Report By: Sanjay Sahu, Chitrakoot
चित्रकूट में सरकारी अस्पतालों का आलम यह है कि यहां किसी भी मृतक महिला को फल दिया जा सकता और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में गर्भपात किया जा सकता है इतना ही नही यहां के लापरवाह डॉक्टरों की जांच कैसे होती है और कहां दब जाती है किसी को पता तक नही चलता बडके अधीकारीयों से पूंछो तो जांच चल रही है पर कहाँ तक पहुंची क्या हुवा किसी को कोई कानो कान खबर नही होती है।
अब जनपद के तहसील में सरकारी डॉक्टरों का नया कारनामा सामने आया है जहां घण्टो तड़पते युवक पर किसी भी डॉंक्टर को रहम नही आई और माँ उसको गोद मे लेकर रोती बिलखती रही।
बुखार से तड़पता कल्लू अपनी मां के गोद में फर्श पर लेटा रहा और उसकी मां और पिता उसको अस्पताल में भर्ती करने के लिए डॉक्टरों के चक्कर काटते रहे. कई घंटे बीत जाने के बाद जब कुछ पत्रकारों ने उसका वीडियो बनाकर जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी भूपेश द्विवेदी से बात की तो, आनन-फानन में डॉक्टरों ने चार घंटे बाद उसका प्राथमिक उपचार करना शुरू किया और कुछ ही घंटे बाद फिर से लिखित में उसको जिला अस्पताल के लिए रेफर किया गया।
उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में डॉक्टरों की संवेदनहीनता और लापरवाही का हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है डॉक्टरों को भगवान कहा जाता है लेकिन चित्रकूट के डॉक्टरों ने संवेदनहीनता की सारी हदें पार कद दी. यहां के डॉक्टरों ने ऐसा बर्ताव किया जिसकी हर तरफ आलोचना हो रही है. यहां तेज बुखार से पीड़ित कड़ी धूप के बीच युवक अस्पताल गेट के बाहर फर्श पर घंटों तड़पता रहा. उसके परिजन डाक्टरों से हाथ जोड़कर उसे भर्ती करने के लिए गिड़गिड़ाते रहे. लेकिन डॉक्टरों का दिल नहीं पसीजा. युवक को बिना देखे ही जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. एक तरफ जहां शासन अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था का दावा कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ ऐसी तस्वीरें स्वास्थ्य विभाग की पोल खोल रही हैं।
अब मामला क्या है जरा पढ़ लीजिए दरअसल यह पूरा वाक्या मानिकपुर ब्लाक के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का है. जहां धर्मपुर गांव के रहने वाले कल्लू नाम के युवक को तेज बुखार था. जिसे इलाज के लिए उसका पिता गोपाल, सुबह 10:00 बजे मानिकपुर समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गया था. जहां डॉक्टरों ने उसे देखे बिना ही सीधे जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. पीड़ित का पिता डॉक्टरों से उसके बेटे कल्लू को भर्ती करने के लिए गिड़गिड़ाने लगा. लेकिन डॉक्टरों का दिल नहीं पसीजा. मजबूर पिता बुखार से पीड़ित बेटे को अस्पताल गेट के बाहर ही लेटा कर डॉक्टरों के लगातार मिन्नतें करता रहा. लेकिन कई घंटे बीत जाने के बाद भी, किसी भी स्वास्थ्य कर्मी ने उसको अस्पताल में भर्ती करने की जहमत नहीं उठाई।
तेज बुखार से तड़पता कल्लू अपनी मां के गोद में फर्श पर कई घण्टे लेटा रहा और पिता भर्ती एडमिट करवाने के लिए डॉक्टरों के चक्कर काटता रहा. कई घंटे बीत जाने के बाद जब कुछ मीडिया कर्मियों ने उसका वीडियो बनाकर जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी से बात की तो, आनन-फानन में डॉक्टरों ने अपनी जान बचाने के लिए चार घंटे बाद उसका प्राथमिक उपचार करना शुरू कर दिया कुछ ही घंटे बाद फिर से लिखित में उसको जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया खैर जनपद के सरकारी अस्पतालों में यह आम बात हो गयी है।