उत्तराखंड में नारी शक्ति का उदय: प्रदेश निर्माण से लेकर विकास तक मातृशक्ति की निर्णायक भूमिका

Report By: उत्तराखंड डेस्क
देहरादून:उत्तराखंड, देवभूमि के नाम से विख्यात यह प्रदेश न केवल अपनी नैसर्गिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की मातृशक्ति के अद्भुत योगदान और संघर्षों की मिसाल भी पूरे देश में दी जाती है। उत्तराखंड राज्य के निर्माण से लेकर वर्तमान में चल रहे विकास कार्यों तक, महिलाओं की भूमिका केवल सहायक नहीं रही, बल्कि वे नेतृत्वकर्ता, प्रेरणास्रोत और बदलाव की वाहक रही हैं।
राज्य निर्माण आंदोलन में मातृशक्ति की अग्रणी भूमिका
उत्तराखंड राज्य की मांग कोई एक रात में उठी आवाज नहीं थी, बल्कि यह एक लंबा संघर्ष था, जिसमें गांव-गांव की महिलाओं ने न केवल मोर्चा संभाला, बल्कि आंदोलन की आत्मा बनीं। वे सड़कों पर उतरीं, लाठियाँ खाईं, लेकिन झुकी नहीं। उनकी आवाज़ में वह ताकत थी जिसने इस आंदोलन को गति दी और अंततः 9 नवम्बर 2000 को उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया।
विकास की धुरी बनी महिलाएँ
आज उत्तराखंड की महिलाएँ केवल गृहस्थी तक सीमित नहीं हैं। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन, राजनीति, विज्ञान, खेल और उद्यमिता में अपनी पहचान बना रही हैं। महिला स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups) ने आर्थिक स्वावलंबन की नई मिसाल कायम की है। पर्वतीय क्षेत्रों में महिलाएँ जैविक खेती, पर्यटन, वनोपज आधारित उद्योगों में सक्रिय रूप से भागीदारी कर रही हैं, जिससे न केवल उनके परिवार की आय बढ़ी है, बल्कि गांवों का पलायन भी रुका है।
शिक्षा और स्वावलंबन की ओर कदम
राज्य सरकार और विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रयासों से बालिकाओं की शिक्षा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और स्वरोजगार के लिए कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं, जिनका लाभ आज की उत्तराखंडी बेटियाँ ले रही हैं। ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ से लेकर ‘मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना’ तक कई ऐसे प्रयास हैं जिन्होंने नारी सशक्तिकरण को व्यवहारिक धरातल पर उतारा है।
कोई सीमा नहीं, केवल संभावनाएँ
उत्तराखंड की महिलाएं आज सीमाओं को लांघ रही हैं — चाहे वह सीमा खेलों की हो, स्टार्टअप की हो या फिर प्रशासनिक सेवाओं की। पहाड़ों की बेटियाँ अब सेना में भी कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। महिला ग्राम प्रधानों और जिला पंचायत सदस्यों की सक्रिय भागीदारी ने स्थानीय प्रशासन को नया आयाम दिया है।
संस्कृति और परंपरा की वाहक
मातृशक्ति केवल आधुनिकता की परिचायक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक मूल्यों की संरक्षक भी है। उत्तराखंड की पारंपरिक वेशभूषा, लोकगीत, लोकनृत्य, और पर्व-त्योहारों की आत्मा महिलाओं में ही बसती है। ये महिलाएँ हमारी संस्कृति को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ा रही हैं।
नारी: शक्ति, श्रद्धा और सम्मान की प्रतीक
उत्तराखंड में नारी सिर्फ़ परिवार की रीढ़ नहीं, समाज की शक्ति भी है। इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि “मातृशक्ति का सम्मान, हमारी संस्कृति – हमारी पहचान!” यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि उत्तराखंड के प्रत्येक नागरिक की आत्मा की आवाज़ है।