कर पाया, तो यह विकास की गति को धीमा कर सकती है।


नीति निर्माण की दिशा में बदलाव जरूरी

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारत को अपनी आर्थिक सफलता को स्थायी बनाने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और कौशल विकास (skill development) जैसे क्षेत्रों में और अधिक निवेश करने की जरूरत है। साथ ही, श्रम कानूनों में सुधार, महिला कार्यबल की भागीदारी बढ़ाना, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना भी ज़रूरी है।


सुनहरा अवसर, लेकिन सोच-समझकर कदम जरूरी

भारत के पास इस समय इतिहास में शायद पहली बार ऐसा अवसर आया है जब वह न केवल एशिया में बल्कि वैश्विक मंच पर नेतृत्व कर सकता है। लेकिन इस मौके को भुनाने के लिए सिर्फ तेज़ रफ्तार ही नहीं, बल्कि स्थायित्व, समावेशन (inclusiveness) और दूरदर्शिता की ज़रूरत है।

दुनिया भारत की ओर देख रही है—अब देखना यह है कि क्या भारत अपनी रफ्तार को बनाए रखते हुए सबको साथ लेकर चल पाएगा या नहीं।


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