शिक्षा या व्यापार? प्राइवेट स्कूलों की लूट से बेहाल अभिभावक, अब सड़कों पर आने की चेतावनी

Report By : यूसुफ खान राना

बांदा : निजी स्कूलों में मनमानी फीस वसूली के खिलाफ अब आम जनता का ग़ुस्सा फूटने लगा है। शिक्षा जैसी संवेदनशील सेवा को मुनाफाखोरी का ज़रिया बना देने वाले इन प्राइवेट स्कूलों की हकीकत अब अभिभावकों की जुबानी सामने आ रही है।

बांदा के रहने वाले एक परेशान पिता, रामनिवास द्विवेदी कहते हैं – “मेरी सैलरी 18 हजार है, लेकिन स्कूल हर साल एक बच्चे पर 40-45 हजार रुपए खर्च करवा देता है। ये कौन-सी शिक्षा है, जिसमें किताबें भी स्कूल की दुकान से खरीदनी ज़रूरी होती हैं?”

सिर्फ रामनिवास नहीं, ऐसे सैकड़ों अभिभावक हैं जो प्राइवेट स्कूलों की अंधाधुंध फीस वसूली से त्रस्त हैं। नामी-गिरामी स्कूल ‘इंग्लिश मीडियम’ के नाम पर ना केवल पढ़ाई के लिए बल्कि किताबें, यूनिफॉर्म, जूते, बैग तक अपने ही कैंपस की दुकान से खरीदने को मजबूर करते हैं।

“एक ही किताब को हर साल बदल देते हैं ताकि उनकी दुकान की बिक्री बनी रहे। 200 रुपये की किताब हमें 800 में खरीदनी पड़ती है,”
बताते हैं आमिर खान, युवा सामाजिक कार्यकर्ता।

लूट का दूसरा चेहरा – शिक्षकों की हालत भी खराब
इन स्कूलों की भव्य बिल्डिंग और हाई-फाई प्रचार के पीछे सच्चाई यह है कि यहां पढ़ाने वाले शिक्षकों को न्यूनतम वेतन दिया जाता है।
“हम महीने भर मेहनत करते हैं और 5000-6000 रुपये में गुज़ारा करने को मजबूर हैं। स्कूल संचालक केवल मुनाफा देखता है, शिक्षा नहीं,”
बताती हैं नाम न बताने की शर्त पर एक निजी स्कूल की महिला शिक्षिका।

जब हमने इस विषय पर जिला प्रशासन से प्रतिक्रिया लेनी चाही, तो ज़्यादातर अधिकारी या तो इस मुद्दे से अनभिज्ञ नज़र आए या उन्होंने जिम्मेदारी किसी और विभाग पर डाल दी।

राजनीतिक मोर्चा: अब आंदोलन की चेतावनी
जनता दल यूनाइटेड महिला विंग की प्रदेश अध्यक्ष शालिनी सिंह पटेल ने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाते हुए मुख्यमंत्री को पत्र भेजा है। उनका कहना है:

“एक देश, एक शिक्षा नीति को तुरंत लागू किया जाए। सरकारी और निजी स्कूलों में एक समान पाठ्यक्रम, किताबें और मूल्य नीति हो। जो स्कूल या प्रकाशक इस नियम का उल्लंघन करें, उन पर सख्त कार्रवाई की जाए।”

शालिनी सिंह आगे कहती हैं – “अगर सरकार ने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो हम बड़ा जनांदोलन करेंगे। ये आंदोलन किसी पार्टी या वोट के लिए नहीं, बच्चों के भविष्य और न्याय के लिए होगा।”

छात्र नेताओं की भी तीखी प्रतिक्रिया

उदय प्रताप सिंह (डेविड), छात्र नेता – पं. जे.एन. पीजी कॉलेज

“प्राइवेट स्कूलों की फीस तय होनी चाहिए। आज शिक्षा अमीरों के बच्चों तक सीमित होती जा रही है। यह संविधान के मूल अधिकार – ‘समान शिक्षा का अधिकार’ – का उल्लंघन है।”

साजिद अली डॉलर, पूर्व महासचिव, सपा छात्रसभा बांदा

“स्कूलों ने अपने पास कमीशन वाली दुकानें खोल रखी हैं। किताबें, यूनिफॉर्म और यहां तक कि पेन-पेंसिल भी उन्हीं से खरीदनी पड़ती है। मुनाफा ही लक्ष्य है, शिक्षा नहीं।”


सरकार से सवाल – कब होगी सुनवाई?
• क्या शिक्षा को मुनाफे से मुक्त कर पाना संभव है?
• क्या “एक देश, एक शिक्षा” सिर्फ नारा है या हकीकत बनेगा?
• क्या मध्यमवर्गीय और गरीब परिवारों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल पाएगी?

अब समय आ गया है कि सरकार जागे और निजी स्कूलों की फीस, किताब और यूनिफॉर्म की अनियंत्रित व्यवस्था पर नियंत्रण लगाए। नहीं तो जनता का यह असंतोष जल्द ही बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है।

Mukesh Kumar

मुकेश कुमार पिछले 3 वर्ष से पत्रकारिता कर रहे है, इन्होंने सर्वप्रथम हिन्दी दैनिक समाचार पत्र सशक्त प्रदेश, साधना एमपी/सीजी टीवी मीडिया में संवाददाता के पद पर कार्य किया है, वर्तमान में कर्मक्षेत्र टीवी वेबसाईट में न्यूज इनपुट डेस्क पर कार्य कर रहे है !

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