पटना का ऐतिहासिक घंटाघर एक तस्वीर में सजीव होती विरासत की कहानी

Report By : तारकेश्वर प्रसाद
बिहार पटना : पटना का घंटाघर एक ऐसा नाम है जो हर उस व्यक्ति के दिल के करीब है, जिसने कभी इस शहर में समय बिताया है। यह सिर्फ एक घड़ी वाली इमारत नहीं, बल्कि वर्षों से बिहार की राजधानी पटना की पहचान और शान रहा है। शहर के बीचोबीच खड़ा यह घंटाघर न केवल समय बताता है, बल्कि इतिहास, संस्कृति और परंपरा की कहानियाँ भी खुद में समेटे हुए है।
इस घंटाघर को देखकर हर किसी को एक गर्व महसूस होता है। इसके चारों ओर की भीड़, आसपास की दुकानों की हलचल और इसकी ऊँचाई पर टिकी निगाहें — यह सब किसी याद की तरह दिल में बस जाता है। यह वो जगह है जहाँ लोग अपने परिवार के साथ समय बिताते हैं, तस्वीरें खिंचवाते हैं और अपने शहर के इतिहास को जीते हैं।
लेकिन अब यह पहचान बदलने जा रही है। पटना एयरपोर्ट के विस्तार की योजना के चलते इस ऐतिहासिक इमारत को छोटा करने का निर्णय लिया गया है। यह खबर उन लोगों के लिए दुःखद है जिनकी यादें इस घंटाघर से जुड़ी हैं। यह केवल एक संरचना नहीं, बल्कि हजारों लोगों की भावनाओं का केंद्र रहा है।
विकास की राह पर बढ़ते हुए हम अक्सर पीछे छूटती विरासतों को नजरअंदाज कर देते हैं। ऐसा ही कुछ पटना के घंटाघर के साथ हो रहा है। हालांकि एयरपोर्ट का विस्तार जरूरी है, लेकिन यह भी उतना ही जरूरी है कि हम अपने अतीत को सहेज कर रखें। क्योंकि यही अतीत भविष्य की नींव होता है।
इसी सोच के साथ, मैंने सोचा कि क्यों न इस क्षण को एक तस्वीर में कैद कर लिया जाए। मैंने अपना कैमरा उठाया, और उस ऐतिहासिक इमारत को देखा, जो न जाने कब तक अपने पुराने स्वरूप में हमारे साथ रहेगी। धूप और छांव के बीच संतुलन बनाते हुए, मैंने एक तस्वीर ली — जो अब केवल एक फोटो नहीं, बल्कि एक दस्तावेज़ बन गई है।
यह तस्वीर हमारे आने वाली पीढ़ियों को दिखाएगी कि पटना का घंटाघर कैसा था, और किस तरह यह इमारत शहर की आत्मा का हिस्सा थी। जब कभी हमारे बच्चे हमसे पूछेंगे कि यह जगह कैसी थी, तो हम यह तस्वीर दिखाकर कह सकेंगे — यह था हमारा पटना, और यह था हमारा गौरव।
आज इस तस्वीर को लेते वक्त मेरे मन में एक टीस भी थी और एक जिम्मेदारी भी। टीस इस बात की कि शायद अगली बार यह इमारत वैसी न दिखे, और जिम्मेदारी इस बात की कि हमें अपनी विरासत को बचाने के लिए प्रयास करना चाहिए — चाहे वह तस्वीरों के रूप में ही क्यों न हो।
हम सबका यह कर्तव्य है कि हम विकास और विरासत के बीच संतुलन बनाए रखें। हम आगे बढ़ें, लेकिन अपने अतीत को भूलें नहीं। क्योंकि जो अपनी जड़ों को भूला देता है, उसका भविष्य कभी स्थिर नहीं हो सकता।
पटना का घंटाघर सिर्फ एक इमारत नहीं, एक भावना है — और आज यह भावना एक तस्वीर में सजीव हो गई है।