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आजादी की लड़ाई  के जब्तशुदा तरानों में निहित है आजादी का मूल अर्थ : स्वदेशी आंदोलन 

लेखक: डॉ. विजय श्रीवास्तव, एल. पी. यू, पंजाब 

वीरों की कर्म भूमि भारत में आजादी की लड़ाई  ने न केवल  सापेक्ष तौर पर अपितु निरपेक्ष रूप से भी लोगों की चेतना को जागृत करने का महान कार्य किया था | भारत का स्वतंत्रता आंदोलन वैचारिक आधार पर बहुत ही समृद्ध था | आज़ादी की लड़ाई के दौरान सृजित साहित्य भी गहन विचार और दार्शनिक चिंतन से परिपूर्ण है | आजादी की लड़ाई के दौरान ऐसी कई साहित्यिक कृतियां थी जिनको अंग्रेजी हुकुमत ने ज़ब्त कर लिया था | इन जब्त शुदा तरानों  में भविष्य के भारत का सपना था | आज जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं , तो हमें इन गूढ़ अर्थ लिए हुए गीतों को फिर से याद करने की आवश्यकता है | ये जब्तशुदा तराने ,भटकी हुई नई  पीढ़ी को दिशा भी दिखा सकते हैं | आज जिस जब्तशुदा तराने की बात कर रहे हैं, उस गीत के रचयिता का नाम ज्ञात नहीं है , किन्तु ये गीत स्वदेशी आंदोलन के समय अंग्रेजी हुकुमत ने जब्त कर लिया था | ये गीत स्वदेशी आंदोलन के दौरान एक स्त्री की अभिलाषा को देश प्रेम की भावना के साथ व्यक्त करता है और आजादी की लड़ाई में महिलाओं की महत्ती भूमिका को भी स्वीकार करता है |  इस गीत को वर्ष 1923 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने जब्त किया था | ये गीत महिलाओं की स्वदेशी आदोंलन में भूमिका  साथ  विदेशी  आर्थिक शोषण की भी तस्वीर दिखाता है |  ये गीत ये भी दर्शाता है , आजादी की लड़ाई की पावन भावना लोक गीतों के माध्यम से जनमानस तक पहुंच रही थी | 

मुझे गाढ़ा स्वदेशी मंगा दो सजन, है फैली काहिली दुनिया जहांन में सारे,इसी ख्याल से मेरे ख्याल हैं नारे, तमाम दिन मेरा बेकार गुजरे है प्यारे,मैं तो कातूंगी चरखा करूंगी भजन, मुझे गाढ़ा स्वदेशी मंगा दो सजन |
 
इसी की साड़ियां -चादर कमीज बनवाना, इसी का कोट-ओ -कुरता बनाओ मनमाना इसी की टोपियां, अचकन, रजाई बनवाना जो सुधारो चाहो तुम अपना वतन, मुझे गाढ़ा स्वदेशी  मंगा दो सजन रुई की कद्र विलायत में लोग करते हैं , इसी के जोर से दुनिया से कब वो डरते हैं, हमारे मुल्क से लेकर जहाज भरते है यह नजरों में हल्की, पै भारी वजन मुझे गाढ़ा स्वदेशी मंगा दो सजन !