अंबेडकर-अखिलेश वाले पोस्टर पर UP में सियासी उबाल

पोस्टर में अखिलेश को बताया गया अंबेडकर का विचारधारा वाहक
समाजवादी पार्टी द्वारा जारी इस पोस्टर में अखिलेश यादव को ‘डॉ. अंबेडकर की विचारधारा को आगे बढ़ाने वाला नेता’ बताया गया है। पोस्टर में लिखा गया है — “अखिलेश में दिखता है बाबा साहब का सपना।” इसे लखनऊ समेत कई जिलों में सपा कार्यकर्ताओं ने जगह-जगह लगाया, जिससे राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई।
बीजेपी ने जताया विरोध, कहा- सस्ती राजनीति की जा रही है
भारतीय जनता पार्टी ने इस पोस्टर पर सख्त ऐतराज जताया है। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा, “सपा ने वोट बैंक की राजनीति के लिए अंबेडकर को भी नहीं छोड़ा। जिन लोगों ने बाबा साहब के विचारों की हमेशा उपेक्षा की, वही अब खुद को उनके विचारों का उत्तराधिकारी बता रहे हैं। ये एक तरह का राजनीतिक छलावा है।”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि समाजवादी पार्टी ने अपने कार्यकाल में कभी दलितों के अधिकारों के लिए गंभीरता से काम नहीं किया, और अब चुनाव नजदीक आते देख इस तरह के प्रचार से दलित समाज को गुमराह किया जा रहा है।
मायावती ने भी जताई नाराजगी, कहा- ‘डॉ. अंबेडकर का नाम लेने का नैतिक हक नहीं’
बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी सपा के इस कदम को ‘नकली सामाजिक न्याय’ की राजनीति करार दिया। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “जो लोग डॉ. अंबेडकर के मूल विचारों के खिलाफ काम करते रहे हैं, उन्हें उनके नाम और तस्वीर का इस्तेमाल करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। यह दलितों के साथ विश्वासघात है।”
मायावती ने आगे यह भी कहा कि सपा शासन में दलितों पर अत्याचार बढ़े थे और उनकी पार्टी (बसपा) ने ही अंबेडकर की नीतियों को सही मायने में लागू किया।
सपा का पलटवार – बीजेपी और बसपा की बौखलाहट है ये
समाजवादी पार्टी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि अखिलेश यादव हमेशा सामाजिक न्याय और समानता की बात करते रहे हैं। सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा, “जो लोग दलितों का सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करते हैं, उन्हें सपा की सामाजिक न्याय की राजनीति से डर लग रहा है। डॉ. अंबेडकर की सोच को सबसे बेहतर ढंग से अगर किसी ने आगे बढ़ाया है, तो वह सपा है।”
चुनाव से पहले पोस्टर पॉलिटिक्स
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह पोस्टर विवाद आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र दलित वोटों को साधने की कोशिश है। यूपी में दलित, पिछड़ा और मुस्लिम वोट बैंक अहम भूमिका निभाते हैं और इसी समीकरण को अपने पक्ष में करने के लिए सियासी दल अपनी-अपनी रणनीति बना रहे हैं।
डॉ. अंबेडकर की विरासत को लेकर राजनीतिक दलों के बीच मची इस खींचतान ने साफ कर दिया है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में ‘पोस्टर पॉलिटिक्स’ का दौर अभी थमने वाला नहीं है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा और भी गर्मा सकता है, क्योंकि सभी दल अपने-अपने तरीके से वोटर्स को लुभाने में जुटे हैं।