उड़ता बिहार के लिए नीतिश सरकार जिम्मेदार : विनोद वर्मा का बड़ा बयान


रिपोर्ट: तारकेश्वर प्रसाद, आरा (बिहार)

आरा: एक दौर में शिक्षा, संस्कृति और शौर्य के लिए प्रसिद्ध बिहार आज नशे के काले साये में बुरी तरह घिरता जा रहा है। नशे का अवैध कारोबार न सिर्फ पूरे राज्य में तेजी से फैल रहा है, बल्कि यह अब एक संगठित उद्योग का रूप ले चुका है। इस गंभीर और चिंताजनक स्थिति को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता विनोद वर्मा ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर राज्य की नीतिश कुमार सरकार को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया है।

शराबबंदी बनी दिखावा, नशे का कारोबार चरम पर
वर्मा ने कहा कि 1 अप्रैल 2016 को जब राज्य सरकार ने नई आबकारी नीति के तहत पूर्ण शराबबंदी लागू की, तब यह उम्मीद की गई थी कि बिहार नशा मुक्त होगा। लेकिन इस नीति ने उल्टा असर दिखाया और अवैध शराब, ड्रग्स, चरस, गांजा और हेरोइन का कारोबार तेजी से फैलने लगा।
उन्होंने कहा कि इस कानून के क्रियान्वयन में प्रशासन की लापरवाही और भ्रष्टाचार मुख्य कारण हैं, जिसके कारण नशे का अवैध धंधा सरकार की नाक के नीचे फल-फूल रहा है।

प्रशासन की मिलीभगत और होम डिलीवरी का खुला खेल
श्री वर्मा का दावा है कि आज बिहार का हर तीसरा घर नशे की गिरफ्त में है। उन्होंने कहा कि स्थानीय थाना और पुलिस प्रशासन की मिलीभगत से अवैध शराब और मादक पदार्थों की होम डिलीवरी तक हो रही है।
“सरकार को सब कुछ पता है, लेकिन वह जानबूझकर आंखें मूंदे बैठी है,” – श्री वर्मा ने कहा।

बिहार बन गया है ‘उड़ता बिहार’
विनोद वर्मा ने बेहद तीखे शब्दों में कहा, “एक समय था जब बिहार को ज्ञान और बुद्धि का गढ़ माना जाता था, लेकिन आज यह राज्य ‘उड़ता पंजाब’ की राह पर चल पड़ा है।”
उन्होंने बताया कि बड़ी संख्या में बिहार के युवा शराब, चरस, गांजा, हेरोइन और सिंथेटिक ड्रग्स की चपेट में आ चुके हैं और कई तो अपनी जान तक गंवा चुके हैं।

तस्करी का बड़ा नेटवर्क, सरकार की चुप्पी
श्री वर्मा ने कहा कि बिहार में नशे का इतना बड़ा नेटवर्क बिना सत्ताधारी संरक्षण के संभव ही नहीं है।
उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल की सीमाओं से बड़ी मात्रा में मादक पदार्थों की तस्करी हो रही है।
बिहार आज नशे की तस्करी के मामलों में पंजाब को पीछे छोड़ चुका है, जो राज्य के लिए गंभीर चेतावनी है।

सरकारी आंकड़ों से उजागर होती हकीकत
विनोद वर्मा ने बताया कि 12 नवंबर 2024 तक बिहार में 456 वीआईपी शराब पीने के जुर्म में गिरफ्तार किए गए।
जहां सरकारी शराब की दुकानें बंद हैं, वहीं पूरे राज्य में अवैध शराब की आपूर्ति बेरोक-टोक जारी है।
2016 से 2021 के बीच बिहार में 3,39,401 लोगों को नशे के आरोप में गिरफ्तार किया गया, लेकिन इनमें से सिर्फ 470 को ही सजा मिल पाई।

भ्रष्टाचार का खुला खेल
श्री वर्मा ने 2010 के एक पुराने बयान का हवाला देते हुए बताया कि उस समय के आबकारी मंत्री अशरफ ने स्वीकार किया था कि बिहार में शराब का बाजार 2,500 करोड़ का है, जिसमें से केवल 8-9 करोड़ रुपये ही सरकार को मिलता है।
बाकी का सारा पैसा माफिया और भ्रष्ट अधिकारियों की जेब में चला जाता है।

झूठे दावों का पुलिंदा: नशा मुक्त बिहार सिर्फ नारा
श्री वर्मा ने बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर भी हमला बोलते हुए कहा कि उन्होंने 2024 में दावा किया था कि 2025 के चुनाव से पहले बिहार पूरी तरह नशा मुक्त होगा, लेकिन आज हालात इसके एकदम विपरीत हैं।
हजारों लोगों की मौतें और लाखों युवाओं का जीवन बर्बाद होना इस बात का सबूत है कि सरकार के दावे सिर्फ झूठ और खोखले वादे हैं।

अब सवाल यह है
क्या बिहार सरकार इस भयावह स्थिति की जवाबदेही लेगी?
क्या राज्य में नशे की समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए कोई ठोस नीति लाई जाएगी?
क्या प्रशासनिक भ्रष्टाचार पर कोई कठोर कार्रवाई होगी?

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