यूपी में ‘DNA’ पर सियासी बवाल जारी, ब्रजेश पाठक के समर्थन में लखनऊ में फिर लगे पोस्टर

Report By: उत्तर प्रदेश डेस्क,
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में ‘DNA’ विवाद ने नया मोड़ ले लिया है। उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक को लेकर उठे बयानबाज़ी के तूफ़ान के बीच राजधानी लखनऊ में उनके समर्थन में एक बार फिर पोस्टर लगाए गए हैं। इन पोस्टरों में ब्रजेश पाठक को ‘असल भाजपाई’ और ‘जनप्रिय नेता’ बताया गया है, जिससे यह साफ संकेत मिल रहा है कि पार्टी के भीतर और बाहर इस मुद्दे को लेकर हलचल अभी थमी नहीं है।
कैसे शुरू हुआ ‘DNA’ विवाद?
यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ही एक वरिष्ठ नेता ने इशारों-इशारों में ब्रजेश पाठक के ‘राजनीतिक डीएनए’ पर सवाल खड़े किए। बयान का आशय यह था कि कुछ नेता पार्टी में होने के बावजूद उसकी विचारधारा के अनुरूप नहीं हैं। यह बात सीधे तौर पर तो नहीं कही गई, लेकिन राजनीतिक हलकों में माना गया कि यह निशाना ब्रजेश पाठक पर था, जो बसपा से भाजपा में आए थे।
लखनऊ में लगे समर्थन वाले पोस्टर
इन बयानों के बाद लखनऊ की सड़कों पर ब्रजेश पाठक के समर्थन में पोस्टर लगाए गए हैं, जिनमें लिखा है:
“ब्रजेश पाठक भाजपा का असली डीएनए हैं”
“हमारे उपमुख्यमंत्री, हमारी शान”
इन पोस्टरों पर ब्रजेश पाठक की बड़ी तस्वीरों के साथ उनका राजनीतिक और सामाजिक योगदान भी दर्शाया गया है। पोस्टरों में यह भी लिखा गया है कि ब्रजेश पाठक ने पार्टी और प्रदेश की सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ी है, और यह उन्हें ‘बाहरी’ कहने वालों को करारा जवाब है।
ब्रजेश पाठक की प्रतिक्रिया
हालांकि ब्रजेश पाठक ने अब तक सार्वजनिक तौर पर इस विवाद पर कुछ खास नहीं कहा है, लेकिन उन्होंने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में यह जरूर कहा था कि,
“हमारे लिए राष्ट्र सर्वोपरि है, पार्टी का अनुशासन सर्वोच्च है, और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं गौण हैं।”
इस बयान को भी राजनीतिक विश्लेषक इस विवाद के बीच संतुलन साधने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने इस पूरे विवाद को लेकर भाजपा पर निशाना साधा है। सपा प्रवक्ता ने कहा कि,
“जब अपने ही नेता एक-दूसरे के डीएनए पर सवाल उठाएं, तो इससे जनता को भाजपा की अंदरूनी कलह का अंदाज़ा हो जाता है।”
वहीं कांग्रेस का कहना है कि भाजपा में असंतोष बढ़ता जा रहा है, और यह पोस्टरबाज़ी उसी का नतीजा है।
भाजपा का रुख
भाजपा नेतृत्व इस पूरे मामले में फिलहाल चुप्पी साधे हुए है। लेकिन सूत्रों की मानें तो पार्टी आलाकमान ने आंतरिक स्तर पर नेताओं को अनुशासन में रहने की सख्त हिदायत दी है। पार्टी नहीं चाहती कि चुनावी वर्ष में इस तरह के विवाद से संगठन की छवि पर कोई नकारात्मक असर पड़े।