देश की अर्थव्यवस्था गहरे संकट में: विनोद वर्मा का गंभीर आरोप, जाली नोट से लेकर विदेशी कर्ज तक पर उठाए सवाल


रिपोर्ट: तारकेश्वर प्रसाद, आरा, बिहार

आरा: देश की अर्थव्यवस्था एक गहरे संकट के दौर से गुजर रही है, और यह संकट केवल आंकड़ों में ही नहीं बल्कि जमीन पर भी साफ नजर आने लगा है। सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता विनोद वर्मा ने केंद्र सरकार पर सीधा निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि भारत की अर्थव्यवस्था आज जाली नोट, बढ़ते विदेशी कर्ज, निजीकरण की नीतियों और बढ़ती असमानता के चलते बुरी तरह से लड़खड़ा गई है।

जाली नोट का बढ़ता खतरा, सरकार बेखबर
श्री वर्मा ने कहा कि देश में 500 रुपये के 37% नोट जाली हैं और यह नोट बिना किसी रोकटोक के बाजार में खुलेआम चल रहे हैं। इससे यह साबित होता है कि देश में जाली नोटों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है, जो संभवतः सत्ता में बैठे लोगों के संरक्षण के बिना फल-फूल नहीं सकता। उन्होंने यह भी कहा कि अब तो भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने भी इसे स्वीकार कर लिया है, जो एक अत्यंत गंभीर और चिंताजनक स्थिति को दर्शाता है।

विदेशी कर्ज के बोझ में दबा भारत
विनोद वर्मा ने आगे कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था पहले से ही विदेशी कर्ज के भारी बोझ तले दबी हुई है। वर्ष 2014 में जहां विदेशी कर्ज 446 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, वहीं 2025 में यह बढ़कर 7.11 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है। यह जानकारी 24 मार्च 2025 को लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने दी थी।

उन्होंने बताया कि सरकार को हर साल लगभग 27 बिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान करना पड़ता है, जिसका सीधा असर देश के विकास कार्यों और नीति योजनाओं पर पड़ रहा है।

चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था’ लेकिन गाँवों की हालत बदतर
नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम द्वारा भारत को जापान को पीछे छोड़ दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था घोषित किए जाने पर भी श्री वर्मा ने सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि “अगर भारत वास्तव में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, तो गाँवों और कस्बों के आम लोगों की हालत इतनी खराब क्यों है? यह पैसा आखिर जा कहां रहा है?”

बढ़ती आर्थिक असमानता और कॉरपोरेट को फायदा
वर्मा ने भारत में असमानता की खतरनाक तस्वीर पेश करते हुए कहा कि देश के केवल 0.1% अमीरों के पास 39.5% संपत्ति है, जबकि आधी आबादी के पास मात्र 6.5% संपत्ति है। उन्होंने यह भी कहा कि देश की प्रति व्यक्ति आय जापान से 12 गुना कम है और प्रति व्यक्ति संपत्ति के मामले में भारत का स्थान 140वां है।
उन्होंने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बीते 10 वर्षों में कॉरपोरेट घरानों के 16.35 लाख करोड़ रुपये बट्टे खाते में डाल दिए हैं, जबकि आम आदमी महंगाई, बेरोजगारी, और शिक्षा-स्वास्थ्य की बदहाली से जूझ रहा है।

GDP की रफ्तार पर भी उठे सवाल
विनोद वर्मा ने भारत की GDP विकास दर को लेकर भी सरकार को घेरा। उन्होंने बताया कि 2004 में भारत की GDP 709 बिलियन डॉलर थी जो 2014 तक बढ़कर 2.04 ट्रिलियन डॉलर हो गई – यानी 188% की वृद्धि। परंतु 2014 से 2024 तक GDP सिर्फ 3.5 से 3.7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंची – यानी महज 5.8% वृद्धि, जो कि पहले की तुलना में दोहरे से भी कम है।
उनका दावा है कि यदि मोदी सरकार 2004 जैसी दर से GDP बढ़ा पाती, तो 2025 तक भारत की GDP 6.4 ट्रिलियन डॉलर होती और भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाता।

विनिवेश और निजीकरण पर भी जताई चिंता
श्री वर्मा ने कहा कि सरकार की नीतियां देश को निजीकरण की दिशा में धकेल रही हैं, जिससे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग कमजोर हो रहे हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत को रोजगार के नए अवसर पैदा करने होंगे और कृषि क्षेत्र में बड़े निवेश की नीति अपनानी होगी, तभी जाकर भारत सच्चे अर्थों में आर्थिक महाशक्ति बन सकता है।

जनता की मूलभूत समस्याएं अनसुलझी
वर्मा ने कहा कि आज देश की जनता महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, और भ्रष्टाचार जैसी मूलभूत समस्याओं से जूझ रही है। लोगों को सामान्य सुविधाओं के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं, लेकिन इसके बावजूद सरकार लोकलुभावन नारों से जनता को भ्रमित कर रही है।

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