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महाकुंभ का महाशास्त्र : महासंगम का महापर्व

लेखक : अविनाश झा,डीएफएमओ, चित्रकूट

महाकुंभ में ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर भारतीय उद्योग जगत कम से कम तीन हजार करोड़ रुपये
खर्च कर रहा है। मेले को कुल 25 सेक्टर में बांटा गया है, जिसके प्रत्येक सेक्टर की अपनी दुकाने हैं। वर्ष 2013 में कुंभ क्षेत्र में लगभग 2 हजार
दुकानें थी, जो वर्ष 2019 कुंभ में बढ़कर छह हजार हो गई थी।

धर्म का संबंध सिर्फ धार्मिक उपासना, पूजा, अर्चना, नीति मूल्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि धर्म व्यापक अर्थों में सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक उपक्रमों का प्रतिबिंब होता है। स्वाभाविक रूप से संगम नगरी प्रयागराज का महाकुंभ केवल एक धार्मिक मेला नहीं, बल्कि एक ऐसा उत्सव है, जो भारतीय संस्कृति, परंपरा और आधुनिकता का संगम है। इसके आयोजन पर होने वाला खर्च, व्यवस्थाओं का विस्तार और इससे जुड़ी आर्थिक गतिविधियां इसे एक अद्भुत और अद्वितीय आयोजन बनाती हैं। इसका धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पक्ष के साथ-साथ आर्थिक पक्ष भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह व्यापार और आर्थिक विकास के लिए एक बड़ा अवसर प्रदान करता है। महाकुंभ के आयोजन पर किए जाने वाले व्यय, इसके बजट के आकार, रोजगार सृजन, आधारभूत संरचना के विकास, पर्यटन में वृद्धि और व्यापारिक आय में वृद्धि से इसका आर्थिक महत्व परिलक्षित होता है। प्रयागराज में महाकुंभ मेला आयोजन के डेढ़ महीने में लगभग 40 करोड़ श्रद्धालु का संगम क्षेत्र में आगमन, आयोजन 7500 करोड़ रुपये का खर्च, चार हजार हेक्टेयर में विस्तारित मेला क्षेत्र इसके लिए 13 हजार ट्रेनों की व्यवस्था, श्रद्धालुओं के लिए 1.6 लाख से ज्यादा टेंटों का निर्माण, | 2700 आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाले कैमरे, कुंभ क्षेत्र में 488 किलोमीटर की सड़कों का निर्माण, 67 हजार एलईडी लाइटों की व्यवस्था, 200 वाटर एटीएम की व्यवस्था इसके वृहत आर्थिक आकार को प्रदर्शित करता है। इसके आयोजन के लिए | पिछले दो-तीन वर्षों में 200 से अधिक सड़कों का निर्माण, विस्तारीकरण एवं चौड़ीकरण किया गया है। पिछले एक वर्ष में प्रयागराज में लगभग 14 नए फ्लाईओवर बनाया गया है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी एक ट्रिलियन इकोनॉमी की संकल्पना को मूर्त रूप प्रदान करने के उद्देश्य से महाकुंभ आयोजन के लिए 5,435 करोड़ रुपये का विशाल बजट निर्धारित किया है, जो वर्ष | 2019 के अर्धकुंभ मेले के 42 सौ करोड़ रुपये के बजट से अधिक है। समग्र रूप से इस आयोजन पर लगभग 75 सौ करोड़ रुपए का खर्च किया जा रहा है, जिसमें केंद्र सरकार का 21 सौ करोड़ का योगदान भी शामिल है। इससे संबंधित लगभग 2025 में 421 परियोजनाओं पर काम चल रहा है, जिनमें से 3,462 करोड़ रुपये की योजनाओं को पहले ही मंजूरी मिल चुकी है। इनमें मेले के आधारभूत ढांचे का विकास, यातायात व्यवस्था, सुरक्षा और स्वच्छता से लेकर श्रद्धालुओं की सुविधाओं के प्रबंधन तक हरेक पक्ष को शामिल किया गया है। सिर्फ प्रयागराज में कुल साढ़े पांच हजार करोड़ की 167 विकास परियोजनाओं का संचालन किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त प्रयागराज के सटे हुए जिलों में पृथक से काम चल रहा है।

ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो सर्वप्रथम वर्ष 1870 में अंग्रेजों ने कुंभ आयोजन की बागडोर अपने हाथों में ले लिया था, जिसे पहला आधिकारिक कुंभ भी माना जाता है। सर्वप्रथम रीड ने वर्ष 1882 में हुए प्रयाग कुंभ मेले के आय-व्यय का लेखा-जोखा बनाया, जिसके अनुसार मेले में कुल 20,228 रुपए खर्च हुए थे, जबकि राजस्व के रूप में सरकार को 49,840 रुपये प्राप्त हुए थे। उस समय के हिसाब से यह एक बहुत बड़ी आय थी । वस्तुत: यह धनराशि मेले में आने वाले नाइयों, मालियों, नाविकों, कनात वालों, फेरी वालों, बैल गाड़ी वालों से टैक्स के रूप में वसूल किया गया था। इस वर्ष लगभग 8 लाख श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान किया था । समय के साथ कुंभ में श्रद्धालुओं की संख्या में भी वृद्धि होती गई और साथ ही दुनिया के इस सबसे बड़े धार्मिक आयोजन का खर्च और उससे होने वाली आय भी बढ़ती गई। जब कुंभ से आय बढ़ी तो अंग्रेजों ने मेले में अपने अफसर तैनात कर राजस्व बढ़ाने और ब्रिटिश राज के प्रचार के लिए मेले पर अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी, साथ ही आय का कुछ हिस्सा मेले की व्यवस्था पर खर्च किया जाने लगा। जाहिर है कि शुरुआती दिनों
से ही कुंभ मेला का आर्थिक महत्व बरकरार रहा है। कांफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज के अनुसार वर्ष 2013 के महाकुंभ से हवाई अड्डों, होटलों, सड़कों के आधारभूत संरचना में वृद्धि के साथ-साथ राज्यको करों, किराए और अन्य शुल्कों के माध्यम से कुल 12 हजार करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था, जो वर्ष 2019 के अर्धकुंभ में बढ़कर 1.2 लाख करोड़ रुपये हो गया था। स्वाभाविक रूप से अपने वृहत आर्थिक और जन सांख्यिकीय आकार के चलते वर्ष 2025 के महाकुंभ से राज्य को मिलने वाली आय इससे कई गुना ज्यादा बढ़कर 3 लाख करोड़ तक हो सकती है।

महाकुंभ ने सबसे ज्यादा पर्यटन उद्योग को प्रभावित किया है। पर्यटन नीति 2022 के अंतर्गत पर्यटन क्षेत्र में 1160 से अधिक निवेशकों से 1.5 ट्रिलियन रुपये का निवेश होने का अनुमान है। सरकार द्वारा भी आगे बढ़कर महाकुंभ के माध्यम से देशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए भारत के प्रमुख शहरों और नीदरलैंड, थाईलैंड, इंडोनेशिया और मॉरीशस सहित अन्य देशों में रोड शो आयोजित किए गए हैं। इतना ही नहीं इस बार सभी राज्यों में महाकुंभ के लिए विशेष निमंत्रण पत्र भेजा गया है, स्वाभाविक रूप से पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी। वर्ष 2019 के कुंभ मेले में लगभग 24 करोड़ पर्यटक और तीर्थयात्रियों आए थे, जबकि इस वर्ष महाकुंभ में 40 करोड़ लोगों के आने का अनुमान है। वर्ष 2023 में लगभग 48 करोड़ घरेलू और विदेशी पर्यटक उत्तर प्रदेश आए थे। इस महाकुंभ के चलते वर्ष 2028 तक उत्तर प्रदेश में पर्यटकों की संख्या 85 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है। सरकार होटलों और रिसॉर्ट्स के विकास के साथ-साथ ऐतिहासिक किलों, वन्य अभ्यारण्यों, मंदिरों, मठों, तीर्थ स्थलों, नदी तटों और राजमहलों जैसे पर्यटन स्थलों का पुनर्विकास भी कर रही है।

महाकुंभ के दृष्टिगत उत्तर प्रदेश में इतनी विशाल संख्या में श्रद्धालुओं को रुकने-ठहराने के लिए प्रयागराज में चार हजार हेक्टेयर का विशाल टेंट सिटी स्थापित किया गया है, जिसमें दो हजार टेंट और 25 हजार सार्वजनिक आवास हैं। शहर में नए होटल, रेस्टोरेंट्स, पीजी गेस्ट हाउस, होम स्टे का निर्माण और संबद्ध किए गए हैं। लगभग 23 हजार
सीसीटीवी कैमरे और एआई-आधारित निगरानी, संगम के तट पर स्थित टेंट सिटी की सुरक्षा व्यवस्था में सहायता पहुंचाएंगे। राज्य सरकार इस आयोजन में आने वाले पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को लाने-ले जाने के लिए सात हजार से अधिक नई बसें चला रही है। पहली बार 13 किलोमीटर लंबा रिवर फ्रंट बनाया गया है। कुंभ क्षेत्र में 67 हजार स्ट्रीट लाइट लगाएं गए हैं।

महाकुंभ में ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर भारतीय उद्योग जगत कम से कम तीन हजार करोड़ रुपये खर्च कर रहा है। मेले को कुल 25 सेक्टर में बांटा गया है, जिसके प्रत्येक सेक्टर की अपनी दुकाने हैं। वर्ष 2013 में कुंभ क्षेत्र में लगभग 2 हजार दुकानें थी, जो वर्ष 2019 कुंभ में बढ़कर छह हजार हो गई थी। इस बार मेला प्रशासन ने लगभग दस हजार दुकानें स्थापित की जा गईं हैं। आवागमन की सुविधा के लिए पिछले कुछ माह में तीन हजार टैक्सियों के व्यावसायिक परमिट जारी किए गए हैं। महाकुंभ का व्यावसायिक महत्व इससे भी जाहिर होता है कि हिंदुस्तान यूनिलीवर, कोका-कोला, आईटीसी, बिसलेरी, पारले, डाबर, पेटीएम और इमामी के साथ-साथ अनेक मोबिलिटी प्लेयर्स और ईवी कंपनियों ने भी मेला क्षेत्र में अपने शोरूम स्थापित करने में रुचि दिखाई है। कंपनियां लगभग तीन हजार करोड़ रुपये केवल महाकुंभ के ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर खर्च कर रही हैं।

महाकुंभ में करोड़ों देशी-विदेशी तीर्थयात्री और पर्यटकों के आने से होटल, रेस्तरां, गाइड सेवाएं और परिवहन सेवाओं में भारी वृद्धि होती है। हवाई यात्रा, रेल और सड़क परिवहन के माध्यमों में भी यात्रियों की संख्या में वृद्धि से इन सेक्टरों की आय में वृद्धि होगी। स्पष्ट है कि लगभग 144 वर्षों के बाद विशेष शुभ मुहूर्त में आयोजित होने वाले इस महाकुंभ को सिर्फ एक धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजन के रूप में देखा जाना उचित नहीं है, बल्कि यह अपने वृहत आर्थिक क्रियाकलापों के दृष्टिगत उत्तर प्रदेश एवं देश की अर्थव्यवस्था में उछाल लाने वाला एक बूस्टर डोज सिद्ध होगा । इतना ही नहीं इस महाकुंभ से प्रेरित आधारभूत संरचना के विकास, राजस्व एवं रोजगार में वृद्धि से उतर प्रदेश अपने वन ट्रिलियन इकोनॉमी के लक्ष्य को प्राप्त करने के नजदीक पहुंच जाएगा।

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