रामविलास पासवान जी की प्रतिमा की माँग: पासवान चौक पर जनभावनाओं को मिले सम्मान


रिपोर्ट: तारकेश्वर प्रसाद, आरा

  ऐतिहासिक विरासत, सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक चेतना के लिए प्रसिद्ध आरा शहर आज एक महत्वपूर्ण मांग के केंद्र में है। यहाँ के गजराजगंज थाना अंतर्गत चौकीपुर क्षेत्र में स्थित ‘पासवान चौक’ वर्षों से जननेता रामविलास पासवान जी के सम्मान में जाना जाता है, लेकिन आज भी वहाँ उनकी प्रतिमा नहीं लग पाई है। यह स्थिति न केवल स्थानीय जनता की भावनाओं की उपेक्षा है, बल्कि एक महान जननेता के संघर्ष और योगदान की अनदेखी भी है।

रामविलास पासवान: दलित चेतना के अग्रदूत

रामविलास पासवान जी का नाम भारत के सामाजिक न्याय और दलित राजनीति की उस परंपरा से जुड़ा है, जिसने हाशिए पर खड़े वर्गों को मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया। वे आठ बार लोकसभा सांसद रहे, और केंद्र सरकार में अनेक बार कैबिनेट मंत्री के रूप में महत्वपूर्ण मंत्रालयों का दायित्व संभाला। उनका राजनीतिक जीवन संघर्ष, समर्पण और सेवा का प्रतीक रहा है।

पासवान जी ने दलित, पिछड़े, गरीब और वंचित समाज के हक और सम्मान की लड़ाई सड़क से संसद तक लड़ी। वे लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक थे और उनकी पहचान एक समावेशी नेता की रही। उनके योगदान को लेकर देशभर में सम्मान है – फिर आरा जैसे जागरूक शहर में उनकी प्रतिमा का न होना सवाल खड़े करता है।

पासवान चौक: नाम है, पर प्रतीक नहीं

आरा शहर के चौकीपुर इलाके में वर्षों से एक चौक को ‘पासवान चौक’ के नाम से जाना जाता है। स्थानीय जनता ने इस चौक को रामविलास पासवान जी के नाम पर स्वतः ही नामित किया है – यह जनसमर्थन का जीवंत उदाहरण है। लेकिन विडंबना यह है कि आज तक वहाँ न तो उनकी प्रतिमा लगाई गई है और न ही उनके विचारों को दर्शाने वाला कोई स्मारक स्थापित किया गया है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि “यह चौक सिर्फ एक ट्रैफिक जंक्शन नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की चेतना का प्रतीक होना चाहिए। पासवान जी की प्रतिमा यहाँ लगेगी, तो आने वाली पीढ़ियों को उनके संघर्षों की प्रेरणा मिलेगी।”

जनता की माँगें – सम्मान, स्मृति और सौंदर्यीकरण

स्थानीय समाजसेवियों, जनप्रतिनिधियों और नागरिकों की ओर से तीन प्रमुख मांगें उठाई जा रही हैं:

1. पासवान चौक पर रामविलास पासवान जी की भव्य प्रतिमा लगाई जाए।


2. चौक का सौंदर्यीकरण कर इसे सामाजिक न्याय का प्रतीक स्थल घोषित किया जाए।


3. उनके जीवन, विचारों और योगदान को दर्शाने वाला एक स्थायी स्मृति-पट्ट भी स्थापित किया जाए।



ये केवल मांगें नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय के प्रति जनता की प्रतिबद्धता की अभिव्यक्ति हैं।

राजनीतिक और सामाजिक संगठनों का समर्थन

आरा के कई सामाजिक संगठनों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने इस मांग को समर्थन दिया है। उनका कहना है कि नेताओं की स्मृतियाँ सिर्फ किताबों में नहीं, समाज के सार्वजनिक स्थलों पर भी जीवित रहनी चाहिए। यदि देशभर में अन्य नेताओं की मूर्तियाँ चौराहों की शोभा बढ़ा सकती हैं, तो पासवान जी जैसे जननेता को क्यों भुलाया जाए?

क्या कहती है जनता?

पासवान चौक के एक दुकानदार रमेश पासवान कहते हैं, “हम रोज़ इस चौक से गुजरते हैं, लेकिन दिल में एक टीस रहती है कि हमारे नेता की कोई प्रतिमा नहीं है। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वे जनता की भावनाओं को समझें।”

वहीं, कॉलेज छात्रा कविता रजक कहती हैं, “रामविलास पासवान जी हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। उनके विचारों को समझने के लिए हमें ऐसी जगहों की ज़रूरत है जहाँ उनका स्मरण हो सके।”

सरकार और नगर निगम से अपेक्षा

अब यह सरकार और स्थानीय नगर निगम की जिम्मेदारी बनती है कि वे इस पहल को गंभीरता से लें। इस प्रतिमा की स्थापना केवल एक स्मारक निर्माण नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की विचारधारा को सम्मान देने का कार्य होगा। इससे आने वाली पीढ़ियों को यह सीख मिलेगी कि संघर्ष और सेवा को भुलाया नहीं जाता।


“नेता आते हैं, जाते हैं… पर जो इतिहास बनाते हैं, उनकी पहचान अमर होनी चाहिए।”

रामविलास पासवान जी ने भारतीय राजनीति को जो दिया, वह किसी एक समाज या वर्ग की विरासत नहीं, बल्कि पूरे देश का गर्व है। अब समय है कि आरा शहर इस ऐतिहासिक भूल को सुधारे और पासवान चौक को उनके नाम और विचारों के अनुरूप पहचान दे।

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